एक निवेदन ब्लाग जगत की लौहकन्या बहन दिव्या जी से A friendly request
नफ़रत से भरे मीडियाकर्मियों का एक सांकेतिक मनोविश्लेषण Media, my business part 1
आदरणीया बहन दिव्या जी,
आपने अपनी पोस्ट पर मेरे एक कमेंट को प्रकाशित किया और उस पर अपना वक्तव्य भी दिया और फिर बाद में दो भाईयों के कमेंट भी आये जिनमें मेरी पोस्ट पर ऐतराज़ किया गया है। मैंने उन्हें सामने रखते हुए बिल्कुल नार्मल कमेंट आपके ब्लाग पर किए जिन्हें आपने ‘किसी वजह से‘ काफ़ी समय तक लटकाए रखा और उन्हें प्रकाशित होता न देखकर मैंने जनाब रोहित साहब के आरोप का उत्तर देने के लिए एक पोस्ट बनाई जिसका शीर्षक है‘नफ़रत से भरे मीडियाकर्मियों का एक सांकेतिक मनोविश्लेषण'
और उसमें उन्हें आपकी पूरी पोस्ट दोबारा पढ़ने के लिए दी है और उनसे पूछा गया है कि इस पोस्ट में आखि़र ऐसा क्या है कि आप मेरी सोच और मेरी समझ को लानत के क़ाबिल ठहरा रहे हैं।
यही सवाल मैं ब्लाग जगत के हरेक अदना और आला ब्लागर से पूछना चाहता हूं कि जो लोग जगह जगह घूमकर बेढब कविताओं पर तो वाह वाह करते हैं, द्विअर्थी चुटकुलों पर तारीफ़ की बरसात कर देते हैं बल्कि इससे भी आगे बढ़कर नफ़रत का ज़हर फैलाने वाली पोस्ट्स पर भी उनका जमघटा लगा रहता है लेकिन मेरी पोस्ट पर आते हुए उनका वुजूद थर्राने लगता है, कुछ का डर से और कुछ का नफ़रत और गुस्से से।
ऐसा क्यों है ?
चलिए मैं यह भी मान लेता हूं कि जिस लेख को मैं ‘नफ़रत की आग पर पानी डालना‘ मानता हूं, उसे वे अपनी आस्थाओं पर प्रहार मानकर नाराज़ होते हैं।
ठीक है,
तब यह बताईये कि जब बिग ब्लागर जनाब अरविंद मिश्रा जी जैसे लोग कहते हैं कि
‘पुराण तो लिखे ही गधों के लिए गए हैं‘ या ‘हिंदू धर्म में नशा करने, व्यभिचार करने या जो मन चाहे करने की पूरी आज़ादी है‘ तब आपका आक्रोश कहां काफ़ूर हो जाता है ?
जब प्रिय प्रवीण शाह जी जैसे संशयवादी हिन्दू नास्तिक ‘भगवान को अनैतिक और बेईमान‘ बताते हैं तो उनसे केवल अनवर जमाल भिड़ता है, आपमें से किसी की ग़ैरत नहीं जागती।
क्यों ?
बल्कि आप उनकी पोस्ट पर नियमित रूप से कमेंट देने पहुंचते रहते हैं, नास्तिक भी और आस्तिक भी।
कैसे आस्तिक हैं आप ?
आपके भगवान को एक आदमी गालियां दे रहा है और आप वहां बैठे ‘ही ही‘ कर रहे हैं। आपके बस का ही नहीं है भगवान की पवि़त्रता में विश्वास करना और दूसरों को भी विश्वास की प्रेरणा देना। मैं पालनहार को एक ही मानता हूं और उसी का एक नाम हिंदी-संस्कृत में भगवान मानता हूं। प्रवीण जी को, उनकी न्यायप्रियता के कारण अपना प्रिय मानने के बावजूद, मैंने साफ़ सुथरे अंदाज़ में अच्छी तरह समझा दिया और कई पोस्ट भी पै दर पै भगवान की पवि़त्रता और महानता पर बनाईं हैं, जिन्हें आप आज भी देख सकते हैं। मैंने उनके विचार का विरोध किया और भरपूर किया लेकिन उन्होंने कोई आपत्ति नहीं जताई और न ही कभी मुझसे यह कहा कि आपने मुझे संबोधित करके जो पोस्ट्स बनाईं हैं, उन्हें हटा लीजिए बल्कि उल्टे उन्होंने मेरी पोस्ट का लिंक देकर लोगों को बताया कि मैंने सही कहा है।
एक ब्लागर का धर्म भी यही है। एक ब्लागर सार्वजनिक रूप से जो कुछ कहता है उससे सभी का सहमत होना ज़रूरी नहीं है। दूसरे लोग असहमत भी हो सकते हैं और अपने ब्लाग्स पर उसके विचार का ज़िक्र करते हुए ऐतराज़ भी कर सकते हैं और उससे सवाल भी पूछ सकते हैं और एक आदर्श ब्लागर उनके ब्लाग पर जाकर उनके सवालों का जवाब देता है और कभी यह नहीं कहता कि आप यह पोस्ट हटा लीजिए। लेकिन आप कह रही हैं कि मैं अपने ब्लाग से वह पोस्ट हटा दूं जिसमें आपको संबोधित किया गया है।
आख़िर क्यों ?
इस मामले में पूरे ब्लागिस्तान में मुझ से बड़ा आदर्श ब्लागर कोई दूसरा नहीं है। हां अगर आप न मानें तो यह मुसलमानों के खि़लाफ़ आपके तास्सुब को ही बेनक़ाब करेगा।
आप तो माडरेशन लगाए बैठी हैं कि लोग गाली देते हैं।
बहन जी, लोगों को रास्ता दिखाना कोई गुड्डे गुड़ियों का खेल समझा था आपने। आपको गालियां ही मिलेंगी इस रास्ते में और फिर भी हंसना होगा और दिखावटी तौर पर नहीं बल्कि दिल से। लोग आपको ज़लील करेंगे लेकिन आपको उनके लिए अपने रब से तन्हाई में दुआ करनी होगी। तब उनके दिल बदलेंगे, तब वे आपकी मुहब्बत को समझेंगे। जो लोग गालियां देेते हैं, अस्ल में काम के वही हुआ करते हैं, इस बात को दानिश्वर लोग समझते हैं, नादान नहीं। जो आदमी नफ़रत से भरा हुआ है, जब वह मुहब्बबत करता है तो उसकी मुहब्बत में दिखावा नहीं होगा, कभी विश्वासघात नहीं होगा। किसी मिशन को आगे बढ़ाने के लिए यही लोग पिलर्स का काम करते हैं।
आपको लोग गालियां देते हैं और आप उन्हें छापती नहीं हैं ये क्या ब्लागिंग हुई ?
अश्लीलता भरी टिप्पणियों को आप एक नारी होने के तौर न छापना चाहें तो कोई बात नहीं लेकिन यह क्या कि ठीक ठाक गालियां भी न छापी जाएं, इस तरह तो विरोध के स्वर ही दब जाएंगे, फिर विचार विमर्श क्या ख़ाक होगा ?
तब तो तारीफ़ करने वालों की भीड़ ही लगेगी। कोई आपको ‘ब्यूटी क्वीन‘ कहेगा और कोई ‘ब्यूटी विद ब्रेन‘ और आप खुश होकर उनका आभार मानेंगी। लेकिन आभार भी आप केवल हिंदुओं का ही मानती हैं मुसलमान का नहीं। आख़िर जब आपकी तारीफ़ मैंने की और ठीक ठाक अंदाज़ में की तो आप उखड़ क्यों गईं ?
एक मुसलमान की आलोचना समीक्षा तो ब्लाग जगत को गवारा है ही नहीं, उसके द्वारा अपने ब्लाग पर तारीफ़ भी आपको गवारा नहीं ?
हक़ीक़त यह है कि आपने ब्लागिंग का स्तर ही गिरा दिया है। आपने तो न सिर्फ़ ब्लागर्स को चापलूसों की जमात में बदलकर रख दिया है बल्कि खुद ब्लागिंग के मक़सद को भी ध्वस्त कर दिया है।
आप बेशक अपनी विचारधारा का प्रचार करें और पूरे राष्ट्र से उसे अपनाने का आग्रह भी करें लेकिन फिर उस पर उठने वाले सवालों का स्वागत भी तो कीजिए । होना तो यह चाहिए कि उस विचारधारा पर कहीं भी कोई ऐतराज़ करे तो आप वहीं पहुंच जाएं और उसके सामने उसके पक्ष की कमज़ोरी उजागर करें जैसे कि मैं करता हूं लेकिन आप तो उस पोस्ट को भी हटाने के लिए कह रही हैं जिसमें आपकी विचारधारा का तो कोई विरोध है ही नहीं बल्कि पूरी पोस्ट ही आपकी तारीफ़ से भरी हुई है।
यह ब्लागिंग का कौन सा स्तर है, आप खुद विचार कीजिएगा।
कोई गाली ऐसी नहीं है जो इन सभ्य और हिन्दू कहे जाने वाले ब्लागर्स ने मुझे न दी हो। पढ़े लिखे लोगों ने, जवान प्रोफ़ैसर्स ने और बूढ़े इंजीनियर ने, हरेक ने मुझे अपने स्तर की स्तरीय और स्तरहीन गालियों से नवाज़ा। मुझे अश्लील गालियां तक दी गईं लेकिन मैंने हरेक को सहा और उन्हें बताया कि आप ग़लतफ़हमी और तास्सुब के शिकार हैं। उनकी दी हुईं गालियां मैंने आज तक अपने ब्लाग पर ऐसे सजा रखी हैं जैसे कोई ईनाम में मिले हुए मोमेन्टम्स को अपने ड्राइंग रूम में सजाता है।
आपमें से किसका दिल है इतना बड़ा ?
अगर आपका दिल इतना बड़ा नहीं है तो बंद कीजिए सुधार का ड्रामा।
‘सुधारक को पहले गालियां खानी होंगी, फिर वह जेल जाएगा और अंततः उसे ज़हर खिलाया जाएगा या उसे गोली मार दी जाएगी।‘
एक सुधारक की नियति यही होती है। जिसे यह नियति अपने लिए मंज़ूर नहीं है वह सुधारक नहीं बन सकता, हां सुधारक का अभिनय ज़रूर कर सकता है।
आप इस समय जिस अनवर जमाल को देख रही हैं। यह मौत के तजर्बे से गुज़रा हुआ अनवर जमाल है। देश की अखंडता की रक्षा के लिए मैं जम्मू कश्मीर गया और अकेला नहीं गया बल्कि अपने दोस्तों को लेकर गया। 325 लोगों का ग्रुप तो मेरे ही साथ था और दूसरे कई ग्रुप और भी थे और उनमें इक्का दुक्का हिन्दू कहलाने वालों के अलावा सभी लोग वे थे जिन्हें मुसलमान कहा जाता है।
जब मैं गया तो मुझे पता नहीं था कि मैं वापस लौटूंगा भी कि नहीं। मैंने अपने घर वालों को, अपने मां-बाप को तब ऐसे ही देखा था जैसे कि मरने वाला इनसान किसी को आख़िरी बार देखता है। अपनी बीवी से तब आख़िरी मुलाक़ात की और अपने बच्चों को यह सोचकर देखा कि अनाथ होने के बाद ये कैसे लगेंगे ?
अपनी बीवी से कहा कि तुम मेरी मौत के बाद ये ये करना और दोबारा शादी ज़रूर कर लेना। उस वक्त भी आपका यह भाई हंस रहा था और हंसा रहा था। सिर्फ़ आपका ही नहीं, जिसे कि बहन कहलाना भी गवारा नहीं है बल्कि चार सगी बहनों का भाई जिनमें से उसे अभी 2 बहनों की शादी भी करनी है। बूढ़े मां-बाप, मासूम बच्चे और जवान बहनें, आख़िर मुझे ज़रूरत क्या थी वहां जाने की ?
मैं मना भी तो कर सकता था।
... लेकिन अगर मैं मना करता तो फिर क्या मैं देशभक्त होता ?
जम्मू कश्मीर जाकर भी मैं केवल श्रीनगर में प्रेस वार्ता करके ही नहीं लौट आया जैसा कि राष्ट्रवादी नेता और उनके पिछलग्गू करके आ जाते हैं बल्कि हमारे ग्रुप ने कूपवाड़ा और सोपोर जैसे इलाक़ों में गन होल्डर्स की मौजूदगी के बावजूद आम लोगों के बीच काम किया, जहां किसी भी तरफ़ से गोलियां आ सकती थीं और हमारी जान जा सकती थी और पिछले टूर में जा भी चुकी थीं। हमला तो ग्रुप पर ही किया गया था लेकिन हमारे वीर सैनिक चपेट में आ गए और ...
हरेक दास्तान बहुत लंबी है। यहां सिर्फ़ उनके बारे में इशारा ही किया जा सकता है। इतना करने के बाद भी न तो हमने कोई प्रेस वार्ता की और न मैंने उस घटना का चर्चा ही किया। मुझे मुसलमान होने की वजह से देश का ग़द्दार कहा गया और आज भी कहा जा रहा है।
एक झलक मैंने अपने फ़ोटो में दिखाई भी तो उसमें भी कश्मीरी भाईयों से एक अपील ही की कि वे ठंडे दिमाग़ से अपने भविष्य के बारे में सोचें।
... लेकिन अगर उत्तर प्रदेश के मुसलमान को भी आप ग़द्दार कहेंगे, अगर आप देश की अखंडता की रक्षा करने वाले मुसलमान को भी मज़हबी लंगूर और मज़हबी कौआ कहेंगे तो क्या वे लोग नेट पर मेरी दुर्दशा देखकर अपने भविष्य के प्रति आश्वस्त हो पाएंगे ?
मुझे गालियां देने वाले इस देश, समाज और मानवता का अहित ही कर रहे हैं।
तब भी मैंने उनकी गालियां इस आशय से अपने ब्लाग पर व्यक्त होने दीं कि-
1. गाली देने वाले के मन का बोझ हल्का हो जाए जो कि शाखाओं में उनके मन पर मुसलमानों को ग़द्दार बता बता कर लाद दिया गया है। यह प्रौसेस ‘कैथार्सिस‘ कही जाती है। इसके बाद भड़ास निकल जाती है और आदमी ठीक ठीक सोचने की दशा में आ जाता है।
2. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का तक़ाज़ा भी यही है।
3. आदर्श ब्लागिंग भी यही चाहती है।
4. टिप्पणीकार भी यही चाहता है।
5. गाली देने के बाद आदमी को उसका ज़मीर बताता है कि उसने आवेश में आकर ग़लत काम कर दिया है। तब उसका ज़मीर उसे सही रास्ता दिखाता है और पेंडुलम की तरह उसकी भावनाएं दूसरे छोर तक जाती हैं। तब उसके दिल में पहले पश्चात्ताप जागता है और फिर वही भाव प्रेम में बदल जाता है।
6. गालियां देने वाले लोगों में काम के आदमी भी होते हैं और उनमें से कुछ देर-सवेर बदलते भी हैं। इसकी एक मिसाल मेरे भाई ‘मान जी‘ हैं। पहले वे भी मुझे गालियां देते थे। दूसरों की तरह उन्होंने भी मुझे ही नहीं बल्कि मेरे खुदा, मेरे रसूल, मेरे दीन-ईमान और मेरे तीर्थ को हर चीज़ को गालियां दीं लेकिन बाद में उन्हें अपनी ग़लती का अहसास हुआ और न सिर्फ़ उनका व्यवहार बदल गया बल्कि उन्होंने अपनी ग़लती भी मानी और उसके लिए माफ़ी भी मांगी।
अपनी ग़लती मानकर सार्वजनिक मंच से माफ़ी मांगना हिम्मत का काम होता है। मैंने किया है इसलिए जानता हूं जिन्होंने नहीं किया है जानते वे भी हैं। मान जी में हिम्मत थी तो उन्होंने ऐसा कर लिया। जिनमें इतनी हिम्मत नहीं है वे ऐसा नहीं कर पाए लेकिन अपने दिलों में जानते वे भी हैं कि
‘सबका मालिक एक है और उसके हुक्म के सामने समर्पण कर दो, उसकी आज्ञाा का पालन करके अपना लोक परलोक सुधार लो‘
ऐसा कहकर मैं कुछ भी ग़लत नहीं कर रहा हूं। समाज के चारित्रिक परिवर्तन और विकास के बिना कोई भी राजनैति परिवर्तन हमारे देश और हमारी दुनिया का कल्याण नहीं कर सकता। यह मेरा स्पष्ट मानना है जिसका इंकार कोई कर ही नहीं सकता।
हां, कोई और भाई-बहन लोगों के व्यक्तिगत और सामूहिक चरित्र के विकास के लिए दूसरी कोई विधि ज़रूर सजेस्ट कर सकता है। इसमें कोई हरज नहीं है। संवाद इसी का नाम है और ब्लागिंग को मैं संवाद के लिए ही यूज़ करता हूं।
मैं एक यूनिक हिन्दू ही नहीं हूं बल्कि यूनिक ब्लागर भी हूं। दूसरा कोई मुझ जैसा मिल जाए, थोड़ा मुश्किल है। मैं देशभक्त भी हूं और इसीलिए मुझे देशभक्तों की पहचान भी है। देशभक्त वह होता है जो ज़रूरत पड़ने पर देश की रक्षा के लिए अपनी जान देने के लिए पहुंच जाए, जैसे कि मैं पहुंचा जम्मू-कश्मीर।
आपको ऐतराज़ है कि मैंने आपकी तुलना देशभक्तों से क्यों नहीं की ?
आपकी तुलना देशभक्तों से करने का क्या तुक है ?
देश के लिए जान देने आप कहां गईं हैं बताइये ?
आपने देश के शिक्षण तंत्र का लाभ उठाकर पहले तो योग्यता अर्जित की और जब सेवाएं देने का नंबर आया तो आप विदेश जा बैठीं। ख़र्च किया देश ने और सेवाएं दे रही हैं आप विदेश में ?
क्या इसी का नाम है देशभक्ति ?
जो नारी अपनी सेवाएं तक देश के लोगों को न दे सके और विदेश जा पहुंचे तो उसे तो कृतघ्न न माना जाए इतना ही पर्याप्त है। आपको देशभक्तों की श्रेणी में रखेंगे वे लोग जो कि खुद देशभक्त नहीं हैं और आपके चापलूस हैं।
मैं न आपका चापलूस हूं और न ही आपका विरोधी। जो गुण आपमें है ही नहीं, उसे मैं आपके लिए नहीं स्वीकारता और जो गुण आपमें है, उसे मैं ऐलानिया मानता हूं।
आपने कहा है कि ‘जिसकी आंख में कीचड़ नहीं होता उसे हरेक औरत मेनका की तरह रूपवान और गार्गी की तरह विदुषी ही दिखाई देती है।‘
आपने सच कहा है। मैं आपसे सहमत हूं। मुझे हरेक औरत मेनका की तरह रूपवान और गार्गी की तरह विदुषी ही दिखाई देती है इसीलिए मैंने आपको ऐसा समझा और कहा भी। मेरा कहना साबित करता है कि मेरी आंख में कीचड़ नहीं है लेकिन आपके दिमाग़ में जरूर कुछ है कि जिस बात से आप मेरी पाक दिली का अहसास करतीं, उसे आप बचकानापन बता रहीं हैं।
अगर आपको ‘मेनका की तरह रूपवान और गार्गी की तरह विदुषी‘ बताना ग़लत है तो फिर आप खुद क्यों ब्लाग जगत से पूछती हैं कि क्या उनके पास श्री कृष्ण जैसा मित्र है ?
जहां आपने यह सवाल पूछा था वहीं मैंने आपको ‘गार्गी की तरह विदुषी बताते हुए कहा था कि हां मेरे पास श्री कृष्ण जैसा सारथि और सखा है।
तब तो आपने ख़ुद को ‘गार्गी‘ बताए जाने पर कोई आपत्ति नहीं की थी तो फिर आज क्यों ?
आप खुद कह रही हैं कि आपको मेनका कहे जाने पर कोई आपत्ति नहीं है लेकिन
आपका मानना है कि आप मेनका जितनी सुंदर नहीं है।
मैं मान लेता हूं लेकिन क्या आप सुंदर नहीं हैं ?
अगर आप सुंदर हैं तो उपमा हमेशा उस चीज़ से दी जाती है जो कि उससे बड़ी हुआ करती है।
मां-बाप और गुरू की उपमा तो ईश्वर से दी जाती है हिंदू साहित्य में। क्या मां-बाप और गुरू वास्तव में ही ईश्वर होते हैं ?
अलंकारों को उसी रूप में न समझा जाए जो कि वक्ता का अभिप्राय है , तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है। लिहाज़ा आप अपनी सोच को दुरूस्त करें। मेरा कहा हुआ ठीक है।
मैं वही कहता हूं जो कि मैं मानता हूं। आप कहती हैं कि आप ‘गार्गी की तरह विदुषी‘ नहीं हैं। आप झूठ बोलती हैं।
गार्गी में ऐसा क्या ख़ास था जो कि आपमें नहीं है ?
आदि शंकराचार्य एक सन्यासी थे। उन्होंने गार्गी के पति को शास्त्रार्थ में हरा दिया, तब गार्गी ने शंकराचार्य से शास्त्रार्थ किया और उसने शंकराचार्य को घेर कर उस क्षेत्र में ले गई जिसका कोई अनुभव शंकराचार्य जी को न था। ‘काम अर्थात सैक्स‘ के बारे में एक ब्रह्मचारी को कोई अनुभव नहीं होता लिहाज़ा शंकराचार्य को उसके सामने चुप होना पड़ा। बस यही ख़ास था गार्गी में, बाक़ी विद्वान पति के संग रहने से दर्शन साहित्य की समझ उसमें थी और यह आज भी ऐसे पतियों की पत्नियों आ जाती है।
गार्गी एक गृहस्थ महिला थी, इसलिए काम विद्या में निपुण थी। आप भी एक विवाहित महिला हैं। ऐसी कौन सी बात है जो कि सैक्स के संबंध में गार्गी को तो पता थी लेकिन आप उससे अन्जान हैं ?
मैंने आपको गार्गी की तरह विदुषी कहा है तो ठीक ही कहा है।
अब मैं कहता हूं कि गार्गी का ज्ञान आपके सामने कम था।
सैक्स के बारे में गार्गी का ज्ञान केवल उसके व्यवहारिक पक्ष तक सीमित था जबकि आप उसके बायोलोजिकल पक्ष को भी जानती हैं और इतना अच्छा जानती हैं कि गार्गी के समय में कोई वैद्य भी इतना न जानता था जितना कि एक डाक्टर होने के कारण आप जानती हैं। तब भला बेचारी गार्गी तो क्या जानती ?
इस विषय में आपने जो लेख लिखे हैं, ऐसा कोई लाभकारी साहित्य भी गार्गी छोड़कर नहीं गई है, जबकि आपके लेख लंबे समय तक लोगों को लाभ पहुंचाते रहेंगे। गार्गी बस एक मामले में आपसे बढ़ी हुई है और वह यह है कि उसका शास्त्रार्थ आदि शंकराचार्य से हुआ और आपका महफ़ूज़ भाई जैसे लोगों से ही हो पाया। लेकिन उस नुक्सान की भरपाई किसी हद तक करने के लिए मैं हाज़िर हूं। मैं शंकराचार्य तो नहीं हूं लेकिन जिस धार्मिक-आध्यात्मिक क्षेत्र के वे विद्वान थे मैं भी उसी क्षेत्र का एक विद्यार्थी हूं। हैसियत तो ज़रूर उनसे कम है लेकिन हूं उसी क्षेत्र से और यह भी केवल दुनियावी शोहरत के ऐतबार से है वर्ना तो हो सकता है कि मेरी आत्मिक हैसियत उनसे ज़्यादा हो। इनसान की असली हैसियत तो उसका मालिक ही निर्धारित करता है। तब तक आपको और मुझे केवल इंतज़ार करना होगा, मरना होगा।
आपने अमरेंद्र का ज़िक्र किया।
उसके नाम में ‘इंद्र‘ शब्द जुड़ा हुआ है और इंद्र ‘मेनका‘ के बिना रह नहीं सकता। उसे भी आप मेनका दिखी होंगी तभी वह आपके पीछे लगा होगा और ‘अमर‘ होने के बावजूद वह आप पर ‘मर मिटा‘। इसमें ग़लती किसकी है और कितनी है ?
इस पर बहुत बातें हो चुकी हैं। उन्हें यहां दोहराना फ़िज़ूल है और मेरा उद्देश्य आपकी गरिमा पर चोट करना है भी नहीं। आपने ज़िक्र उठाया तो इसलिए याद दिलाना ज़रूरी है कि उस पचड़े में भी ‘ब्लाग संसद‘ पर हुई बहस में मैंने आपका ही साथ दिया था और उसी समय से मैंने आपको जाना भी था। आज भी मैं आपके साथ हूं, हरेक बहन के साथ हूं।
इसके बावजूद मैं अमरेंद्र को एक सीधा आदमी मानता हूं क्योंकि लोग कहते हैं कि वह इतना सीधा है कि सीधा शब्द भी उनके सामने टेढ़ा पड़ जाता है। उसकी प्रतिभा को भी आप स्वीकार कर चुकी हैं।
भाषा और साहित्य में निपुण होने का मतलब कभी चारित्रिक रूप से श्रेष्ठ होना हुआ ही नहीं करता। इसलिए आप उसकी कमज़ोरी को आधार बनाकर उसकी साहित्यिक प्रतिभा पर अनुचित रूप से प्रश्नचिन्ह मात्र अपनी रंजिश के कारण लगा रही हैं। बल्कि हिन्दी साहित्य या किसी भी भाषा का श्रृंगार प्रधान साहित्य अक्सर उसी काम की प्रेरणा देता है जो कि अमरेंद्र ने अपने सीधे होने के बावजूद किया। उसका आचरण एक सच्चे राजयोगी का चाहे न हो लेकिन एक सच्चे साहित्यकार का ज़रूर है। चोट खाए बिना कोई कालिदास बना हो तो बताइये। अमरेंद्र की वेदना को भी इसी नज़र से देखा जाना चाहिए।
जब मेनका को देखकर विश्वामित्र मोहित हो गए और आज तक किसी ने उन्हें लांछित नहीं किया तो फिर अमरेंद्र के चरित्र पर ही आपको क्यों शर्म आ रही है ?
वह बेचारा तो कोई तपस्वी भी नहीं है।
मैंने आज तक बेचारे अमरेंद्र का ब्लाग नहीं देखा है और न ही उससे कोई टिप्पणी ही पाई है। तब भी मैं वही कहूंगा जो कि न्याय की दृष्टि से कही जानी चाहिए।
वह पोस्ट लिख रहा है तो अपने अतीत को ही तो संजो रहा है और उसे इसका हक़ है। ब्लागिंग का मक़सद ही यही है। आपको कोई ऐतराज़ है तो आप उसे टिप्पणी देकर ज़ाहिर कर सकती हैं। आपको भी अपना नज़रिया रखने का पूरा हक़ है।
मैं नहीं समझता कि अमरेंद्र प्रचार पाने के मक़सद से यह सब कर रहा है। वह खुद ब्लाग जगत की एक ऐसी हस्ती है जिसे पढ़ना ही नहीं बल्कि उसका ज़िक्र करना भी स्थापित ब्लागर्स तक अपने लिए गौरव की बात समझते हैं। जनाब सतीश सक्सेना साहब की पोस्ट और उस पर आये बहुत से ब्लागर्स के कमेंट्स इसका सुबूत हैं। और न ही मुझे प्रचार के लिए आपके नाम का सहारा लेने की ज़रूरत है। मैं खुद ब्लाग जगत का एक ऐसा फ़र्द हूं जिसे हरेक पुराना हिंदी ब्लागर ज़रूर जानता है। अगर आप किसी ब्लागर के सामने मेरा नाम लें और वह मुझे नहीं जानता तो आप समझ लीजिए कि या तो यह नया है या फिर यह एक्टिव ब्लागर ही नहीं है। मेरे 4 ब्लाग्स पर मौजूद लगभग 6 हज़ार टिप्पणियां यह बताने के लिए काफ़ी हैं कि ब्लाग जगत मेरे नाम और मेरे ‘अमन के पैग़ाम‘ से ख़ूब वाक़िफ़ है। अब आप अपने डैडी की गोद में सू सू नहीं करतीं और मैंने तो ख़ैर कभी किया ही नहीं, यह बात ‘शेखर सुमन जी‘ से ज़्यादा ख़ुद आपको समझने की ज़रूरत है।
जब किसी की प्रेम नौका किनारे तक पहुंचने से पहले ही मंझधार में फंस जाती है तो फिर वह डूबकर मरता हुआ आशिक़ थोड़ी देर हाथ पैर भी मारता है और किनारे पर खड़े लोगों से फ़रियाद भी करता है। आपको जिस आदमी पर ‘शर्म‘ आ रही है, उसी आदमी पर मुझे तरस आ रहा है। अपना अपना नज़रिया है। आप यक़ीन कीजिए वक्त उसके ज़ख्म को न सिर्फ़ भर देगा बल्कि उसके ज़ख्म को एक ऐसा गुलाब बना देगा जो उसकी ज़िंदगी को हमेशा महकाता रहेगा।
नए साल के मौक़े पर उस बेचारे आशिक़ के लिए मैं यही दुआ करता हूं और यह एक ऐसी दुआ है जो कि स्वीकार कर ली गई है। यह ख़बर भी मैं आपको पेशगी दे रहा हूं।
मेरी शख्सियत के केवल उन्हीं पहलुओं को आप जानती हैं, जो कि खुद मैंने आपके सामने रखे हैं जबकि मेरा हरेक पहलू अभी आपके सामने नहीं आया है।
आपने जनाब अरविंद मिश्रा जी का भी ज़िक्र किया है और कहा है कि मैंने आपसे उनके बारे में राय मांगी थी। इतना कहकर आपने उनकी बुराई शुरू कर दी। मैंने आपसे उनके कथन आदि के बारे में राय नहीं मांगी थी बल्कि उनके इस नज़रिये के बारे में राय मांगी थी कि वे मुझे अपने ज़हन की खिड़कियां खोलने की सलाह दे रहे हैं। तब मैंने ब्लागर्स से पूछा था कि क्या आपको लगता है कि मेरे ज़हन की खिड़कियां बंद हैं जबकि मैं दूसरे पहलुओं के साथ ग्लैमर की दुनिया का हिस्सा भी हूं ?
जो राय आपने यहां दी है। उसे भी आपने वहां न दिया और पूछे गए सवाल का उत्तर दिए बिना आप ‘नाइस पिक्चर्स‘ कहकर लौट आईं।
मिश्रा जी ने आपको क्या कहा ?
मैंने यह नहीं पूछा था और न ही श्री अरविंद मिश्रा जी के व्यक्तित्व की आलोचना ही मुझे दरकार थी। आप उनके नज़रिए की समीक्षा करतीं तो ज़्यादा बेहतर होता। इसी के लिए मैंने आपको पुनः आमंत्रित किया था कि हो सकता है कि आप वहां पहुंचकर अपनी क़ीमती राय मुझे दे सकें।
उनके नज़रिये की आलोचना के बावजूद मैं खुद को उनसे छोटा मानता हूं और उन्हें अपने लिए आदरणीय। उनके नज़रिये से असहमत होने के बावजूद उनका आदर सम्मान किया जा सकता है और किया जाना चाहिए। हमारा नज़रियाती इख़तेलाफ़ एक दूसरे को आदर देने में या किसी नेक काम की सराहना करने में कभी बाधक नहीं होना चाहिए।
मैं किसी भी आदमी से नाराज़ नहीं होता क्योंकि किसी भी आदमी की सारी बातें कभी ग़लत नहीं हो सकतीं। उसकी दो चार या दस बातें ग़लत हैं तो एक हज़ार बातें सही भी हो सकती हैं। आख़िर वह हमारा भाई है या हमारा बड़ा है और उसे प्यार देना, उसका सम्मान करना हमारा फ़र्ज़ है। अगर हमें उससे प्यार है तो हमें चाहिए कि हम उसे बता दें कि ये बात ग़लत है, आपके लिए शोभनीय नहीं है। वह आज छोड़े या कल छोड़े, यह उस पर छोड़ दीजिए लेकिन आप उसका सम्मान करना मत छोड़िए, खुद उस आदमी को मत छोड़िए। अगर आपने उसे छोड़ दिया तो फिर आपने उसके सुधार का दरवाज़ा ही बंद कर दिया। दरवाज़े बंद करना मेरा काम नहीं है, आपका भी नहीं होना चाहिए। जीते-जी ये लोग प्रेम को नहीं समझेंगे तो मेरी मौत के बाद तो समझ ही जाएंगे और यह लेख तब भी आज की तरह ही ताज़ा रहेगा बल्कि आज से ज़्यादा उपयोगी और सार्थक हो जाएगा। अंत में सत्य ज़रूर प्रकट होता है। बेवक़ूफ़ आज कोई भी नहीं है। हां, लोग अभिनय करते हैं ताकि दूसरे की हिम्मत तोड़कर उससे जान छुड़ा सकें। लेकिन दरअस्ल यही लोग तो ज़रिया बनते हैं निष्पक्ष लोगों के लिए सही फ़ैसले तक पहुंचने का। जो निष्पक्ष होगा वह सत्य को पा लेगा और जो एंटरटेनमेंट के जुगाड़ में है, उसका दिल बहल जाएगा।
मैं दोनों तरह तैयार हूं। मेरी मज़ाक़ उड़ाने वाले भी मेरे काम ही आते हैं। मेरे पाठकों का और ख़ुद मेरा भी मनोरंजन ही करते हैं। कभी मैं ज़ाहिर करता हूं कि वाक़ई मैं उनसे बहुत परेशान हूं और वे समझते हैं कि मेरी दुखती रग उनके हाथ आ गई है और तब वे मुझे परेशान देखने के लिए टिप्पणियों का ढेर लगा देते हैं। उन्हें ख़ुश देखना मेरा मक़सद है। मुझे बुरा कहकर वे ख़ुश हो सकते हैं तो मुझे अच्छा लगता है। जब ब्लागिंग शुरू की तब अच्छा नहीं लगता था लेकिन अब लगता है।
आपने भाई और भतीजों के ईमान एक टिप्पणी की ख़ातिर बिकते देखे हैं। इसलिए आप चाहती हैं कि मैं आप को बहन कहकर दिखावा न करूं।
लेकिन आपने तो बीवियों को और माशूक़ाओं को भी बेवफ़ाई करते देखा होगा। क्या आपके देखने भर से या ऐसी घटनाओं के घटित होने के बाद लोगों का ऐतबार विवाह के पवित्र बंधन से उठ गया है ?
क्या मर्दों ने अब औरतों से प्यार करने से मुंह फेर लिया है ?
क्या अब लोगों ने औरतों से कह दिया है कि मुझे ‘साजन‘ और ‘हसबैंड‘ कहने का दिखावा न करो , मैंने बहुत औरतों को बेवफ़ाई करते हुए देखा है।
समाज में तलाक़ की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं लेकिन फिर भी लोग विवाह करते हैं। बल्कि तलाक़ ही तब मुमकिन है जबकि पहले विवाह हुआ हो। विवाह से भी और तलाक़ से भी दोनों ही चीज़ों से पता चलता है कि लोगों का विश्वास किसी भी बेवफ़ाई से कभी नहीं टूटता। जो लोग अपनी आत्मा में सच्चे होते हैं वे दूसरों पर भी विश्वास करते हैं।
हां, इतना ज़रूर है कि दूध का जला छाछ को भी फूंक फूंक कर पीता है लेकिन पीता ज़रूर है। दूध से जलने के बाद भी कोई पीना नहीं छोड़ देता, सिर्फ़ अपनी लापरवाही छोड़कर सतर्क हो जाता है। ग़लतियां यही सिखाती भी हैं। किसी एक से धोखा खाने के बाद सारे संसार से ही अपना विश्वास उठा लेने वाले नर-नारी भावनात्मक असंतुलन का शिकार हुआ करते हैं।
ऐसी कोई कमी मैं आपके अंदर नहीं देखना चाहता। इसलिए कृप्या आप इस पर विचार-सुधार कीजिएगा।
अगर मैं आपको बहन कहता हूं तो आपको बहन मानता भी हूं। काफ़ी समय से आपके ब्लाग पर मेरी टिप्पणियां प्रकाशित हो रही हैं। माडरेशन के बाद भी वे ऐसे ही प्रकाशित हो रही हैं जैसे कि वे पहले प्रकाशित होती थीं। दूसरे ब्लागर भाई बहिनों के साथ आपको भी मैं अपने आर्टिकल्स का लिंक जब-तब भेजता रहा हूं और निमंत्रण पाकर आप आती भी रही हैं।
क्या कभी आपने मेरे सार्वजनिक या एकान्तिक व्यवहार में कोई दोष पाया है ?
क्या कभी आपने अपने प्रति सम्मान में कोई कमी पाई है ?
यदि नहीं पाई है तो फिर आप क्यों कह रही हैं कि मुझे बहनों का सम्मान करना सीखना चाहिए ?
ऐसा कहकर आप अपने रीडर्स पर यह ज़रूर ज़ाहिर कर रही हैं कि मुझे बहनों का सम्मान करना नहीं आता। आपका यह कथन अनुचित भी है और मुझपर एक तरह से आक्षेप भी। आप बताइये कि आपको एक बहन के तौर पर सम्मान देने में कब और कहां कमी रह गई है ताकि मैं अपनी ग़लती सुधार सकूं ?
अन्यथा प्रमाण के अभाव में आपका वक्तव्य केवल यह साबित करेगा कि आपको न तो आदमियों की पवित्र भावनाओं की पहचान है और न ही आपको उनकी क़द्र करना आता है।
मैं आपको बहन कहता हूं क्योंकि मैंने रामपुर के एक आचार्य मौलाना को ऐसा करते हुए देखा है। वे एक संत आदमी थे और उनके साथी भी एक अच्छे चरित्र के मालिक हैं। ‘बिंदास बोलने वाले‘ भाई रोहित भी उनसे मिल चुके हैं। वे भी इस तथ्य की पुष्टि कर सकते हैं। मैं उन जैसा तो नहीं बन सका लेकिन उनसे जो थोड़ी बहुत अच्छी बातें मैंने सीखी हैं, उनमें से एक यह भी है कि औरतों से बात करो तो बहन और बेटी कहकर बात करो। वे खुद भी ऐसा ही करते थे।
मैंने पाया है कि यह तरीक़ा अपनी भावनाओं को पवित्र रखने के लिए असरदार है। हम जो कुछ बोलते हैं वह हमारे दिमाग़ से निकलता है और कानों के ज़रिये फिर से दिमाग़ तक पहुंचता है। जब हम कोई पवित्र शब्द बोलते हैं तो बारम्बार दिमाग़ से पवित्रता के भाव निकलते हैं और वापस भी पवित्र विचार ही पहुंचते हैं। जो काम हम बारम्बार करते हैं वह हमारी आदत बन जाती है और जो विचार हम बारम्बार दोहराते रहते हैं, वह हमारे मन में रूढ़ हो जाता है। मेरे मन में पवित्रता का भाव स्थायी हो जाए। इसीलिए मैं अपनी भाव शुद्धि के लिए आपका नाम लेने से पहले बहन शब्द का इस्तेमाल करता हूं और केवल आपके लिए ही नहीं करता बल्कि हरेक महिला ब्लागर के लिए ऐसा ही करता हूं। आज तक किसी ने आपत्ति नहीं की कि मैं उन्हें बहन कहकर क्यों संबोधित करता हूं ?
आप पहली महिला ब्लागर हैं जो बहन कहे जाने पर आपत्ति कर रही हैं।
अमरेंद्र आपको बहन नहीं मानता, उस पर भी आपको ऐतराज़ है और मैं आपको बहन मानता हूं और कहता भी हूं, इस पर भी आपको ऐतराज़ है। दिमाग़ तो ठीक है आपका ?
आख़िर आप चाहती क्या हैं ?
जब आपको इस बात पर ऐतराज़ नहीं है कि मैं आपको बहन मानता हूं तो फिर आप मेरे द्वारा बहन कहे जाने पर ऐतराज़ क्यों कर रही हैं ?
अपनी विवाहित स्त्री के अलावा तमाम स्त्रियों को उनकी आयु के अनुसार माता और बहिन कहना तो हमारी भारतीय संस्कृति है जिसकी प्रेरणा हमारे पूर्वजों ने भी दी है और हमारे बड़े आज भी देते हैं। ‘बहिन‘ कहे जाने पर ऐतराज़ करके आप भारतीय संस्कृति पर ही चोट कर रही हैं। विदेश में रहने का मतलब यह तो नहीं होना चाहिए।
मैं आपको बहन कहता ही रहूंगा, आपके ऐतराज़ के बावजूद भी। आपको इस बात पर ऐतराज़ है तो मत छापिए मेरी टिप्पणी अपने ब्लाग पर। कह दीजिएगा कि आप मुझे बहन कह रहे थे लिहाज़ा मैंने नहीं छापी आपकी टिप्पणी।
अभी जनाब सतीश सक्सेना साहब ने एक हमउम्र बहन को मां कह दिया। जिसके संबंध में उन्होंने ‘मां‘ शब्द का इस्तेमाल किंया, उसे तो बुरा नहीं लगा लेकिन एक ‘बोल्ड‘ औरत खुद ही बोल्ड हो गई और लिख मारी एक पूरी पोस्ट इसी बात पर कि हमउम्र औरत को ‘मां‘ क्यों कहा ?
जी हां, रचना बहन जी की बात कर रहा हूं। ये इतनी बोल्ड हैं कि अपने मुंह से खुद सतीश जी के ब्लाग पर कह रही हैं कि कहने वाले तो यह भी कह सकते हैं कि रात में रचना सतीश के साथ देखी गई।
ये है इनकी मानसिकता। जो बात किसी ने कही नहीं, उस बात की कल्पना अपने मन में कर ली और सार्वजनिक रूप से कह भी दी। खुद अपने बारे में ऐसी बात भी कह देंगी जो कि कालगर्ल के बारे में कही जाती है और कोई दूसरा आदमी उन्हें नहीं बल्कि किसी अन्य औरत को ‘मां‘ कह दे तो उस पर ऐतराज़ जताएंगी। वे भी ख़ुद को राष्ट्रवादी शो करती हैं और आप भी। उन्हें ‘मां‘ कहे जाने पर आपत्ति है और आपको ‘बहन‘ कहे जाने पर। इस मामले में केवल आप दो राष्ट्रवादिनियां ही एक जैसी हैं या दीगर राष्ट्रवादिनियां भी आपसे सहमत हैं ?
मेरा ख़याल है कि आप दो से कोई तीसरा इस मामले में सहमत नहीं है। आप दोनों को ही विदेशी हवा लग गई है। तभी आप मां और बहन के पवित्र संबोधन पर भी आपत्ति जता रही हैं। रचना जी भी विदेशों में जाने क्या-क्या करके आई हैं और आप तो रहती ही विदेश में हैं ?
अपनी राष्ट्रीय संस्कृति की पवित्रता को तिलांजलि देकर भी आपका राष्ट्रवाद अक्षुण्ण बना रहता है।
वाह, बहुत ख़ूब।
दरअस्ल आप लोगों का कोई उसूल है ही नहीं। बस एक तास्सुबी गुट है आप लोगों का। आप यह नहीं देखते कि ‘क्या कहा जा रहा है ?‘
बल्कि आप यह देखते हैं कि कहने वाला अपने गुट का है या नहीं ?
अगर अपने गुट का है तो फिर वह कुछ भी कहता रहे, उसके राष्ट्रवाद पर आंच आने वाली नहीं है।
आप खुद देख लीजिए, किसी ने आपको टोका तक नहीं है।
सुधार, मूल्य और नैतिकता से जैसे आपको कोई वास्ता ही नहीं है।
जब आप मेरी बहन हैं तो आपको मेरे द्वारा बहन कहे जाने पर आख़िर आपत्ति क्यों है ?
आप खुद कह रही हैं कि
‘भारत में विश्व बंधुत्व है। इसलिए आप हों या कोई और हो वह भाई समान ही है।‘
जब आप मुझे अपना भाई स्वीकार कर रही हैं तो फिर आप क्यों चाहती हैं कि मैं अपनी बहन को बहन न कहूं ?
आपने कहा कि
‘मेरे नाम के आगे बहिन लगाकर किसी को मेरा रिश्तेदार बनने की ज़रूरत नहीं है।‘
मैं आपका रिश्तेदार नहीं बन रहा हूं और न ही मैं पहला आदमी हूं जिसने आपको बहन कहा है। मुझसे पहले बहुत लोग आपको बहन कह चुके हैं। आपने किसी से ऐसा नहीं कहा जैसा कि आप मुझसे कह रही हैं। बहुत लोगों ने आपकी सुंदरता और अक्लमंदी की तारीफ़ की है , आपकी हरेक पोस्ट पर ऐसी टिप्पणियां मौजूद हैं, आपने सभी का आभार माना लेकिन वही बात जब मैंने कही तो आप मेरा आभार तो क्या मानतीं, उल्टे आप नाराज़ हो गईं।
ऐसा क्यों ?
ये दो पैमाने क्यों ?
एक ही काम के लिए दूसरों का आभार मानना और मुझ पर ऐतराज़ धर देना।
आपकी पोस्ट पर मुझे आपसे एक सवाल पूछना था।
जिसके लिए मैंने आपसे अनुमति मांगी थी।
जब तक आपने अनुमति नहीं दी तब तक मैंने आपसे उसे अपने ब्लाग पर पूछा भी नहीं।
मुझ जैसी शिष्टता भी आपको कम ही मिलेगी।
अब चूंकि आपने सवाल पूछने की इजाज़त दे दी है तो कृपया यह बताइये कि
1. आपका कहना है कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी देश के लिए ख़तरा हैं।
2. आप कहती हैं कि हिंदू होकर हिंदुओं का अपमान करना गुनाह है।
3. आप कहती हैं कि ‘हमारे देश की अंधी , गुलाम और चापलूस जनता क्या वोट दे देगी ग़द्दार कलियुगी विभीषणों को ?
क- आप खुद कह रही हैं कि हमारे देश की जनता अंधी, गुलाम और चापलूस है। अंधा आदमी तो अंधेपन के ही काम करेगा और अगर वह चापलूस और गुलाम भी है, तब तो सौ फ़ीसद वह ग़लत चुनाव ही करेगा। अगर आप देश की जनता को अंधा, गुलाम और चापलूस मानती हैं तो फिर आप किस आधार पर उम्मीद करती हैं कि आने वाले समय में देश की जनता केंद्र में सही नेता को देश की बागडोर सौंपे ?
ख- आप ख़ुद देश की जनता को अंधा, गुलाम और चापलूस कहकर हिंदुओं का अपमान कर रही हैं। क्या आप ख़ुद को गुनाहगार नहीं मानतीं ?
ग- गुनाहगारों को आप देश से निकाले जाने की बात कह रही हैं और निकली ख़ुद बैठी हैं। जिन्हें आप निकाले जाने के लायक़ मानती हैं, वे तो देश में हैं और आप खुद विदेश में जबकि आप खुद को देशभक्त मानती हैं ?
घ- जब हमारे देश से देशभक्त लोग करिअर के लिए विदेश भाग जाएंगे, तब देश स्वतः ही ऐसे लोगों को बोलबाला हो जाएगा, जिनका कि नहीं होना चाहिए। अगर आज देश ग़लत हाथों में है तो इसके लिए आप जैसे लोगों का विदेश पलायन भी एक बड़ा कारण है।
ड- आप जैसे लोग विदेश चले तो जाते हैं लेकिन उनका मन हमेशा भारत में ही पड़ा रहता है। आप कभी उस देश के हितों के बारे में उस तरह सोच ही नहीं पाते जैसे कि भारत के बारे में सोचते रहते हैं और भारत के लिए कर कुछ पाते नहीं , सिवाय ख़ाली-पीली की भड़काऊ भाषणबाज़ी के। आप न घर के रहते हैं और न ही कभी घाट के हो पाते हैं। भारत की चिंता हम पर छोड़ दीजिए और जिस देश का नमक-पानी खा पी रही हैं, जहां आप अपनी सेवाएं देकर माल समेट रही हैं, उसके लिए कुछ ऐसा कीजिए जैसा कि आप भारत के लिए करना चाहती हैं। जिस देश में आपका शरीर परवान चढ़ रहा है और आपका रूतबा बुलंद हो रहा है। उसे बुलंद करने के बारे में सोचिए और भारत के लिए अच्छा काम करने वालों को सपोर्ट दीजिए। इस तरह आप उस देश का भला करने के साथ भी उस देश का भला कर सकेंगी।
च- विदेशों के प्रति आस्थावान होने का जो इल्ज़ाम मुसलमानों के सर मढ़ा जाता है। उसी जुर्म के दोषी हिंदू कहलाने वाले आप सभी प्रवासी भारतीय भी हैं। आपका दिल क्यों उस देश में नहीं टिकता जो कि आपको खाना-कपड़ा ही नहीं दे रहा है, आपका रूतबा भी बुलंद कर रहा है।
छ- ऐसा करके आप जैसे प्रवासी उस देश से ग़द्दारी करते हैं जिसमें कि वे रहते हैं और भारत से पलायन करके तो पहले ही वे ग़द्दारी कर चुके होते हैं। ऐसे ग़द्दारों की एक पूरी फ़ौज विश्व भर में फैली हुई है और इस पर तुर्रा ये कि अपने देश पर मर मिटने वाले मुसलमानों पर ग़द्दारी का शक करके खुद को देशभक्त सा ज़ाहिर करते हैं। इनसे चंदे लेने के लिए देश के अंधे, गुलाम और चापलूस लोग इनकी हां में हां मिलाते हैं।
ज- मुझ जैसा साफ़ कहने वाला आदमी जब इनसे सवाल करने करने की अनुमति चाहता है तो कहते हैं कि हमारे ब्लाग पर ही सवाल कर लीजिए। सवाल छोटा सा हो तो टिप्पणी बाक्स में किया जा सकता है। लेकिन बात कुछ लंबी हो तो फिर अपने ही ब्लाग का आसरा लेना पड़ता है।
ण- इसके बावजूद भी इस देश का मुसलमान आपको कभी ग़द्दार नहीं कहेगा क्योंकि वह जानता है कि अपनी मिट्टी से जुड़ाव, अपने तीर्थ से जुड़ाव स्वाभाविक है। वह महसूस करेगा कि आप अपने वतन से दूर रहकर कितना भी अच्छा खा-कमा लें लेकिन फिर भी आपको जो संतुष्टि अपने देश की छाछ-रोटी में मिलेगा वह आपको पिज़्ज़ा-बर्गर में कभी नहीं मिलेगा। मुसलमान आपको कभी इल्ज़ाम नहीं देता और न ही कभी देगा। आप भी मुसलमानों को बिना बात इल्ज़ाम देने की आदत से बाज़ आईये।
त- आपका दावा है कि आप साफ़ साफ़ बात कहती हैं। आपको साफ़ साफ़ सुनने की आदत भी होगी और अगर नहीं है तो प्लीज़ डाल लीजिए। साफ़ साफ़ कहना हर वह आदमी जानता है जो कि अंधा, गुलाम और चापलूस नहीं है। आपके ब्लाग का स्क्रीन शाट महफ़ूज़ कर लिया गया है इसलिए कृपया अपने मज़मून में कोई एडिटिंग न करें और न ही कोई टिप्पणी डिलीट करने की बचकानी कोशिश करें।
थ- आपने देश की जनता को अंधा, गुलाम और चापलूस कहा है। देश की जनता में तो हिंदू भी हैं जो कि भगवा का सम्मान करते हैं और उनके आध्यात्मिक गुरू भी जो कि पवित्र भगवा रंग के लिबास में ही रहते हैं और उसी का प्रचार करते हैं। आपके कहे के मुताबिक़ तो वे सभी अंधे, गुलाम और चापलूस हैं।
क्या यह भगवा रंग का और उसे धारण करने वालों का अपमान नहीं माना जाएगा ?
द- कुछ हिंदू आध्यात्मिक गुरू और मठ तो खुलकर कांग्रेस का समर्थन करते हैं। क्या उन्हें मात्र इस कारण अंधा मान लिया जाए कि वे कांग्रेस समर्थक हैं ?
ध- आपकी बात के लपेटे में आकर भी भगवा रंग और भगवाधारियों का अपमान हो रहा है। हालांकि आपसे अन्जाने और आवेश में ऐसा हो रहा है। कृपया अपने कथन पर विचार करें। आप कांग्रेस का विरोध करना चाहती हैं तो ज़रूर करें। मैं कांग्रेस का दीवाना हरगिज़ नहीं हूं। इस संबंध में मेरे राजनैतिक विचार क्या हैं ? भाई मान जी को भी अवगत करा चुका हूं लेकिन आपसे यही चाहता हूं कि जिस गुनाह का इल्ज़ाम आप सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर धर रही हैं, कम से कम आप खुद तो उस गुनाह की गुनाहगार न बनें।
बातें तो अभी कुछ और भी हैं लेकिन इस लेख को पोस्ट करना ही अब मुनासिब होगा क्योंकि नया साल बिल्कुल क़रीब आ लगा है।
आइये आप हम सब अपने मालिक से दुआ करें कि
‘इहदिनस्सिरातल मुस्तक़ीम. सिरातल्-लज़ीना अनअमता अलैहिम, ग़ैरिल मग़ज़ूबि अलैहिम वलज़्ज़ाल्लीन‘
-अलकुरआन, अलफ़ातिहा
‘दिखा हमको सीधा रास्ता. रास्ता उन लोगों का जिन पर तेरा ईनाम हुआ, जिन पर न तो तेरा कोप हुआ और न ही जो राह से भटके.‘ अब हम इसी भाव को वेद के पवित्र शब्दों में दोहराएंगे
अग्ने नय सुपथा राये अस्मान विश्वानि देव वयुनानि विद्वान।
युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठां ते नमऽउक्तिं विधेम ।।
-यजुर्वेद 40, 16
युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठां ते नमऽउक्तिं विधेम ।।
-यजुर्वेद 40, 16
हे सुख के दाता स्वप्रकाशस्वरूप सब को जाननेहारे परमात्मन् ! आप हम को श्रेष्ठ मार्ग से संपूर्ण प्रज्ञानों को प्राप्त कराइये और जो हम में कुटिल पापाचरणरूप मार्ग है उस से पृथक कीजिए। इसीलिए हम लोग नम्रतापूर्वक आपकी बहुत सी स्तुति करते हैं कि हम को पवित्र करें।
‘वेद कुरआन के एकत्व‘ को जानकर हम सभी भाई-बहनों को एक हो जाना चाहिए और नफ़रत की हरेक बेबुनियाद दीवार को गिराकर सारे विश्व के लोगों को एक परिवार की तरह एक दूसरे के लिए परस्पर कल्याणकारी बन जाना चाहिए। तब न तो कोई राजनैतिक सीमा और न ही कोई दूसरी सीमा एक इंसान को दूसरे इंसान से दूर करेगी। दूरियों को मिटाने के उद्देश्य से ही यह संवाद आपसे किया जा रहा है
‘गार्गी जैसी विदुषी और मेनका जैसी संुदर मेरी प्यारी परदेसी बहना‘
दुआ और एक प्यार भरे संबोधन के साथ मैं पोस्ट का ‘द एंड‘ करता हूं। उम्मीद है कि थोड़ा झुंझलाने के बाद आप मुस्कुराकर मुझे क्षमा कर देंगी।
मालिक आपको हरेक ख़ुशी दे इस दुनिया में भी और उस दुनिया में भी और ऐसा ही मालिक मेरे साथ भी करे और हर उस आदमी के साथ करे जो मेरा और आपका ब्लाग ज़्यादा से ज़्यादा पढ़ता है या कम पढ़ता है या सिरे से पढ़ता ही नहीं है।
वंदे ईश्वरम्
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डॉ जमाल,
दुष्ट भावना से किया गया अनर्गल प्रलाप है तुम्हारा यह लेख।
पाठक मूर्ख नहीं है।
मान(Man) नें तुमसे कोई माफ़ी नहीं मांगी.
लखनौ ब्लोगर एसोसियेशन के लिये कलंक है यह लेख।
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सर्वे भवन्तु सुखिनः । सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु । मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्॥
सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें, और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े .
नव - वर्ष २०११ की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
@ अशोक जी ! आपकी भावनाओं का स्वागत है ।
@ झूठ नष्टक ! अशोक जी आपसे सहमत नहीं हैं ।
2. मान जी के साहस से आपको प्रेरणा लेकर आत्मिक बल अर्जित करना चाहिए न कि उन जैसे नैतिक वीरों के आत्म बल पर वार करना चाहिए ।
आप जैसे लोग मान जी के दोस्त हैं या दुश्मन ?
आप अपने ही किसी धार्मिक गुरू से कन्फ़र्म कर लें ।
3. कृपया देखिये कि बहन कहने पर भी अब ऐतराज कर रही हैं देश में पलने और विदेश में बढ़ने वाली मेरी देशबाला बहन दिव्या जी इस लिंक पर
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