और वर्ष की पहली नज़्म - डा श्याम गुप्त
कदम बढ़ते रहें ....न कोइ शिकवा न शिकायत है ज़िंदगी तुझसे |
क्या मिला क्या न मिला न कोइ पूछे हमसे |
जो मिला अच्छा मिला रब की नियामत तो मिली,
बीता ये साल नए वर्ष की मंजिल तो मिली।
हम दुआ करते हैं ,सब ये दुआ करते रहें,
नई मंजिल पे सदा कदम ये बढ़ते रहें।
ज़िंदगी रोज़ नए रंग में ढलती जाए,
ज़िंदगी रोज़ नए गुल बनी खिलती जाए।
और क्या मांगूं भला ज़िंदगी अब तुझसे ,
जो भी जैसा भी मिले,अच्छा मिले सब तुझसे ॥
श्याम' आये न मेरे देश पे संकट कोइ,
मिट ही जाए जो इसे आँख दिखाए कोइ।
नए साल की पहली पोस्ट.प्यारी रचना....अच्छी लगी.
नव वर्ष पर आपको ढेर सारी बधाइयाँ.
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'पाखी की दुनिया' में नए साल का पहला दिन.
आदरणीय श्याम जी,बहुत अच्छी सोच की नज्म लिखी है आपने,बधाई। साथ ही मेरी यह कामना है कि आप नज्म के शीर्षक "कदम बढ़्ते रहें...." को सार्थक करते हुए अनवरत आगे बढ़ते रहें। आपको सपरिवार नूतन वर्ष की ढेरों हार्दिक शुभकामनाएं। सहर्ष स्वीकार करें।
धन्यवाद सुधीर और पाखी---नव वर्ष की शुभकामनायें