माना किहमें कदमो पै झुकने कीबुरी आदत है,
नक्शे कदम पे गैरों के चलने की बुरी आदत है।
रही है अपनी मेधा हजारों साल तक बंधक ,
मानाकि हमें गुलामी मैं रहने की बुरी आदत है ।
सिर्फ़ यही एक वज़ह नही की पिछलग्गू हैं हम ,
अपनी संस्कृति को भूलते रहने की बुरी आदत है ।
अपनीप्राचीन दीवारों से सबक लेकर हम ,
नयी दीवारें खडी नहीं करते , बुरी आदत है ।
वहुत खो चुके अब तो समझें जिन्दा कौमहैं हम ,
जिसको देश की मिटटी पे मिटने की बुरी आदत है ।
दुनिया चलेगी फ़िर तेरे नक्शे कदम पे, श्याम ,
नव सृजनके गीत तुझे गढने की बुरी आदत है ।
नक्शे कदम पे गैरों के चलने की बुरी आदत है।
रही है अपनी मेधा हजारों साल तक बंधक ,
मानाकि हमें गुलामी मैं रहने की बुरी आदत है ।
सिर्फ़ यही एक वज़ह नही की पिछलग्गू हैं हम ,
अपनी संस्कृति को भूलते रहने की बुरी आदत है ।
अपनीप्राचीन दीवारों से सबक लेकर हम ,
नयी दीवारें खडी नहीं करते , बुरी आदत है ।
वहुत खो चुके अब तो समझें जिन्दा कौमहैं हम ,
जिसको देश की मिटटी पे मिटने की बुरी आदत है ।
दुनिया चलेगी फ़िर तेरे नक्शे कदम पे, श्याम ,
नव सृजनके गीत तुझे गढने की बुरी आदत है ।
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