पढ़िए, सोचिये और तब बोलिए जनाब
अयाज़ भाई ने डॉ. श्याम गुप्ता जी के पोस्ट पर आपत्ति जताई है, जनाब आप लोंगो कि सोच इतनी संकीर्ण क्यों है मैं आज तक नहीं समझ पाया. यहाँ पर किसी भी धर्म कि अच्छाइयों को बखान करने कि रोक लगाने कि बात नहीं कि जा रही है. अच्छी बातें किसी भी धर्म कि हों, मानवता के हित में ही होती है. लेखक को धर्म जाती संप्रदाय से हटकर मानवता के हित में सोचना चहिये ताकि एक अच्छे समाज का सृजन हो, आपस में भाई चारा बढे, प्रेम बढे, एक अच्छा माहौल और सुखद परम्परा कि शुरुआत हो, ताकि जब हम कभी मिले तो आपस में कोई तनाव न हो बल्कि यह लगे कि दो भाई मिल रहे हो, मेरे दोनों पोस्ट में कट्टरता के विरोध में लिखा गया था हालाँकि उसमे कुछ बाते आपत्तिजनक थी जो मुझे नहीं लिखना चाहिए था और उसके लिए मैं माफ़ी भी मांग चुका हू. किन्तु उसका सार वह नहीं था जो कुछ लोंगो ने समझा, मैंने हमेशा यह देखा है कि जो बाते अच्छी होती है उस पर टिप्पणिया नहीं की जाती बल्कि विवादित बातो पर जम कर की जाती है. ऐसा नहीं है कि मैं इससे अछूता हू, मैं भी उसी में शामिल हू.
अब जरा गौर फरमाइए ?
मैंने या मिथिलेश जी ने धार्मिक विवाद बंद करने कि बात की थी न कि धार्मिक लेख बंद के लिए. एल बी ए में हम जैसे तुच्छ लोंगो को पदाधिकारी होना कोई मायने नहीं रखता. जो वास्तव में इसके कर्ता धर्ता व पदाधिकारी है उनका किसी बात पर कोई कमेन्ट नहीं आया और न ही उन्होंने कोई आपत्ति जताई है क्यों? मुझे नहीं पता. हम लोंगो का नाम भले ही पदाधिकारी में है किन्तु हम आपसे छोटे ही है. आप हमारे बड़े भाई के समान है. आपका ओहदा फ़िलहाल हमसे कही ऊँचा है. आपके अनुभव सीख लेने लायक है, जरा आप खुद सोचिये एक दूसरे पर कीचड़ उछल कर हम लोंगो को क्या मिलेगा. भाई श्याम गुप्ता का भी मैं बहुत सम्मान करता हू. उनकी विद्वता के के सामने नतमस्तक हू. उन्होंने कभी किसी धरम की बुराई नहीं लिखी, उनका लेख ज्ञानवर्धक होता है. मैंने यह कहा था कि धार्मिक विवाद के लेख न लिखे, जिससे किसी को ठेश पहुंचे. किसी भी धर्म के बारे में यदि कोई विद्वान अच्छी बाते लिखता है तो यह उसकी महानता है कि वह हमें अच्छी जानकारियों से परिपूर्ण करता है. फिर भी आप को लगता है कि हम लोग आपको मुसलमान मानकर पक्षपात कर रहे है तो जो चाहे जम कर लिखे. और सभी लिखे. आपकी अंगुली है जनाब- की- बोर्ड भी आपका, जम कर अंगुली करे.. और फिर प्रकाशित करे. लेकिन पक्षपात का आरोप लगाने से पहले एक बार फिर पढ़ ले इसमें किसी हिन्दू या मुसलमान के लिए नहीं सबके लिए कहा गया है.
जरा एक बार गौर से पढियेगा जनाब...................
सभी सम्म्मानित ब्लोगेर भाइयों, पोस्ट ऐसे होने चाहिए जिससे समाज को नयी दिशा मिले. मेरी निगाह में सभी धर्म का सार एक ही है. ईश्वर की आराधना का तरीका अलग-अलग हो सकता है. किन्तु हम सब उसी एक ईश्वर की पूजा, वंदना, आराधना करते है. जो सम्पूर्ण विश्व को चला रहा है. सभी धर्म यही कहते है. की इश्वर एक है फिर लडाई कैसी ? बस हमें अपनी सोच का तरीका बदलना होगा. यदि एक धर्म को मानने वाला दूसरे धर्म को मानने वाले को कहे कि वह गुमराह है तो इसे मैं पूर्ण रूप से गलत मानता हू . मैं कभी धर्म के बारे लिखना नहीं चाहता था, परन्तु पिछले कुछ दिनों से कुछ लोंगो में अपने धर्म को बड़ा बताने की परम्परा की शुरुआत हुई थी उससे मैं अज़ीज़ आ गया था. यदि कोई किसी के धर्म को नहीं मानता तो भी वह किसी न किसी बिधि से इश्वर की उपासना कर ही रहा है. खुदा, भगवान या कोई नाम देने से ईश्वर का स्वरूप नहीं बदल जाता. वह अनंत परमेश्वर एक ही है जिसकी उपासना किसी न किसी रूप में सभी करते है. बस ईश्वर में श्रद्धा होनी चाहिए. अपने को बड़ा व दूसरों को नीचा दिखाने की परम्परा बंद करे. कोई ऐसी पोस्ट इस ब्लॉग पर न लिखे जिससे किसी की भावनाओ को ठेस पहुंचे. यदि मेरे पोस्ट द्वारा किसी को थेश पहुंची थी तो मैं माफ़ी चाहता हू. मेरे कहने का मतलब वह नहीं था जिसे अधिकतर लोंगो ने समझा.
मेरे सम्मानित भाइयों आइये अपनी रचनाओ के माध्यम से इस ब्लॉग को हम ऐसा बनाये जो सभी के हित में हो और सभी का मार्गदर्शन करे. धार्मिक विवाद में पड़कर बेवजह बात करने से कुछ मिलने वाला नहीं है. वही लिखे जिससे सम्पूर्ण मानव समाज का हित हो.
अयाज़ भाई ने डॉ. श्याम गुप्ता जी के पोस्ट पर आपत्ति जताई है, जनाब आप लोंगो कि सोच इतनी संकीर्ण क्यों है मैं आज तक नहीं समझ पाया. यहाँ पर किसी भी धर्म कि अच्छाइयों को बखान करने कि रोक लगाने कि बात नहीं कि जा रही है. अच्छी बातें किसी भी धर्म कि हों, मानवता के हित में ही होती है. लेखक को धर्म जाती संप्रदाय से हटकर मानवता के हित में सोचना चहिये ताकि एक अच्छे समाज का सृजन हो, आपस में भाई चारा बढे, प्रेम बढे, एक अच्छा माहौल और सुखद परम्परा कि शुरुआत हो, ताकि जब हम कभी मिले तो आपस में कोई तनाव न हो बल्कि यह लगे कि दो भाई मिल रहे हो, मेरे दोनों पोस्ट में कट्टरता के विरोध में लिखा गया था हालाँकि उसमे कुछ बाते आपत्तिजनक थी जो मुझे नहीं लिखना चाहिए था और उसके लिए मैं माफ़ी भी मांग चुका हू. किन्तु उसका सार वह नहीं था जो कुछ लोंगो ने समझा, मैंने हमेशा यह देखा है कि जो बाते अच्छी होती है उस पर टिप्पणिया नहीं की जाती बल्कि विवादित बातो पर जम कर की जाती है. ऐसा नहीं है कि मैं इससे अछूता हू, मैं भी उसी में शामिल हू.
अब जरा गौर फरमाइए ?
मैंने या मिथिलेश जी ने धार्मिक विवाद बंद करने कि बात की थी न कि धार्मिक लेख बंद के लिए. एल बी ए में हम जैसे तुच्छ लोंगो को पदाधिकारी होना कोई मायने नहीं रखता. जो वास्तव में इसके कर्ता धर्ता व पदाधिकारी है उनका किसी बात पर कोई कमेन्ट नहीं आया और न ही उन्होंने कोई आपत्ति जताई है क्यों? मुझे नहीं पता. हम लोंगो का नाम भले ही पदाधिकारी में है किन्तु हम आपसे छोटे ही है. आप हमारे बड़े भाई के समान है. आपका ओहदा फ़िलहाल हमसे कही ऊँचा है. आपके अनुभव सीख लेने लायक है, जरा आप खुद सोचिये एक दूसरे पर कीचड़ उछल कर हम लोंगो को क्या मिलेगा. भाई श्याम गुप्ता का भी मैं बहुत सम्मान करता हू. उनकी विद्वता के के सामने नतमस्तक हू. उन्होंने कभी किसी धरम की बुराई नहीं लिखी, उनका लेख ज्ञानवर्धक होता है. मैंने यह कहा था कि धार्मिक विवाद के लेख न लिखे, जिससे किसी को ठेश पहुंचे. किसी भी धर्म के बारे में यदि कोई विद्वान अच्छी बाते लिखता है तो यह उसकी महानता है कि वह हमें अच्छी जानकारियों से परिपूर्ण करता है. फिर भी आप को लगता है कि हम लोग आपको मुसलमान मानकर पक्षपात कर रहे है तो जो चाहे जम कर लिखे. और सभी लिखे. आपकी अंगुली है जनाब- की- बोर्ड भी आपका, जम कर अंगुली करे.. और फिर प्रकाशित करे. लेकिन पक्षपात का आरोप लगाने से पहले एक बार फिर पढ़ ले इसमें किसी हिन्दू या मुसलमान के लिए नहीं सबके लिए कहा गया है.
जरा एक बार गौर से पढियेगा जनाब...................
एल बी ए पर धार्मिक लड़ाई बंद हो
सभी सम्म्मानित ब्लोगेर भाइयों, पोस्ट ऐसे होने चाहिए जिससे समाज को नयी दिशा मिले. मेरी निगाह में सभी धर्म का सार एक ही है. ईश्वर की आराधना का तरीका अलग-अलग हो सकता है. किन्तु हम सब उसी एक ईश्वर की पूजा, वंदना, आराधना करते है. जो सम्पूर्ण विश्व को चला रहा है. सभी धर्म यही कहते है. की इश्वर एक है फिर लडाई कैसी ? बस हमें अपनी सोच का तरीका बदलना होगा. यदि एक धर्म को मानने वाला दूसरे धर्म को मानने वाले को कहे कि वह गुमराह है तो इसे मैं पूर्ण रूप से गलत मानता हू . मैं कभी धर्म के बारे लिखना नहीं चाहता था, परन्तु पिछले कुछ दिनों से कुछ लोंगो में अपने धर्म को बड़ा बताने की परम्परा की शुरुआत हुई थी उससे मैं अज़ीज़ आ गया था. यदि कोई किसी के धर्म को नहीं मानता तो भी वह किसी न किसी बिधि से इश्वर की उपासना कर ही रहा है. खुदा, भगवान या कोई नाम देने से ईश्वर का स्वरूप नहीं बदल जाता. वह अनंत परमेश्वर एक ही है जिसकी उपासना किसी न किसी रूप में सभी करते है. बस ईश्वर में श्रद्धा होनी चाहिए. अपने को बड़ा व दूसरों को नीचा दिखाने की परम्परा बंद करे. कोई ऐसी पोस्ट इस ब्लॉग पर न लिखे जिससे किसी की भावनाओ को ठेस पहुंचे. यदि मेरे पोस्ट द्वारा किसी को थेश पहुंची थी तो मैं माफ़ी चाहता हू. मेरे कहने का मतलब वह नहीं था जिसे अधिकतर लोंगो ने समझा.
मेरे सम्मानित भाइयों आइये अपनी रचनाओ के माध्यम से इस ब्लॉग को हम ऐसा बनाये जो सभी के हित में हो और सभी का मार्गदर्शन करे. धार्मिक विवाद में पड़कर बेवजह बात करने से कुछ मिलने वाला नहीं है. वही लिखे जिससे सम्पूर्ण मानव समाज का हित हो.
अब बताइए इसमें गलत क्या है?
@ हरीश जी ! इस साझा ब्लाग पर किसी को भी धर्मग्रंथों को प्रमाण के रूप में पेश करने की अनुमति नहीं होनी चाहिए वरना जो उसके मत से असहमत है वह सवाल ज़रूर उठाएगा और तब जवाब दिया जाना चाहिए ।
अगर आपके पास तार्किक उत्तर नहीं हैं तो फिर पुराणों को विज्ञान का स्रोत बताकर भ्रम न फैलाया जाए ।
सभी धर्म न तो एक ईश्वर की पूजा करना बताते हैं और न ही वे सब के सब मानव जाति के लिए समान रूप से कल्याणकारी हैं ।
धर्म के नाम से जाने जा रहे कितने ही दर्शन तो ईश्वर का वजूद ही नहीं मानते !
पता नहीं आपने कहाँ पढ़ लिया कि सभी धर्म एक ही ईश्वर की पूजा करना बताते हैं ?
सही बात आपको बताई जाती है तो इसे आप शास्त्रार्थ कहने के बजाय विवाद करना समझकर अल्पबुद्धि का परिचय क्यों देते हैं बार बार ?
@ हरीश जी ! जब पोस्ट लेखक डा. श्याम गुप्ता जी को कोई ऐतराज नहीं है हमारे द्वारा सवाल पूछने पर बल्कि वह चाहते हैं कि उनसे सवाल पूछे जाएँ तो आपको क्या ऐतराज है भाई ?
जो सवाल आपसे पूछा है उसका जवाब आपने अभी तक क्यों नहीं दिया है ?
@ गुप्ता जी ! आपने भी नहीं बताया कि भागवत में महात्मा बुद्ध को विष्णु जी का पापवतार क्यों बताया गया है ?
अनवर जमाल,
" सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया"
और गीता ही क्या मुझे तो यह चारों वेदों , १८ पुराणों , १०८ उपनिषदों में भी कहीं नहीं मिला . रामायण - महाभारत में भी यह सूत्र नहीं है और किसी भी स्मृति में नहीं है . ज़रूर मेरी नज़र से चूक हुई होगी . अब अगर आप मुझ से ज़्यादा जानकार हैं तो कृपया बताएं कि इतनी महान शिक्षा जो मैं अक्सर अपने हिन्दू भाईयों के मुंह से सुनता रहता हूँ , वह आखिर है कौन से ग्रन्थ में ?
यही प्रश्न है तुम्हारा?
जब तुम मानते हो यह अच्छी महान शिक्षा है, तो अपनाओं न, अच्छी बात तो बस ग्रहण करनी चाहिए।
कहां है? किस ग्रंथ में है? क्या करना है तुम्हें?
अपने ज्ञानीपने का ढोंग रहने दो और गुण कहीं भी मिले स्वीकार करो।
अच्छी बातों में भी अडंगे से बाज़ नहीं आओगे।
इसीलिये तुम्हें और अयाज़ को रोका जाता है।
वाह भाई, डेस्ट्रोयर भी और वो भी झूठ्के..क्या बात है...क्या बात कही है...मान गये...