Tuesday, January 4, 2011
सृष्टि महाकाव्य पंचम सर्ग ,तृतीय भाग ...डा श्याम गुप्त....
सृष्टि महाकाव्य-(ईषत- इच्छा या बिगबेंग--एक अनुत्तरित उत्तर )-- -------वस्तुत सृष्टि हर पल, हर कण कण में होती रहती है, एक सतत प्रक्रिया है , जो ब्रह्म संकल्प-(ज्ञान--ब्रह्मा को ब्रह्म द्वारा ज्ञान) ,ब्रह्म इच्छा-एकोहं बहुस्याम ...( इच्छा) व सृष्टि (क्रिया- ब्रह्मा रचयिता ) की क्रमिक प्रक्रिया है --किसी भी पल प्रत्येक कण कण में चलती रहती है, जिससे स्रिष्टि व प्रत्येक पदार्थ की उत्पत्ति होती है । प्रत्येक पदार्थ नाश(लय-प्रलय- शिव ) की और प्रतिपल उन्मुख है।
(यह महाकाव्य अगीत विधामें आधुनिक विज्ञान ,दर्शन व वैदिक-विज्ञान के समन्वयात्मक विषय पर सर्वप्रथम रचित महाकाव्य है , इसमें -सृष्टि की उत्पत्ति, ब्रह्माण्ड व जीवन और मानव की उत्पत्ति के गूढ़तम विषयको सरल भाषा में व्याख्यायित कियागया है | इस .महाकाव्य को हिन्दी साहित्य की अतुकांत कविता की 'अगीत-विधा' के छंद - 'लयबद्ध षटपदी अगीत छंद' -में निवद्ध किया गया है जो एकादश सर्गों में वर्णित है).... ...... रचयिता --डा श्याम गुप्त .....
सृष्टि - अगीत महाकाव्य--पन्चम सर्ग--अशान्ति खन्ड..कुल ३७ छंद --.इस सबसे क्लिष्ट व जटिल सर्ग में साम्य अंतरिक्ष में ॐ की प्रतिध्वनिसे जो हलचल हुई उससे व्यक्त मूल तत्व के कणों में गति से किस तरह से मूल ऊर्जा व अन्य ऊर्जाओं की व अन्य कण-प्रतिकण , फिर विभिन्न पदार्थ , भाव तत्व, शक्तियां , समय , अंतरिक्ष के पिंड आदि की उत्पत्ति हुई , इसका भौतिक, रासायनिक, आणुविक जटिल व जटिलतम प्रक्रियाओं का वर्णन का वैदिक व्याख्या व आधुनिक विज्ञान से तादाम्यीकरण किया गया है....
पंचम सर्ग अशांति खंड में अब तक-अणु, परमाणु, पदार्थ के त्रिआयामी कण , मूल-पदार्थ , समय अंतरिक्ष कैसे बने इसका वैदिक विज्ञान सम्मत व्याख्या का वर्णन किया गया था । इस तृतीय व अंतिम भाग -छंद २७ से ३७ तक--में आधुनिक विज्ञान के अनुसार , बिग बेंग के पश्चात परमाणु, अणु, पदार्थ आदि कैसे बने इसका वर्णन किया गया है----
२७-
कहता है विज्ञान , आदि में ,
कहीं नहीं था कुछ भी स्थित।
एक महाविष्फोट1 हुआ था,
अंतरिक्ष में और बन गए ;
सारे कण-प्रतिकण,प्रकाश कण,
फिर सारा ब्रह्माण्ड बन गया॥
२८-
एक महा विष्फोट हुआ जब,
अंतरिक्ष ,उस महाकाश में;
एक हजारवें भाग में पल के,
तापमान अतिप्रबल२ होगया।
और आदि ऊर्जा-कण सारे,
लगे फैलने अंतरिक्ष में॥
२९-
ऊर्जा कण, उस प्रबल ताप से,
विकिरण ऊर्जा भाव हुए थे।
क्रमश: तापमान घटने से,
प्रारम्भिक कण-रूप बन गए।
हलके, भारी,भार रहित कुछ-
विद्युतमय,कुछ उदासीन थे॥
३०-
तापमान गिरते जाने से,
हलके- कण, संयुक्त होगये ।
ऋणकण,धनकण,उदासीनकण३
और प्रकाशकण-रूप बन गए।
प्रति सहस्र हलके उपकण से ,
बना एक परमाणु-पूर्व कण४ ॥
३१-
तापमान अति न्यून हुआ जब,
धनकण, उदासीन कण सारे,
जो परमाणु पूर्व के कण थे;
हो संयुक्त परमाणु बन गए।
हाइड्रोजन, हीलियम गैस थे,
दृव्य-प्रकृति के प्रथम रूप कण५ ॥
३२-
हाइड्रोजन, हीलियम गैस कण,
शेष रहे परमाणु व प्रतिकण ;
और प्रकाश कण , शेष ऊर्जा,
मिलकर बने, विविध तारागण-
तारामंडल,ग्रह, नीहारिका ;
इस प्रकार ब्रह्माण्ड बन गया॥
३३-
लेकिन यह विष्फोट क्यों हुआ,
कहाँ और किस शक्ति के द्वारा।
आदि -ऊर्जा स्रोत कहाँ था,
अंतरिक्ष भी कहाँ था स्थित।
इन सारे प्रश्नों के उत्तर,
अभी नहीं विज्ञान दे सका॥
३४-
स्थित-प्रग्य सिद्दांत६ अन्य है,
जैसा है ब्रह्माण्ड आज यह,
सदा , सर्वदा वैसा रहता ।
नव-प्रसार से, रिक्त खंड में,
नव-पदार्थ है बनता जाता;
यह ब्रह्मांड वही रहता है॥
३५-
लेकिन वह पदार्थ बनता है,
भला कहाँ से, कैसे बनता;
और प्रथम ब्रह्माण्ड कहाँ था,
कहाँ और कैसे बन पाया।
इन सारे प्रश्नों के उत्तर,
अभी नहीं विज्ञान दे सका॥
३६-
क्या भविष्य है,सृष्टि औ लय का,
कहता है विज्ञान, अनिश्चित ।
अति शीतल हो अंतरिक्ष जब ,
लगे सिकुड़ने यह ब्रह्माण्ड।
पुनः बिखरकर बन जाता है,
अणु, परमाणु, आदि-कण, ऊर्जा॥
३७-
इस बिखरे समूह से बनता ,
एक ठोस अति सघन पिंड,उस-
महाशीत और अन्धकार में।
बन जाती है पुनः भूमिका ,
एक नए विष्फोट की फिर से,
रचने पुनः नया ब्रह्माण्ड॥ ----क्रमश : सर्ग ६..........
{कुंजिका---१=बिगबेंग -सृष्टि उत्पत्ति का आधुनिक विज्ञान का सिद्धांत ; २= अत्यंत उच्च- ताप , १०० बिलियन से-; ३=इलेक्ट्रोन , न्यूट्रोन, प्रोटोन व स्वतंत्र ऊर्जा ; ४= परमाणु पूर्व के कण, ५= एक प्रोटोन वाले हीलियम व हाइड्रोजन गैस के आदि कण जो द्रव्य जगत के प्रथम कण हुए, जिनसे बाद में समस्त पदार्थ बने। ; ६= सृष्टि का सम-स्थिति सिद्धांत ( बिग बेंग के अलावा आधुनिक विज्ञान का एक अन्य सिद्धांत )}
ज्ञानप्रद बातें,बहुत सुन्दर
बहुत बहुत आभार
धन्यवाद, दीप....हम यह क्यों जानें कि श्रिष्टि कैसे हुई, एक व्यर्थ के विषय का क्या लाभ...? ताकि हम स्वय ही सबकुछ हैं..यह अहं हमसे दूर रहे..आस्था, विश्वास पर हमें विश्वास हो...मानवता का सरल-रेखा में विकास हो...
---अन्तिम उपसंहार सर्ग में इसके उत्तर व्याख्यायित हैं...