नव वर्ष के अवसर पर एक कवि की पत्नी न्यू-ईयर गिफ्ट मांगे तो वह क्या-क्या दे सकता है .कवि के पास कितने अलंकार आभूषण सदा उपलब्ध रहते हैं ...देखिये ....प्रस्तुत गीत में....
उपहार
प्रिय तुमको दूं क्या उपहार |
मैं तो कवि हूँ मुझ पर क्या है ,
कविता गीतों की झंकार |
प्रिय तुमको दूं क्या उपहार |
गीत रचूँ तो तुम ये समझना,
पायल कंगना चूड़ी खन खन |
छंद कहूं तो यही समझना ,
कर्ण फूल बिछुओं की रुन झुन |
मुक्तक रूपी बिंदिया लाऊँ ,
या नगमों से होठ रचाऊँ |
ग़ज़ल कहूं तो उर में हे प्रिय !
पहनाया हीरों का हार ||---प्रिय तुमको....
दोहा, बरवै, छंद, सवैया ,
अलंकार रस छंद - विधान |
लाया तेरे अंग- अंग को,
विविधि रूप के प्रिय परिधान |
भाव ताल लय भाषा वाणी ,
अभिधा लक्षणा और व्यंजना |
तेरे प्रीति- गान कल्याणी,
तेरे रूप की प्रीति वन्दना |
नव- गीतों की बने अंगूठी ,
नव-अगीत की मेहंदी भाये |
जो घनाक्षरी सुनो तो समझो,
नक्-बेसर छलकाए प्यार |...--प्रिय तुमको....||
नज्मों की करधनी मंगा लो,
साड़ी छप्पय कुंडलियों की |
चौपाई की मुक्ता-मणि से,
प्रिय तुम अपनी मांग सजालो |
शेर, समीक्षा, मस्तक- टीका,
बाजू बंद तुकांत छंद हों |
कज़रा अलता कथा कहानी,
पद, पदफूल व हाथफूल हों |
उपन्यास केशों की वेणी,
और अगीत फूलों का हार |
मंगल सूत्र सी वाणी- वन्दना ,
काव्य-शास्त्र दूं तुझपे वार |----प्रिय तुमको ....||
बहुत सुंदर कविता, सच ऐसी ही तो आता है बसंत ।
एक ही कविता में अनेक अलंकारों की विविधता कम देखने को मिलती है। सुंदर प्रयोग, सुंदर कविता। बधाई।
DHANYAVAD, Mithilesh va sudheer...