लोग कहते हैं कि
अनवर जमाल ! आप हिंदुओं के धर्म पर , उनकी परंपराओं पर क्यों लिखते हैं ?भाई आपके साधु-सन्यासी से लेकर आम हिंदुओं तक हरेक ईश्वर की न्याय व्यवस्था और उसकी महिमा के खि़लाफ़ सवाल खड़े क्यों करता है ?
आप सवाल खड़े करना बंद कर दीजिए, अनवर जमाल उनके जवाब देना ख़ुद ब ख़ुद बंद कर देगा। अनवर जमाल ईश्वर और अल्लाह में भेद नहीं करता और न ही उसके बंदों में भेद करता है। अनवर जमाल ईश्वर का भक्त है क्योंकि वह अल्लाह का बंदा है और ईश्वर अल्लाह एक ही पालनहार प्रभु के दो अलग भाषाओं में दो नाम हैं लेकिन जिसके ये नाम हैं वह ख़ुद एक है। वही सबको हवा, पानी और भोजन देता है। आज हवा तो सबको मिल रही है लेकिन साफ़ पानी सबको मयस्सर नहीं है। सबको रोटी मयस्सर नहीं है। लोग परेशान हैं। जीवन काटना उन्हें भारी लग रहा है। ऐसा क्यों हो रहा है ?
लोग भारत में जिन देवताओं को ईश्वर मानकर उनकी पूजा करते हैं, वे जब दुनिया में इंसान को रोटी नहीं दे सकते तो फिर वे स्वर्ग में अनंत सुख कैसे दे सकते हैं ?
यह सवाल कौन कर रहा है ?
क्या अनवर जमाल कर रहा है ?
नहीं यह सवाल कर रहे हैं स्वामी विवेकानंद जी।
...और वे कह रहे हैं कि
आप इस पूरे लेख को ‘मेरा देश मेरा धर्म‘ पर देख सकते हैं।1- भारत को ऊपर उठाया जाना हैं ! गरीबों की भूख मिटाई जानी हैं ! शिक्षा का प्रसार किया जाना है ! पंडे पुरोहितो और धर्म के ठेकेदारों को हटाया जाना है ! हमने पंडे पुरोहित और धर्म के ठेकेदार नहीं चाहिए ! हमें सामाजिक आतंक नहीं चाहिए !
2- जनता के आध्यात्मिक उत्थान की एक ही शर्त हैए आर्थिक और राजनीतिक पुनर्निर्माण !
3- ‘किसी के कह देने मात्र से अंधों की तरह करोड़ों देवी-देवताओं पर विश्वास न करो।‘
क्या स्वामी जी की बात ग़लत है ?
नहीं, अनवर जमाल उनसे सहमत है। स्वामी जी ने साफ़ कर दिया है कि जिन देवताओं को लोग ईश्वर मानकर पूज रहे हैं ये स्वर्ग तो क्या देंगे, वे एक समय की रोटी भी नहीं दे सकते। ये देवी-देवता किसी की समस्या हल नहीं करते बल्कि इनके नाम पर पंडे-पुरोहित सामाजिक आतंक फैलाते हैं। भारत को उपर उठाने के लिए इन्हें हटाया जाना ज़रूरी है। स्वामी जी आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके विचार आंज भी हमारे लिए प्रासंगिक हैं। आज भी जब लोग देव-स्थलों पर जाते हैं तो लौटकर यही कहते हैं कि
‘यह स्थल निस्संदेह देव रहित हैं' -सतीश सक्सेना
भाई साहब ! जब आपको यह पता चल गया है कि यह स्थल देव रहित है तो आप यहां खड़े क्यों हैं ?
चलिए उस स्थल की ओर जहां देव भी है और देववाणी भी। जहां उसकी पूजा तो होती है लेकिन चढ़ावा कोई नहीं चढ़ाया जाता। आर्थिक और राजनैतिक पुनर्निमाण की पूरी योजना आपको वहीं मिलेगी। जब आप वहां पहुंचेगे तो आप देखेंगे कि हर रंग और नस्ल का आदमी चाहे वह अमीर हो या ग़रीब अपने दाता के सामने एक साथ खड़े हैं और एक साथ ही झुक रहे हैं। जो वाणी वे सुन रहे हैं, उसमें एक दूसरे पर ज़ुल्म करना हराम बताया जा रहा है। एक दूसरे की मदद करना फ़ज़ बताया जा रहा है और ब्याज लेना एक घातक मज़र््ा बताकर उससे मुक्ति दिलाई जा रही है। कहा जा रहा है कि तुम पर हराम है अगर तुम्हारा पड़ोसी भूखा सो रहा है और तुम पेट भरकर खा रहे हो।
हरेक बुराई को पाप ही नहीं बल्कि उसे सामाजिक जुर्म भी बताया जा रहा है और उस पर नर्क की यातना से पहले दुनिया में भी दंड दिया जा रहा है और जब ऐसा हो जाता है तो हरेक आदमी को रोटी मिलना निश्चित हो जाता है। तब आदमी कहता है कि वाक़ई यह ईश्वर जो मुझे रोटी दे रहा है वह मुझे स्वर्ग का अनंत सुख भी दे सकता है।
आदमी ईश्वर को अपने अंदर-बाहर हर जगह महसूस करेगा। तब आनंद के लिए किसी समाधि की ज़रूरत नहीं रह जाएगी। वह स्वयमेव आपको उपलब्ध हो जाएगा।
आज आदमी दुखी है तो उसके पीछे ख़ुद उसका नज़रिया ज़िम्मेदार है। जो वास्तव में ईश्वर है उसे पहचानता नहीं, उसकी योजना को मानता नहीं तो अंजाम तबाही के सिवा क्या होगा ?
तब यही होगा कि उन चीज़ों को ईश्वर माना जाएगा जो कि वास्तव में ईश्वर नहीं हैं। उसके नाम पर सामाजिक आतंक फैलाने वाले पंडे-पुरोहित ऐसी परंपराओं में लोगों का अन्न-धन और आबरू तक स्वाहा कर देंगे जो कि वास्तव में धर्म ही नहीं है बल्कि उनका बनाया हुआ दर्शन मात्र है।
अनवर जमाल का कुसूर यह है कि वह सच को सामने क्यों लाता है ?
वह क्यों बताता है कि ग़रीबी और भूख से तड़प-तड़प कर मरती हुई देश की जनता को कैसे बचाया जा सकता है ?
वह क्यों सबके हित की बात करता है ?
आखि़र कैसे इस धरती पर ही स्वर्ग का आभास किया जा सकता है ?
लोक-परलोक का सुख हरेक को अभीष्ट है। दुनिया में जितने भी धर्म-दर्शन हैं, जितने भी वैज्ञानिक अविष्कार हुए हैं, उन सबके पीछे यही भावना है कि सारे इंसानों को सुख प्राप्त हो जाए।
अनवर जमाल पर ऐतराज़ करने वाले बताएं कि स्वामी जी ने अपने दर्शन का प्रचार विदेशियों में क्यों किया ?
तब वे बताएं कि आखि़र अनवर जमाल अपने ही देशवासियों में ‘अटल सत्य‘ का प्रचार क्यों नहीं कर सकता ?
सबने सोचा कि दुनिया का दुख कैसे दूर किया जाए ?
और जो उन्होंने समझा कि यह हल सही है, उसे सबके सामने पेश किया।
खुद स्वामी जी ने भी यही किया। इस्लाम और मुसलमानों पर उनके विचार उनके साहित्य में संग्रहीत हैं। मुसलमानों को उनके द्वारा लिखे गए पत्र भी सुरक्षित हैं और ऐसा करने वाले वे अकेले विद्वान नहीं हैं।
बहरहाल हम तो यह कह रहे हैं कि देश में करोड़ों देवी-देवताओं की पूजा बंद होनी चाहिए। अगर आप हमारे कहने से ऐसा नहीं करते तो स्वामी जी के कहने से ही ऐसा कर लो।
आज स्वामी विवेकानंद जी जन्म दिवस है। इस अवसर पर गहनता से इस बात पर विचार किया जाए कि उन्हें ढेर सारी इज़्ज़्त और मान्यता देने के बावजूद हिंदू समाज ने उनकी बात पर आज तक अमल क्यों नहीं किया ?
जो हिंदू स्वामी विवेकानंद जी को ज्ञानी मानते हैं वे भी उनके सिद्धांतों का पालन नहीं करते, आख़िर क्यों ?
इसी लेख को मैंने एक और तरह से भी लिखा है। और वास्तव में शुरू में वही लिखा था लेकिन बीच में सिस्टम ठप्प हो गया और जब दोबारा लिखना शुरू किया तो फिर गूगल टाइप में नहीं लिखा। इस तरह आपके विचार व्यक्त करने के तरीक़े और उसकी क्रमबद्धता को यह बात भी प्रभावित करती है कि आप किस टूल का उपयोग कर रहे हैं ?
उस लेख को भी मैं आपके सामने लाऊंगा एक थोड़े से ब्रेक के बाद।
तब तब आप इस लेख का आनंद उठाईये और उस लेख में जो लिंक मैंने दिए हैं। तब तक आप एक नज़र उन पर भी डाल लीजिए।
ये रहे लिंक्स आपके लिए एक ज्ञान भेंट के रूप में। कृप्या स्वीकार करें और इन पर विचार भी करें।
1- http://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/01/standard-scale-for-moral-values.html?showComment=1294670416731#c4645121125829265744
2- Hunger free India क्या भूखों की समस्या और उपासना पद्धतियों में कोई संबंध है ?- Anwer Jamal
3- 'जो ईश्वर मुझे यहाँ रोटी नहीं दे सकता, वो मुझे स्वर्ग में अनंत सुख कैसे दे सकेगा ?'
4- पछुआ पवन (pachhua pawan)
5- 'क्या सांपों को दूध पिलाना पुण्य का काम है ?'
6- http://satish-saxena.blogspot.com/2010/12/blog-post_04.html
7- कहाँ है मानवता ?
8- महंगाई मार गई...!!
अब आप अपने आप से सवाल कीजिए कि-
देश के अन्न में आग लगाना कौन सी समझदारी है ?
एक तो देश में घी का उत्पादन पहले ही कम है और जो है उसे भी देश के फ़ौजियों और बालकों को देने के बजाए आग में डाल दिया जाए। आपकी इन्हीं परंपराओं के कारण पहले भी हमारे देश की फ़ौजे कमज़ोर रहीं और थोड़े से विदेशी फ़ौजियों से हारीं हैं। कम से कम इतिहास की ग़लतियां अब तो न दोहराओ। इन ज्ञान की बातों को समझने की कोशिश ज़रूर करना।
Anavar jamaal ji.
..Aap hinduon ke dharm ki kamiyan, vivekaanad ke saamayik vaktavy, aadi vibhinna baton ko pracharit karake ISLAM ka prachar karana chahate hain...jo islam ke anusar galat hai....
----aapne santon, mandir , hinduon ke baare men likhaa---MUMBAI men va vishv men adhikatar MAFIYA va aatankvadi Musalmaan haiN unhen kyon nahee prachar va samjhane ka kary karate.....CHERITY MUST BIGAN FROM HOME---na ki doosaron kaa ghar se...
bahut achchhi bat kah rahe hain aap kintu aapka kataksh jidhar hai vah main to sahi nahi kah sakti kyonki hamare dharm me ye sabhi karya jis uddeshay se kiye jate hain usse sarv-hit juda hai .paryavaran sudhar juda hai yadi aapko kataksh karna hai to hamare un netaon par keejiye jo apne bhare pet me aur anna thoons-thoons kar bhar rahe hain .hamare un vyapariyon par kijiye jinke godam nirantar anna bhandar badhaye ja rahe hain .desh me kisi cheez ki kami nahi hai aur na hi dharm kisi ko bhookha mar raha hai bhookha aadmi hi aadmi ko mar raha hai aur vo bhi apni hawas paise ki shan ki satta ki poori karne ko....
आप कैसे हर लम्हा धीरे-धीरे इस्लाम की ओर बढ़ रहे हैं?
@ भाई डा. श्याम गुप्ता जी ! आपसे मैं जितना संवाद कर रहा हूं उतना ही ज़्यादा यह साफ़ होता जा रहा है कि आप डाक्टर कहलाते ज़रूर हैं लेकिन आपका अक्षर ज्ञान तक कमज़ोर है। आपने ‘चैरिटी मस्ट बिगिन फ़्राम होम‘ एक अंग्रेज़ी कहावत लिखी और ग़लत लिखी। एक डाक्टर कहलाने वाले व्यक्ति के लिए ऐसी ग़लतियां करना शोभा नहीं देता। लोग देखेंगे तो आपका इम्प्रेशन उन पर ग़लत पड़ेगा।
आपने बताया नहीं है कि इस्लाम के अनुसार कैसे ग़लत है किसी विद्वान को उद्धृत करके नेकी और भलाई की बात बताना ?
कृप्या बताएं ताकि मैं उससे बचूं ?
मैं नहीं चाहता कि मैं कोई काम खि़लाफ़े इस्लाम करूं।
मेरा संदेश आपकी ही तरह सभी हिंदी जानने वाले पढ़ते हैं। साधु-संत और वेश्याओं से लेकर मुजरिम भी पढ़ते हैं। इसलिए आप यह नहीं कह सकते कि मैं मुजरिमों को नेकी की बात नहीं बताता।
इस्लामी सिद्धांतों का प्रचार मैं ही नहीं करता बल्कि आप भी करते हैं। कुछ समय पहले तक भारत में चार वर्णों की व्यवस्था थी, ऊंचनीच और छूतछात थी, विधवा का दोबारा विवाह नहीं हुआ करता था बल्कि उसे सती किया जाता था, औरत को संपत्ति में हिस्सा नहीं दिया जाता था, उसे पढ़ने की मनाही थी वग़ैरह, वग़ैरह। इन सब ज़्ाुल्मों को आप हिंदू धर्म का नाम दिया करते थे लेकिन आज ये सब ज़्ाुल्म बंद हो चुके हैं। ख़ुद आप लोगों ने ही इन सब रीति-रिवाजों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई और इन्हें छोड़ दिया। आज आप इंसानों को बराबर मानते हैं और औरतों को वे सब अधिकार देते हैं जो कि आदि शंकराचार्य जी ने भी नहीं दिए आज तक। आपको बराबरी और भाईचारे का उसूल कहां से मिला ?
ज़रा सोच कर बताईयेगा।
हो सकता है कि आप अपने तास्सुब और अहंकार के कारण न मानें, तब मैं आपको हिंदू सुधारकों के उद्धृण दूंगा जिनमें वे स्वीकार करते हैं कि ये उसूल हमने इस्लाम से लिए हैं। आप भी इस्लाम के उसूलों को अपनाकर ही काम चला रहे हैं वर्ना आप जी ही नहीं सकते। बस आप इस्लाम का नाम नहीं लेते और मैं नाम लेता हूं और बताता हूं कि हां यह उसूल इस्लाम का है।
काफ़ी सारे इस्लामी उसूल आपकी ज़िंदगी में आ चुके हैं। आपकी धोती, चोटी और जनेऊ आपसे रूख़्सत हो चुके हैं। सबका मालिक एक है, यह भी आप मानने लगे हैं। पहले आप मूर्ति में शक्ति माना करते थे और अब उसे मात्र ध्यान जमाने का एक माध्यम भर मानने लगे हैं। देश में इस्लामी बैंकिंग आने ही वाली है यानि कि आर्थिक व्यवस्था भी इस्लाम के प्रभाव में आने वाली है। ग़र्ज़ यह कि बहुत से चेंज आ चुके हैं लेकिन जिनके पास सोचने समझने की ताक़त नहीं है या फिर उनमें मानने का हौसला नहीं है वे कैसे इस बात को मान सकते हैं कि वे हर लम्हा धीरे-धीरे इस्लाम की ओर बढ़ रहे हैं?
इस्लाम एक प्राकृतिक व्यवस्था है
@ बहन शालिनी कौशिक जी ! धर्म का उद्देश्य कल्याण है। यज्ञ में अन्न-धन जलाना एक आडंबर है। इसके विरोध में महात्मा बुद्ध आदि विचारक आवाज़ भी उठा चुके हैं और उनके तर्क बल के सामने परास्त होकर वेदवादियों द्वारा कलियुग में यज्ञ आदि न करने की व्यवस्था भी निर्धारित की जा चुकी है। राजनीति हो या व्यापार, जब आप आदमी को जीवन का सही मक़सद और जीवन गुज़ारने की सही रीत नहीं बता पाएंगे तो वह ग़लत ही तो करेगा। आज ग़लतियों का अंबार है और उन ग़लतियों को आज परंपरा का नाम दिया जा चुका है जैसे कि पूस के महीने में नवविवाहित हिंदू दंपत्ति न अपने किसी रिश्तेदार के जा सकते हैं और न ही आप में शारीरिक आनंद ले-दे सकते हैं। आखि़र क्या औचित्य है ऐसे आडंबर का ?
मेरा एक परिचित युवक है सुदामा यादव। बेचारे की अभी ताज़ी शादी हुई है और दोनों तरफ़ है आग बराबर लगी हुई और तब भी बेचारे आपस में मिल नहीं सकते जबकि इस्लाम में ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है। सारे सुधारों का मूल इस्लाम है। चाहे आप सीधे मान लें या फिर हल्के-हल्के करके। ये परंपराएं अब और चलने वाली नहीं हैं। आप भी एक नारी हैं। ‘ख़ास दिनों‘ में हिंदू धर्म की जो व्यवस्था है उसे आज आप नहीं मानती हैं और वैसे रहती हैं जैसे कि ‘उन दिनों‘ में इस्लाम बताता है। चाहे आपको पता भी न हो। इसी को कहते हैं प्राकृतिक व्यवस्था। इस्लाम एक प्राकृतिक व्यवस्था है।
http://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/01/hungers-cry.html