एक तोहफा बहन शालिनी के लिए http://shalinikaushik2.blogspot.com/ |
1- आप कैसे हर लम्हा धीरे-धीरे इस्लाम की ओर बढ़ रहे हैं?
@ भाई डा. श्याम गुप्ता जी ! आपसे मैं जितना संवाद कर रहा हूं उतना ही ज़्यादा यह साफ़ होता जा रहा है कि आप डाक्टर कहलाते ज़रूर हैं लेकिन आपका अक्षर ज्ञान तक कमज़ोर है। आपने ‘चैरिटी मस्ट बिगिन फ़्राम होम‘ एक अंग्रेज़ी कहावत लिखी और ग़लत लिखी। एक डाक्टर कहलाने वाले व्यक्ति के लिए ऐसी ग़लतियां करना शोभा नहीं देता। लोग देखेंगे तो आपका इम्प्रेशन उन पर ग़लत पड़ेगा।
आपने बताया नहीं है कि इस्लाम के अनुसार कैसे ग़लत है किसी विद्वान को उद्धृत करके नेकी और भलाई की बात बताना ?
कृप्या बताएं ताकि मैं उससे बचूं ?
मैं नहीं चाहता कि मैं कोई काम खि़लाफ़े इस्लाम करूं।
मेरा संदेश आपकी ही तरह सभी हिंदी जानने वाले पढ़ते हैं। साधु-संत और वेश्याओं से लेकर मुजरिम भी पढ़ते हैं। इसलिए आप यह नहीं कह सकते कि मैं मुजरिमों को नेकी की बात नहीं बताता।
इस्लामी सिद्धांतों का प्रचार मैं ही नहीं करता बल्कि आप भी करते हैं। कुछ समय पहले तक भारत में चार वर्णों की व्यवस्था थी, ऊंचनीच और छूतछात थी, विधवा का दोबारा विवाह नहीं हुआ करता था बल्कि उसे सती किया जाता था, औरत को संपत्ति में हिस्सा नहीं दिया जाता था, उसे पढ़ने की मनाही थी वग़ैरह, वग़ैरह। इन सब ज़ुल्मों को आप हिंदू धर्म का नाम दिया करते थे लेकिन आज ये सब ज़ुल्म बंद हो चुके हैं। ख़ुद आप लोगों ने ही इन सब रीति-रिवाजों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई और इन्हें छोड़ दिया। आज आप इंसानों को बराबर मानते हैं और औरतों को वे सब अधिकार देते हैं जो कि आदि शंकराचार्य जी ने भी नहीं दिए आज तक। आपको बराबरी और भाईचारे का उसूल कहां से मिला ?
ज़रा सोच कर बताईयेगा।
हो सकता है कि आप अपने तास्सुब और अहंकार के कारण न मानें, तब मैं आपको हिंदू सुधारकों के उद्धृण दूंगा जिनमें वे स्वीकार करते हैं कि ये उसूल हमने इस्लाम से लिए हैं। आप भी इस्लाम के उसूलों को अपनाकर ही काम चला रहे हैं वर्ना आप जी ही नहीं सकते। बस आप इस्लाम का नाम नहीं लेते और मैं नाम लेता हूं और बताता हूं कि हां यह उसूल इस्लाम का है।
काफ़ी सारे इस्लामी उसूल आपकी ज़िंदगी में आ चुके हैं। आपकी धोती, चोटी और जनेऊ आपसे रूख़्सत हो चुके हैं। सबका मालिक एक है, यह भी आप मानने लगे हैं। पहले आप मूर्ति में शक्ति माना करते थे और अब उसे मात्र ध्यान जमाने का एक माध्यम भर मानने लगे हैं। देश में इस्लामी बैंकिंग आने ही वाली है यानि कि आर्थिक व्यवस्था भी इस्लाम के प्रभाव में आने वाली है। ग़र्ज़ यह कि बहुत से चेंज आ चुके हैं लेकिन जिनके पास सोचने समझने की ताक़त नहीं है या फिर उनमें मानने का हौसला नहीं है वे कैसे इस बात को मान सकते हैं कि वे हर लम्हा धीरे-धीरे इस्लाम की ओर बढ़ रहे हैं?
2- इस्लाम एक प्राकृतिक व्यवस्था है
@ बहन शालिनी कौशिक जी ! धर्म का उद्देश्य कल्याण है। यज्ञ में अन्न-धन जलाना एक आडंबर है। इसके विरोध में महात्मा बुद्ध आदि विचारक आवाज़ भी उठा चुके हैं और उनके तर्क बल के सामने परास्त होकर वेदवादियों द्वारा कलियुग में यज्ञ आदि न करने की व्यवस्था भी निर्धारित की जा चुकी है। राजनीति हो या व्यापार, जब आप आदमी को जीवन का सही मक़सद और जीवन गुज़ारने की सही रीत नहीं बता पाएंगे तो वह ग़लत ही तो करेगा। आज ग़लतियों का अंबार है और उन ग़लतियों को आज परंपरा का नाम दिया जा चुका है जैसे कि पूस के महीने में नवविवाहित हिंदू दंपत्ति न अपने किसी रिश्तेदार के जा सकते हैं और न ही आप में शारीरिक आनंद ले-दे सकते हैं। आखि़र क्या औचित्य है ऐसे आडंबर का ?
मेरा एक परिचित युवक है सुदामा यादव। बेचारे की अभी ताज़ी शादी हुई है और दोनों तरफ़ है आग बराबर लगी हुई और तब भी बेचारे आपस में मिल नहीं सकते जबकि इस्लाम में ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है। सारे सुधारों का मूल इस्लाम है। चाहे आप सीधे मान लें या फिर हल्के-हल्के करके। ये परंपराएं अब और चलने वाली नहीं हैं। आप भी एक नारी हैं। ‘ख़ास दिनों‘ में हिंदू धर्म की जो व्यवस्था है उसे आज आप नहीं मानती हैं और वैसे रहती हैं जैसे कि ‘उन दिनों‘ में इस्लाम बताता है। चाहे आपको पता भी न हो। इसी को कहते हैं प्राकृतिक व्यवस्था। इस्लाम एक प्राकृतिक व्यवस्था है।
इस संवाद कि पृष्ठभूमि जानने के लिए देखें -
https://www.blogger.com/comment.g?blogID=554106341036687061&postID=253021086093887940&isPopup=त्रुए
और
http://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/01/hungers-cry.html
और जानने के लिए देखें -
http://commentsgarden.blogspot.com/2011/01/message.html
yar--aapto bilkul hee agyaanee lagate ho---meri kahaavat kaie galat hai ye to bataya naheen( I know it?)..aap mere impreshan ki chinta na karen kyonki main koee kaam impreshan ke liye naheen karata.....
1---VIDHAVA VIVAH ki--vedon men manyata hai...char varn..karm ke anusar hain...
---chang hi to hindoo va vaidik dharm
ki vaigyanikata hai, vah to samay ke sath hotaa hi hai , usmen kathamullapan nahin hai...
----YAGY men ann -dhan jalana paryavaran sudhar ka tarika hai, mahatma buddha ek aneeshvar vadi darshanik the jinhen sirf ek vidwan ki bhanti adar diya jata hai, unake niyam-dharmon ko kaun pramanik manata hai.. mahatma buddh ka dharm iseliye bharat se lupt hogaya...
---ye kahan likha hai ki paush mah men sharirik sambandh naheen banaanaa chahiye....?
---HINDOO DHARM ..ISLAM se bahut prachen hai usamen HINDU dharm ke baton ki nakal ho sakatee hai---islam sirf 1500-1600 varsh purana hai
एक बात आप दोनो बंधुओ से कह रहा हूं । दुनिया की सभी बुराइयों की जड धर्म है । प्राचीन काल में शासन की कोई व्यवस्था नही थी , इसलिये भगवान से लेकर अल्लाह तक पैदा कर दिये गये । अगर फ़िर भी समझ में न आये तो आज स्रे हीं अपने -अपने धर्म की और उसके देवता तथा पैगंबर को गाली देना शुरु करो , समझ जाओगे मेरे कहे का अर्थ ।
पूस के माह में संभोग जायज़ या नाजायज़ ?
@ जनाब डा. श्याम गुप्ता जी ! कृप्या ‘चैरिटी‘ शब्द की स्पैलिंग चेक कर लीजिएगा आपको पता चल जाएगा कि इस कहावत को आपने कहां ग़लत लिखा है। आपको तो मात्र इशारे से ही समझ जाना चाहिए था लेकिन आप तो साफ़ बताने के बाद भी नहीं जान पाए। दूसरी बात यह है कि इस कहावत में ‘मस्ट‘ नहीं है बल्कि ‘चैरिटी बिगिन्स फ़्रॉम होम‘ है। मस्ट की तो फिर भी चल जाएगी लेकिन स्पेलिंग मिस्टेक तो आपको दुरूस्त करनी ही पड़ेगी।
2. हिंदुओं में जितनी परंपराएं प्रचलित हैं उनमें जितनी लिखी हुई हैं इससे ज़्यादा वे हैं जो अलिखित हैं। फिर अलग अलग जातियों के ही नहीं बल्कि अलग अलग गांवों तक के रिवाज अलग हैं। आप किसी यदुवंशी से पूछिए कि ‘पूस के मास में नवविवाहित यदुवंशियों को संभोग से क्यों रोका गया है ?‘
भगवान के साथ भेदभाव क्यों ?
3. आप अलिखित हिंदू रस्मों को तो क्या जानेंगे ?
आपको यह भी पता नहीं है कि श्रीमद्भागवत महापुराण में महात्मा बुद्ध को विष्णु जी का अवतार बताया गया है। आप कह रहे हैं कि हम तो महात्मा बुद्ध को केवल एक विद्वान मानकर उन्हें आदर देते हैं ?
आपको श्री रामचंद्र जी का अवतार होना तो पता है लेकिन महात्मा बुद्ध का अवतार होना पता नहीं है। यह अज्ञान नहीं है तो और क्या है ?
4. यदि वास्तव में ही महात्मा बुद्ध विष्णु जी के अवतार थे तो आपके मंदिरों में श्रीरामचंद्र जी और उनके वानर तक के तो चित्र मिलते हैं लेकिन उन्हीं के एक और अवतार महात्मा बुद्ध के चित्र या मूर्ति आदि क्यों नहीं मिलते ?
5. क्या इससे यह पता नहीं चलता कि आप लोग केवल इंसानों में ही भेदभाव नहीं करते बल्कि अगर भगवान भी आप लोगों के बीच जन्म ले ले तो आप उसके साथ भी भेदभाव करते हैं। उसके एक रूप की पूजा करेंगे और दूसरे रूप का एक चित्र तक किसी मंदिर में नहीं रखेंगे ?
क्या ईश्वर भी कभी अनीश्वरवादी हो सकता है ?
6. क्या ईश्वर भी कभी अनीश्वरवादी हो सकता है ?
जब श्रीमद्भागवत महापुराण महात्मा बुद्ध को ईश्वर घोषित कर रहा है तो फिर क्या महात्मा बुद्ध यह भूल गए थे कि वे स्वयं ईश्वर हैं और उन्हें अनीश्वरवादी और यज्ञ का विरोधी नहीं होना चाहिए ?
7. महात्मा बुद्ध ने यज्ञ में अन्न-फल जलाने का विरोध क्यों किया ?
8. अगर उन्होंने विरोध कर भी दिया तो तत्कालीन वेदाचार्यों ने बौद्धों के विरोधस्वरूप यज्ञ को कलिवज्र्य क्यों घोषित कर दिया ?
अगर यज्ञ धर्म था तो उसे किसी अनीश्वरवादी विद्वान के कहने से बंद नहीं करना चाहिए था। जैसे कि हम अज्ञानियों के विरोध के बावजूद कुरबानी बंद नहीं करते।
हिंदू धर्म के सिद्धांतों को लगातार बदला जाता रहा है
9. आपने धर्म को खेल समझ रखा है कि जब चाहो और जितना चाहो उसे बदल दो।
10. जितना बदलने की इजाज़त होती है वह या तो अनुकूलन में आता है या फिर आपद्-धर्म होता है। उसमें धर्म के मूल सिद्धांतों को सुरक्षित रखा जाता है। ऐसा नहीं होता कि समय बदले तो धर्म के मूल सिद्धांत ही बदल कर रख दिए जाएं। जब सिद्धांत बदल दिए जाते हैं तो फिर धर्म भी बदल जाता है। इसे धर्म परिवर्तन कहा जाता है, न कि नवीनीकरण।
पद सोपान क्रम में जाति-व्यवस्था हिंदू धर्म का आधार है। चाहे वह जन्मना हो या फिर गुण-कर्म-स्वभाव के आधार पर। इन चारों जातियों के अधिकार बराबर नहीं हैं। यह वर्ण-व्यवस्था का स्पष्ट सिद्धांत है लेकिन आज भारत में हरेक वर्ण को, हरेक श्रेणी के कर्मचारी को बराबर अधिकार है। ब्राह्मण किसी पर भी श्रेष्ठता नहीं है।
ऐसे ही हिंदू जीवन पद्धति का आधार चार आश्रम हैं। आप 50 साल से ऊपर के हो चुके हैं लेकिन आज भी यहीं घूम रहे हैं मुसलमानों की तरह। आप जंगल जाने के लिए तैयार ही नहीं हैं एक वानप्रस्थी की तरह। जब आपको हिंदू जीवन पद्धति की महानता पर यक़ीन है तो आप इस्लाम पर अमल क्यों कर रहे हैं ?
अपने धर्म से पतित होना और क्या होता है ?
चारों आश्रमों का त्याग क्यों ?
11. आज हिंदू अपने बच्चों को गुरूकुलों में भेजने के बजाय कान्वेंट में भेज रहे हैं और बच्चे भी ‘ब्रह्मचर्य‘ का पालन नहीं कर रहे हैं। आप चारों आश्रमों में से किसी एक भी आश्रम का पालन नहीं करते तो फिर आप अपने धर्म के नास्तिक हुए कि नहीं ?
12. आप विवाह करते हैं लेकिन गृहस्थ के लिए हिंदू धर्म में जो विधान है कि अगर गर्भ ठहर जाए तो पति अपनी पत्नी से संभोग न करे । आप इसके भी पाबंद नहीं हैं। यहां भी आप इस्लाम पर ही अमल कर रहे हैं । अपने आश्रम के अनुसार आप आचरण क्यों नहीं करते ?
13. अगर वे अव्यवहारिक हैं तो आप मानते क्यों नहीं ?
हिंदू विवाह : संस्कार या समझौता ?
14. हिंदू धर्म में विवाह एक संस्कार है। पति के मरने के बाद भी औरत उसी की पत्नी रहती है। इस्लाम में पति की मौत के साथ ही रिश्ता टूट जाता है और तलाक़ से भी टूट जाता है तथा औरत दूसरा विवाह कर सकती है। आपने भी अपने संस्कार को मुसलमानों की तरह ‘समझौते‘ में ही बदल कर रख दिया है। जब हमने उसे आपकी तरह संस्कार नहीं माना तो आपने उसे हमारी तरह समझौता क्यों मान लिया ?
क्या इस्लाम हिंदू धर्म की नक़ल है ?
15. अगर इस्लाम आपके नज़रिये वाले हिंदू धर्म की नक़ल होता तो इसमें हिंदू धर्म के मौलिक सिद्धांत ज़रूर होते जैसे कि अवतारवाद, अंशवाद, बहुदेववाद, सती, नियोग, ऊंचनीच, छूतछात, जुआ, ब्याज, संगीत की अनुमति, देवदासी, मूर्तिपूजा, यज्ञ, सोलह संस्कार, चार आश्रम, आवागमन, गोपूजा, गाय का पेशाब पीना, हिंदुस्तान का कोई तीर्थ या सन्यास लेना आदि। इनमें से कोई भी चीज़ इस्लाम में सिरे से ही नहीं है। अलबत्ता आप खुद इन चीज़ों से अपना पीछा छुड़ाते जा रहे हैं और अपने धर्म को इस्लाम जैसा बनाते जा रहे हैं।
हिंदू धर्म के कुछ मतों के मानने वालों की शक्ल तक मुसलमानों से इतनी मिलती जुलती हो गई है कि अमेरिका में उन्हें मुसलमान समझकर मारने की घटना भी पेश आ चुकी है।
16. धर्म के सिद्धांतों को ही बदलकर रख दिया गया है और आप कह रहे हैं कि यही तो वैज्ञानिकता है। यह वैज्ञानिकता नहीं है बल्कि मूर्खता है और जनता को सदा मूर्ख बनाए रखने के लिए साज़िश का एक फंदा है। भारत में पहले बौद्ध धर्म का और जैन धर्म का सिक्का जम गया तो हिंदू धर्म को उनके सिद्धांतों के अनुसार ढाल दिया गया और जब मुसलमान आ गए तो उनकी तरह बन गए और अब यूरोपियन्स की तूती बोल रही है तो अपना रहन-सहन उनकी तरह कर डाला। धर्म से आपको कभी मतलब रहा ही नहीं। आप तो वक्त के हाकिम के रिवाज के मुताबिक अपनी मान्यताएं और परंपराएं बदलते चले आ रहे हैं। इसी उलट पलट में आपसे आपका धर्म खोया गया। आप भूल गए लेकिन मुझे याद है क्योंकि मेरे पास ‘वह‘ है जो आपके पास नहीं है।
17. कृप्या अपनी हालत पर ग़ौर करें और ऐसी हालत में भी अपनी महानता के झूठे दंभ को आप त्यागने के लिए तैयार नहीं हैं, सिवाय अफ़सोस के और क्या किया जा सकता है ?
धर्म एक प्रचारक अनेक
18. आप कहते हैं कि इस्लाम मात्र 1500-1600 साल पुराना है। मैं आपको बता चुका हूं कि इस्लाम सनातन है। एक ही सिद्धांत का प्रचार करने वाले लगभग एक लाख चैबीस संदेष्टा हुए हैं जो कि सब के सब हज़रत मुहम्मद साहब स. के आने से पहले ही हुए हैं। पैग़म्बर साहब स. की पैदाईश को भी 1500-1600 साल नहीं हुए हैं। इससे पता चलता है कि आपने इस्लाम के बारे में महज़ सुनी-सुनाई बातों के आधार पर एक कल्पना गढ़ ली है। आप इस्लाम को जानने के लिए उसके मूल स्रोत से ज्ञान लेने के प्रति गंभीर नहीं हैं।
19. इस्लाम के प्रति तो आप क्या गंभीरता दिखाएंगे जबकि आप जिस धर्म को धर्म मानते हैं उसी का पालन करते हुए जंगल जाने के लिए तैयार नहीं हैं। धोती, चोटी और जनेऊ ग्रहण करने के लिए तैयार नहीं हैं।
20. आप हवन करने को पर्यावरण शुद्धि के ज़रूरी मानते हैं और दिन में 3 बार ऐसा किया जाना हिंदू शास्त्र आवश्यक मानते हैं। लेकिन आप जिस चीज़ को लाभकारी और धर्म मानते हैं उसे दिन में एक बार भी करने के लिए तैयार नहीं हैं।
21. आप इस्लाम की सत्यता पर विश्वास नहीं रखते लेकिन आपके कितने ही कर्म इस्लाम के अनुसार संपादित हो रहे हैं और जिस हिंदू जीवन पद्धति के कल्याणकारी होने का विश्वास आपके दिलो-दिमाग़ में रचा-बसा है, उसके अनुसार आप अमल करने के लिए तैयार नहीं हैं।
ऐसा विरोधाभास आपके जीवन में क्यों है ?
ज़रा इन बिंदुओं पर ग़ौर कीजिएगा। यह जीवन कोई तमाशा नहीं है और न ही धर्म कोई कपड़े हैं कि अपनी मर्ज़ी से जब चाहे इसका ड़िज़ायन चेंज कर लिया।
http://commentsgarden.blogspot.com/2011/01/faith-and-business.html
Link: http://www.cpsglobal.org/content/video-streams
‘ग़लतफ़हमियों का निवारण‘
@ भाई मदन कुमार तिवारी जी !
आपने इंसानियत के दुश्मनों का लिखा हुआ लिट्रेचर पढ़ लिया है इसीलिए आप ग़लतफ़हमी के शिकार हो गए हैं। किसी भी चीज़ को जानने के लिए अगर आप उससे नफ़रत करने वालों से जानकारी लेंगे तो आपको कभी सही जानकारी नहीं मिल सकती। हज़रत मुहम्मद साहब स. के बारे में भी अगर आप वास्तव में जानना चाहते हैं तो आपको ऐसे लोगों से जानकारी हासिल करनी चाहिए जो ज्ञानी और निष्पक्ष हों, फिर चाहे वे मुसलमान न भी हों तब भी वे आपको सही बात बताएंगे।
इस संबंध में प्रोफ़ेसर रामाकृष्णा राव जी की किताब इस्लाम के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद ( सल्ल. )
आपकी भ्रांतियों के निवारण के लिए काफ़ी है। आपने पैग़म्बर साहब द्वारा 6 वर्ष की लड़की से विवाह किए जाने की बात कही है। यह भी एक बेअस्ल बात है। इस तरह की और भी बहुत सी ग़लतफ़हमियां बहुत से भाईयों के दिमाग़ों में हैं। आम तौर से जो ग़लतफ़हमियां पाई जाती हैं। उन ‘ग़लतफ़हमियों का निवारण‘ बहुत पहले कर दिया है। अब आपको भी ग़लतफ़हमियों के अंधकार से बाहर आ जाना चाहिए।
आप मेरे सामने भगवान को बुरा नहीं कह सकते क्योंकि भगवान संस्कृत में उसी एक मालिक का नाम है और सिर्फ़ अमीरों का या सिर्फ़ ग़रीबों का नहीं है बल्कि सबका है, हर चीज़ का है और एक है। उसके नाम पर जो हिंदू, मुसलमान या ईसाई पाखंड रचा कर लोगों पर ज़ुल्म करते हैं या उनका माल लूटते हैं तो यह जुर्म इंसान का है न कि भगवान का। जैसे कि मेरे ब्लाग पर आकर आप बदतमीज़ी कर रहे हैं तो यह आपका पाप है न कि आपके मां-बाप का। याद कीजिए कि उन्होंने तो आपको आदर और शिष्टाचार करने की ही तालीम दी होगी।
http://aapkiamanat.blogspot.com/2010/12/blog-post.html
शासन आखि़र कब नहीं था ?
@ भाई मदन कुमार तिवारी जी ! यह भी आपने खूब कही कि पहले शासन व्यवस्था नहीं थी इसलिए लोगों ने ईश्वर की कल्पना अपने मन से कर ली।
पहली बात तो यह है कि आप उस युग का नाम बताएं कि आख़िर शासन व्यवस्था कब नहीं थी ?
दूसरी बात यह बताएं कि जब लोगों ने ईश्वर की कल्पना अपने मन से कर ली तो क्या ईश्वर ने आकर फिर उनकी शासन व्यवस्था संभाल ली थी ?
आपको पता होना चाहिए कि शासन व्यवस्था कहते किसे हैं ?
समाज में एक शक्तिशाली व्यक्ति या कोई संगठित समुदाय जब दूसरों नियंत्रित करने में सफल हो जाता है तो वह व्यक्ति या समुदाय शासक कहलाता है। ऐसा कोई भी ज़माना इस ज़मीन पर नहीं गुज़रा जबकि कोई न कोई अपेक्षाकृत बलशाली मनुष्य या समुदाय समाज पर हावी न रहा हो।
आपकी बात एक बेबुनियाद कल्पना के सिवा कुछ भी नहीं है और इसे लेकर जाने आप कब से घूम रहे होंगे और समझ यह रहे होंगे कि बस ज्ञानी तो मैं ही हूं।
अपनी ग़लतफ़हमी से बाहर आईये या फिर हमें निकालिये।
धन्यवाद!
http://commentsgarden.blogspot.com/2011/01/main-difference-between-hinduism-and.html
जमाल जी ----जब मनुष्य पेडों पर/कन्दराओं में रहता था, कच्चा मांस खाता था, नन्गा घूमता था ...तब शासन नहीं था...सभी जानते हैं
---शासन बहुत बाद की व्यवस्था है...अपका इतिहास ग्यान ...क्या कहें..
---वस्तुतः ईश्वर की कल्पना (है या नहीं एक अलग प्रश्न है--था व है तो भी कल्पित ही है क्योंकि .."न तस्य प्रतिमा अस्ति..".) ही की गई जब मानव सोचने लायक हुआ और ..कौन है का प्रश्न उठा...और ईश्वर का जन्म होगया....