अगर आपके पास तार्किक उत्तर नहीं हैं तो फिर पुराणों को विज्ञान का स्रोत बताकर भ्रम न फैलाया जाए ।
सभी धर्म न तो एक ईश्वर की पूजा करना बताते हैं और न ही वे सब के सब मानव जाति के लिए समान रूप से कल्याणकारी हैं ।
धर्म के नाम से जाने जा रहे कितने ही दर्शन तो ईश्वर का वजूद ही नहीं मानते !
पता नहीं आपने कहाँ पढ़ लिया कि सभी धर्म एक ही ईश्वर की पूजा करना बताते हैं ?
सही बात आपको बताई जाती है तो इसे आप शास्त्रार्थ कहने के बजाय विवाद करना समझकर अल्पबुद्धि का परिचय क्यों देते हैं बार बार ?
@ हरीश जी ! जब पोस्ट लेखक डा. श्याम गुप्ता जी को कोई ऐतराज नहीं है हमारे द्वारा सवाल पूछने पर बल्कि वह चाहते हैं कि उनसे सवाल पूछे जाएँ तो आपको क्या ऐतराज है भाई ?
जो सवाल आपसे पूछा है उसका जवाब आपने अभी तक क्यों नहीं दिया है ?
@ गुप्ता जी ! आपने भी नहीं बताया कि भागवत में महात्मा बुद्ध को विष्णु जी का पापावतार क्यों बताया गया है ?
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इस सम्बन्ध में पूरी जानकारी के लिए देखें -
भाई साहब पहले आपको उन प्रश्नों का उत्तर देना चाहिए था जो मैंने आपसे किया था. फिर आपने प्रश्न के बदले प्रश्न किया. मैं ज्ञानवर्धन के लिए शाश्त्रार्थ उचित समझता हू. धार्मिक विवाद के लिए नहीं. फिर भी मैंने कहा की आपको जो लिखना हो लिखिए किसी को कोई एतराज़ नहीं है. हमें लगता है आप आधी अधूरी पोस्ट ही पढ़ के भड़क जाते है. भाई जी इस्लाम के पहले कौन धर्म था? मानव जीवन तो पहले भी था. इस विवाद से मैं अपने को दूर करता हू. आप को लगता है की ईश्वर अलग- अलग है तो आप लगे रहिये. आप की सोच अपनी-मेरी अपनी है. मेरी निगाह में ईश्वर एक है. और मेरी सोच तो कोई बदल नहीं सकता और न आपकी ही. फिर भी मैं कहूँगा धार्मिक विवाद से बचिए तो शायद हम सब के लिए अच्छा है. बाकी आप बड़े है. आपकी मर्ज़ी
@ हरीश जी ! आपसे चर्चा करके मुझे अच्छा लगेगा . चर्चाशाली मंच में हर उस नर नारी का स्वागत है जो कि किसी भी विषय पर चर्चा करने का इच्छुक हो .
आस्तिक नास्तिक हरेक विचारशील सभी नागरिक का इस मंच पर स्वागत है .
इसमें जुड़ने के लिए कृपया अपनी ईमेल आई डी पेश भेजें.
Dr. Shyam is also invited.
http://charchashalimanch.blogspot.com/2011/01/to-make-better-society.html
अनवर जी, आपके सबालों का उत्तर यथास्थान देदिया गया है--
---यदि आस्तिक-नास्तिक दोनों को ही आप स्वीकार रहे हैं तो बात ही समाप्त--चर्चा किस बात की...सब अपने अपने धर्म-कर्म मानते-चलते रहिये...मस्त रहिये...एक ईश्वर मानिये ..१० मानिये ..अच्छे व्यक्ति-नागरिक-मानव बने रहिये....इति शुभम...
अनवर जमाल,
" सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया"
और गीता ही क्या मुझे तो यह चारों वेदों , १८ पुराणों , १०८ उपनिषदों में भी कहीं नहीं मिला . रामायण - महाभारत में भी यह सूत्र नहीं है और किसी भी स्मृति में नहीं है . ज़रूर मेरी नज़र से चूक हुई होगी . अब अगर आप मुझ से ज़्यादा जानकार हैं तो कृपया बताएं कि इतनी महान शिक्षा जो मैं अक्सर अपने हिन्दू भाईयों के मुंह से सुनता रहता हूँ , वह आखिर है कौन से ग्रन्थ में ?
यही प्रश्न है तुम्हारा?
जब तुम मानते हो यह अच्छी महान शिक्षा है, तो अपनाओं न, अच्छी बात तो बस ग्रहण करनी चाहिए।
कहां है? किस ग्रंथ में है? क्या करना है तुम्हें?
अपने ज्ञानीपने का ढोंग रहने दो और गुण कहीं भी मिले स्वीकार करो।
अच्छी बातों में भी अडंगे से बाज़ नहीं आओगे।
इसीलिये तुम्हें और अयाज़ को रोका जाता है।
और किसकी मति फ़िर गई है जो वहां चर्चा?को आयेगा।
यही भाव कुरान में व बाइबल में भी कहीं न कहीं अवश्य मिलेगा....ढूंढिये...जानिये...मानिये..अपनाइये...
@ डा. श्याम गुप्ता जी ! ऊपर आप कह रहे हैं कि चर्चा समाप्त और उसके बाद भी आप मुझे अपने धर्म इसलाम पर चलकर अच्छा आदमी बनने की अव्यवहारिक सलाह दे रहे हैं क्योंकि आपका मानना है कि
इसलाम धर्म नहीं है बल्कि एक रिजिड मत है जो कि तलवार के बल से फैला है । जो भी इसलाम की तारीफ़ करता है वह भ्रमित है जबकि हिंदुत्व एक उदारवादी धर्म है।
क्या मैं इसलाम पर चलकर एक रिजिड आदमी ही न बनूंगा ?
तब आप मुझे इसलाम पर चलने की ग़लत सलाह क्यों दे रहे हैं ?
# जब चर्चा चल ही रही है तो आ जाइए चर्चा मंच पर।
@ हरीश जी ! इस्लाम में कमियां निकालते हैं आपके डा. श्याम गुप्ता जी और आप कहते हैं कि वे किसी धर्म को बुरा नहीं कहते।
आपको उनकी इस हरकत का यक़ीन न हो तो आप लिँक मांग सकते हैं ।
और ऐसे आदमी के ज्ञान के सामने आप अपना मस्तक नत करते हैं ?
आईये चर्चाशाली मंच के सदस्य बनें ताकि आने वालों में आप प्रथम गिने जाएं। बाद में तो बहुत आएंगे , आप पहले आने वाले बनिए।
@ झूठ नष्टक ! तुम मेरे ब्लाग से भागे हुए कौन से 'पंछी' हो मुझे पता है । तुम्हारे मूल ब्लाग्स का भी पता है मुझे।
हां तो फिर क्या सोचा एलबीए के पदाधिकारीगणों ने ?
क्या डा. श्याम गुप्ता जी को ब्रह्मा जी के गुण और कार्यों से संबंधित धार्मिक लेख इस साझा ब्लाग पर छापने से रोका जाएगा कि नहीं ?
अगर उन्हें नहीं रोका जाता है तो फिर उनके लेख पर उठने वाले सवालों को बाद में एलबीए पदाधिकारीगण कैसे रोक पाएंगे ?
क्या विज्ञान भी वैदिक धर्म का ही एक अंग नहीं है ?
क्या वैदिक विज्ञान का प्रचार करना भी वैदिक धर्म के ही एक अंग का प्रचार करना नहीं है ?
डा. श्याम गुप्ता जी ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि उत्पन्न किया जाना मानते हैं। सृष्टि की उत्पत्ति के इस प्रकरण में सरस्वती और कामदेव का ज़िक्र भी आएगा और उसमें अलग अलग लोगों के अलग अलग मत हैं।
क्या ऐसे विवादित प्रकरण को यहां उठाया जाना उचित है ?
मेरी समझ में तो जो भी नियम हो वह सभी पर लागू होना चाहिए और यहां किसी भी धर्म के ग्रंथ का उद्धरण देना वर्जित होना चाहिए ताकि धर्मग्रंथ के विषय में ऐसी कोई बहस का सिलसिला यहां शुरू न होने पाए जैसी बहसें मेरे ब्लाग पर अक्सर होती हैं, उदाहरणार्थ-
1.Mandir-Masjid मैं चाहता हूं कि अयोध्या में राम मन्दिर बने - Anwer Jamal
2.The message of Eid-ul- adha विज्ञान के युग में कुर्बानी पर ऐतराज़ क्यों ?, अन्धविश्वासी सवालों के वैज्ञानिक जवाब !
3.मसीह का मिशन था ‘सत्य पर गवाही देना‘ - Anwer Jamal
क्या मेरे इस सुझाव से सहमत होने में किसी को कोई संकोच है ?
http://vedquran.blogspot.com/2010/09/mandir-masjid-anwer-jamal.html
http://islamdharma.blogspot.com/2010/11/message-of-eid-ul-adha-maulana_17.html
http://vedquran.blogspot.com/2010/10/what-was-real-mission-of-christ-anwer.html