आज रिश्तों की अज़्मत रोज़ कम से कमतर होती जा रही है। रिश्तों की अज़्मत और उसकी पाकीज़गी को बरक़रार रखने के लिए उनका ज़िक्र निहायत ज़रूरी है। मां का रिश्ता एक सबसे पाक रिश्ता है। शायद ही कोई लेखक ऐसा हुआ हो जिसने मां के बारे में कुछ न लिखा हो। शायद ही कोई आदमी ऐसा हुआ हो जिसने अपनी मां के लिए कुछ अच्छा न कहा हो। तब भी देश-विदेश में अक्सर मुहब्बत की जो यादगारें पाई जाती हैं वे आशिक़ों ने अपनी महबूबाओं और बीवियों के लिए तो बनाई हैं लेकिन ‘प्यारी मां के लिए‘ कहीं कोई ताजमहल नज़र नहीं आता।
ऐसा क्यों हुआ ?
इस तरह के हरेक सवाल पर आज विचार करना होगा।
‘प्यारी मां‘ के नाम से ब्लाग शुरू करने का मक़सद यही है।
इस प्यारे से ब्लाग को एक टिनी-मिनी एग्रीगेटर की शक्ल भी दी गई है ताकि ज़्यादा से ज़्यादा मांओं और बहनों के ब्लाग्स को ब्लाग रीडर्स के लिए उपलब्ध कराया जा सके। जो मां-बहनें इस ब्लाग से एक लेखिका के तौर पर जुड़ने की ख्वाहिशमंद हों वे अपनी ईमेल आईडी भेजने की कृपा करें और जो अपना ब्लाग इसमें देखना चाहती हों, वे अपने ब्लाग का पता इसी ब्लाग की टिप्पणी में या फिर ईमेल से भेज दें।
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सारी ताक़त का मालिक एक पाक परवरदिगार है जिसे हरेक इलाक़े की हरेक भाषा में बहुत से नामों से जाना जाता है। उसका हरेक नाम पाक है, सुंदर है और शांतिदायक है। जिसने भी जब कभी उससे जो कुछ मांगा है। हमेशा उसने वही चीज़ या उससे बेहतर पाई है। उससे मांगने वाला आज तक कभी नामुराद नहीं हुआ है लेकिन अपने तन-मन और अमल की पवि़त्रता शर्त है। शर्त उस चीज़ को कहा जाता है कि अगर वह चीज़ न पाई तो वह काम ही अपने अंजाम को न पहुंचे जो कि उस पर निर्भर है।
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