याद रखिएगा कि दर्शन आप छः नहीं छः हज़ार बना लीजिए। ये सारे मिलकर भी एक वेद के बराबर न हो पाएंगे। वेद ही ज्ञान है। दर्शन ज्ञान नहीं है बल्कि ज्ञान तक पहुंचने का एक माध्यम है। वेद सत्य है और दर्शन कल्पना है। सत्य आधार है और कल्पना मजबूरी। सत्य से मुक्ति है और कल्पना से बंधन। कल्पना सत्य भी हो सकती है और मिथ्या भी लेकिन सत्य कभी मिथ्या नहीं हो सकता। ईश्वर सत्य है और उस तक केवल सत्य के माध्यम से ही पहुंचना संभव है।
सही-ग़लत का ज्ञान कभी षटचक्रों के जागरण और समाधि से नहीं मिला करता। इसे पाने की रीत कुछ और ही है। वह सरल है इसीलिए मनुष्य उसे मूल्यहीन समझता है और आत्मघात के रास्ते पर चलने वालों को श्रेष्ठ समझता है। दुनिया का दस्तूर उल्टा है । मालिक की कृपा हवा पानी और रौशनी के रूप में सब पर बरस रही है और उसके ज्ञान की भी लेकिन आदमी हवा पानी और रौशनी की तरह उसके ज्ञान से लाभ नहीं उठा रहा है मात्र अपने तास्सुब के कारण।
कोई किसी का क्या बिगाड़ रहा है ?
अपना ही बिगाड़ रहा है ।
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are bhaiya---shd-darshan va kundalee,samadhi, chkr aadi vaidik gyan ka hee agrasaaran hai.....tatvik vyakhya men...
---bas galat salat logon ke chakkar men nahin fasana hai..
@ डाक्टर श्याम गुप्ता जी ! मैं आपकी बात मान लूंगा । आप चारों वेदों के 20 हजार मंत्रों में कहीं एक ही जगह कुंडलिनी जागरण अथवा पतंजलि के दर्शन वाले योग के दर्शन करा दीजिए ?
@ डाक्टर श्याम गुप्ता जी ! मैं आपकी बात मान लूंगा । आप चारों वेदों के 20 हजार मंत्रों में कहीं एक ही जगह कुंडलिनी जागरण अथवा पतंजलि के दर्शन वाले योग के दर्शन करा दीजिए ?