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शनिवार, फ़रवरी 05, 2011

शनिवार, फ़रवरी 05, 2011 4


             कन्हैया नंदन जी मेरे परम मित्रों में हैं। वे एक सफल चिकित्सक, कुशल अधिकारी के साथ एक एक अच्छे साहित्यकार भी हैं। सबसे बढ़कर वे एक सफल व्यक्तित्व हैं। जीवन के लगभग सभी क्षेत्रों , ज्ञान, विज्ञान, खेल , कर्मठता, प्रेम, सौहार्द , सम्बन्ध ,मित्रता आदि सभी में वे उन्मुक्त व्यवहारी व सफल व्यक्ति हैं। मेरी मित्रता एक सफल साहित्यकार के नाते रही है। हम एक समारोह में मिले,मित्रता हुई, वाद-विवाद व लम्बे पत्रोत्तरों का सिलसिला चला। लगभग चार वर्षों से उनसे कोई संपर्क नहीं हुआ। कुछ दिन पहले उनका एक पत्र मिला जिससे ज्ञात हुआ कि वे अज्ञातवास में हैं। पत्र के साथ उनके पढ़ने की चाभी भी थी। पत्र का मंतव्य था कि अब वे शीघ्र लौट कर नहीं आयेंगे और उनकी आलमारी में जो भी कागज़-पत्र, अप्रकाशित रचनाएं आदि या जो कुछ भी है अब मेरे स्वामित्व में है , मैं जैसे भी चाहूँ उसका उपयोग व निस्तारण करने को स्वतंत्र हूँ।
वे मुक्ति-पथ की ओर खोजलीन हैं। यह बात मैं उनके परिवार को भी बता दूँ ; वे ढूंढने का उपक्रम न करें , चिंता की कोई बात नहीं है जब ठीक समझेंगे वे स्वयं ही आजाएँगे।
                 साहित्य से सम्बंधित लगभग सभी सामग्री मैंने हस्तगत करली ; जिसमें एक डायरी , कुछ रचनाएं व कुछ पत्र आदि थे। मुझे सबसे अधिक आकृष्ट किया कुछ हस्तलिखित पत्रों की असंपादित -रद्दी प्रतियों ने , जो उन्होंने लोगों के अपने प्रति विचारों पर अन्य विवेचनात्मक टिप्पणियों सहित भेजे होंगे। वे वास्तव में एक सफल व्यक्तित्व के आत्म-निरीक्षण के दस्तावेज़ थे। वही दस्तावेज़ मैं आगे के पन्नों में आपके सम्मुख ज्यों के त्यों प्रस्तुत कर रहा हूँ।


पत्र एक---
प्रिय अग्रज , सादर चरण स्पर्श ,
            आपको मलाल है कि मैं सब विधि कुशल होने पर भी एक महान व प्रसिद्ध चिकित्सक नहीं बना। आपका कहना है कि तुम जहां पहुँच सकते थे नहीं पहुंचे। भाई ! आप बड़े हैं , अनुभवी हैं , परिवार में हम सबसे अधिक कुशाग्र-बुद्धि ; मुझसे अधिक दुनियादार हैं। मैं क्या कहूं , पर सिद्धि को छोड़कर ( प्राप्त करने के बाद ) आगे बढ़ जाना मेरे विचार से मुक्ति पथ की ओर बढ़ना है। सिद्धियों को कभी मैंने अपने हित में भुनाने का कार्य नहीं किया। मैं कभी तेज दौड़ मैं शामिल ही नहीं हुआ। हो सकता है कि दुनियादारी की दौड़ में मैं बहुतों से पीछे रह गया होऊँ ; पर अपने अंतर में मुझे संतोष है। मैंने सिद्धियाँ प्राप्त कीं , शायद इस समय की चिकित्सा-विशेषज्ञता सिद्धि, जन सामान्य में आदर, समाज में स्थापित पहचान। शायद यह माता-पिता की साधना का उचित फल है। सिद्धियों के लाभपूर्ण उपयोग के शिखर पर मैं नहीं पहुँच पाया। प्रभु इच्छा! मैं एसा ही हूँ। पर मुक्ति-पथ की ओर मुझे बढ़ना ही है। आप जानते हैं कि , अनुज, भगिनी,रिश्तेदार आदि सभी लिए मैं प्रभा मंडल युक्त हूँ। वे अभिभूत हैं मेरी कर्मठता , विद्वता, काव्यप्रेम,एवं सभी से समता व युक्ति-युक्त प्रेमपूर्ण व्यवहार के वे कायल हैं। नाते-रिश्तेदार, उनके बच्चों में , पड़ोसियों में , मैं आदर्श, अनुकरणीय व सफल व्यक्ति की भांति चर्चित व प्रशंसित हूँ। शिखर पर पहुंचे परिवार के शिखर पुरुष की तरह माननीय। जब आप किसी को डांट देते हैं या नाराज़ होजाते हैं तो या किसी का आपसे कोई काम नहीं हो पाता तो वे मुझे ही संपर्क करते हैं , सुलझाने के लिए।


               मेरे कवि मित्र मुझे आशु-कवि, आध्यात्मिक रचनाकार, भावुक, सुविनयी, ज्ञानी जाने क्या क्या कहते हैं। कवि ह्रदय की महानता ही है यह सब। ज्ञानी व सत्संगति वाले विद्वानों की संगति- सान्निध्य में जो रस प्राप्त होता है, ज्ञान व अनुभव होता है , उसी को अपने जीवन के अनुभवों से मिलाकर कलमबद्ध कर लेता हूं। उस असीम की कृपा होती है तो कविता बन जाती है और मैं कर्ता का भ्रम पाले रहता हूँ।


               मेरे सहकर्मी साथी चिकित्सक मुझे कर्मठ , ईमानदार, अपने काम में मस्त , निर्णय में कठोर,कानूनची पर सभी में समभाव रखने वाला विद्वान् व्यक्ति कहते हैं। कुछ सुधी चिकित्सक मित्र , भाई , आपकी तरह यह भी कहते हैं कि तुम अपने मुख्य पेशे में कभी नहीं रम पाए। अपनी सिद्धि-यात्रा से भटक गए। विशेषज्ञ कर्म सिद्धि-रूप था, योग था; तुम योग भ्रष्ट व पथ-भ्रष्ट योगी होकर रह गए। भाई ! जीवन का लक्ष्य क्या है ? सिद्धि या मुक्ति ? निश्चय ही मुक्ति। वे कहते हैं- सिद्धि प्राप्ति से ही तो जीवन सफल बनाया जा सकता है। पर भाई जी, मुक्ति ही वास्तविक सफलता है, जीवन है। आनंद, परमानंद, सत-चित भाव आदि ही मुक्ति है , वही सफल जीवन है। मुक्ति का आधार-भूत भाव - मानव कल्याण द्वारा शान्ति व परमानंद मार्ग है। सिद्धियों द्वारा मानव कल्याण , मुक्तिपथ की खोज से मानव कल्याण , प्रेम भाव के पथ से मानव कल्याण या किसी भी भाव व कर्म से मानव कल्याण का मार्ग प्रशस्त करके मुक्ति प्राप्ति की राह पर अग्रसर हुआ जा सकता है। सिद्धियाँ भौतिक बस्तु हैं , सांसारिक हैं। ऋद्धि-सिद्धि में लक्ष्मी व् सरस्वती दौनों की ही कृपा दृष्टि होती है जो इस काल-खंड की रीति है। अतः सिद्धि में अहं तत्व के प्रमुखता पाने का, वैभव-भ्रष्टता का अधिक अंदेशा होता है। वहां से गिर कर, पथभ्रष्ट होकर उठा नहीं जा सकता। अतः सिद्धि से इतर अन्य राहें भी मुक्ति हेतु अपनाई जा सकतीं हैं। मैं वही राह अपनाने का प्रयत्न कर रहा हूँ।


              मैं योग भ्रष्ट हूँ ,शायद, पर भ्रष्ट या पथभ्रष्ट नहीं। मैं सिद्धि प्राप्ति के बाद रुका नहीं , छोड़कर आगे बढ़ गया हूँ। यह सिद्धि प्राप्ति के बाद जीवन का अगला सोपान है,योग भ्रष्टता नहीं। सिद्धि भ्रष्ट या सिद्धि में भ्रष्ट व्यक्ति प्राय: पथ भ्रष्ट हो जाता है। यह आज के युग की रीति है क्योंकि सिद्धि का मार्ग लक्ष्मी के मार्ग से टकराकर ही जाता है। जीवन का लक्ष्य या उद्देश्य क्या है -मुक्ति ; जिसके साधन चार पदार्थ हैं -धर्म, अर्थ, काम , मोक्ष। सिद्धियाँ कर्म व पुरुषार्थ द्वारा प्राप्त सीढियां हैं , साधनों को प्राप्त करने की , जो स्वयं धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष मूलक होती हैं। यहाँ रुक जाना , रम जाना, सांसारिकता है, माया है। दौड़कर , छोड़कर आगे बढ़ जाना योग भाव है , ईश्वर से युक्त होने का पथ है। परमार्थ भाव व सच्चे प्रेम प्राप्ति भाव में इनको छोड़कर आगे बढ़ जाना चाहिए, रमने का अर्थ पथ-भ्रष्टता है। छोड़कर आगे बढ़ जाना ब्रह्म प्राप्ति, अमृतत्व व मोक्ष के लक्ष्य को प्राप्त करना है। जीवन में विद्याप्राप्ति, हठयोग, विशेषज्ञ कर्म व विद्या ,अर्थोपार्जन , भक्ति- भाव रत रहना--सभी सिद्धियाँ हैं यदि इनमें परमार्थ भाव है तो, अन्यथा स्वार्थ भाव में यही बंधन है, माया है, पतन के रास्ते हैं। परमार्थ-भाव सिद्धियों में भी, मगन होकर रम जाना, मुक्ति पथ पर रुक जाना है, अतः इनको भी छोड़कर आगे बढ़ना होगा ; तभी मुक्ति की ओर बढ़ा जा सकता है।


              भाई जी, मेरे बरिष्ठ अधिकारी मुझे कर्मठ, अनुशासित, न्याय प्रिय, ईमानदार , योज्ञ अधिकारी की तरह देखते हैं , मानते भी हैं। सब मेरे इन गुणों का उपयोग भी करते हैं। पर परिस्थितियों को चतुरता व टेक्ट से सुलझाने में , लटकाने में ताकि उनके पास समस्याएं न पहुंचें , इसमें मुझे सफल नहीं समझते। उनको कमाई कराने में मैं समर्थ नहीं हूँ। अतः प्रायः लाभ के दायित्व मुझे सौंपने से कतराते हैं। भ्रष्ट अधिकारी तो मुझे नाकारा, योज्ञ, अदूरदर्शी भी कहा करते हैं। कठोर व अप्रिय निर्णय लेने के कार्य मुझे खुशी से सौंपते हैं। मैंने स्वयं आज तक किसी विशिष्ट पद या नगर , स्थान के बारे में स्वयं मांग नहीं की। जो होता है वही मान लेता हूँ। हरि इच्छा ! ईश्वर ने सब कुछ अपने आप ही दिया है वही मैं अपने लायक समझ कर प्रसन्न हूँ। आवश्यकता से अधिक प्राप्ति अहंकार की ओर ले जाती है।


            मेरे कनिष्ठ अधीनस्थ , जो स्वयं कर्मठ व अनुशासित हैं , मेरे अनुशासन प्रियता,समदर्शिता का सम्मान करते हैं। जाने कितनों को मैंने आर्थिक, सामाजिक, अनुशासनात्मक,कठिनाइयों से उबारा होगा, बिना भेद-भाव व बिना प्रति-प्राप्ति की इच्छा के। उनकी दृष्टि में मैं एक न्याय-प्रिय अधिकारी हूँ जो सभी छोटे-बड़े समान भाव से उचित न्याय व दंड , दोनों में विश्वास रखता है। यदि एक तरफ मैं शासकीय कार्य में कठोर व निर्मम कर्तव्यपालक हूँ तो व्यक्तिगत स्तर पर एकदम विपरीत। कार्यालय के कार्य के प्रतिद्वंद्विता ,छद्म भावना, द्वंद्व या विरोध को मैं कार्यालय के बाहर याद नहीं रखता। उसका व्यक्तिगत भाव से कोई लेना-देना नहीं होता। कामचोर, चालाक, नेता की भांति व्यवहार करने वाले कर्मचारी, अधीनस्थ व सामान्य जन मुझे अशिष्ट , सिर-फिरा, अकडू यहाँ तक कि भ्रष्ट भी कहते हैं , जिनको मैंने कभी अवांछित लाभ नहीं पहुंचाया। शैतानी शक्तियां सदैव आप पर हावी होने का यत्न करती हैं। यदि एक बार भी आप जाल में फंस गए तो उसी के उदाहरण स्वरुप वे पुनः पुनः आपका शोषण करती रहती हैं। न कहना भी एक कला है , और उस पर दृढ रहना -इच्छाशक्ति, जो सत्याचरण से मिलती है। प्रथम बार ही न , सदा का छुटकारा।


             अच्छा-बुरा व्यक्ति समानुपातिक ,सापेक्षिक भाव है ; जो आपसे लाभान्वित होते हैं वे अच्छा कहेंगे; अन्यथा आप बुरे हैं। हाँ, जो स्वयं विज्ञ व उच्चकोटि के व्यक्तित्व हैं , वे उनका गलत कार्य नकारने पर भी पीठ-पीछे आपकी प्रशंसा करेंगे। दुर्जन का क्या कहा जा सकता है ? अतः जिस अधिकारी/ कर्मचारी को सभी अच्छा कहें वह टेक्टफुल, चलता पुर्जा होता है। अच्छा वह है जिसे अधिक लोग अच्छा कहें तो कुछ लोग बुरा अवश्य कहें। पीठ पीछे ऐसे लोगों को सब अच्छा ही कहते हैं। अच्छाई का कभी पूर्ण अंत नहीं होता।


              हम क्या हैं ? व्यक्ति क्या है ? मैं क्या हूँ ? मेरे अंतस में ये शाश्वत प्रश्न मुझे लगता है युगों से मंथित हो रहा है। अहं ब्रह्मास्मि, सर्व खल्विदं ब्रह्म जैसे वाक्य यह जानने की इच्छा और तीव्र करदेते हैं कि हम क्या हैं , क्यों हैं ? इसका उत्तर आत्म-निरीक्षण, आत्मालोचन , अपने को पहचानने के अतिरिक्त और कैसे किया जा सकता है। और यह जानने के लिए यह जानना, समझना व मनन करना आवश्यक है कि आपके चारों ओर के जन-जन आपको क्या समझते व मानते हैं। आखिर हम क्या हैं? व्यक्ति स्वयं में कुछ नहीं होता। वह उसके चारों ओर एकत्रित जन मानस के कारण ही अस्तित्व में होता है। अस्तित्व का अर्थ ही है कि उपस्थित अन्य लोग उसकी उपस्थिति अनुभव करें। वे अन्य यदि नहीं हैं तो आप भी नहीं हैं। आप एक अज्ञात, गुमनाम, अनजान, अनाम -प्राकृतिक जड़ तत्व संसार की ही भांति हैं। अतः यह जानना व विवेचना आवश्यक है कि अन्य आपके बारे में का सोचते हैं। इससे सत्य के मार्ग पर चलने की राह व दिशा प्राप्त होती है। भटकने पर सुधार की प्रवृत्ति होती है। आत्मालोचन व आत्म विवेचना से आपको मुक्ति पथ की ओर उचित दिशा निर्देश में सहायक होती है। यह जड़ तत्व जब एकोहं वाली स्थिति में होता है तो उसे- गति व नियति , बहुस्याम की इच्छा रूपी चित-शक्ति-यही जन जन इच्छा रूपी माया प्रदान करती है और उसे स्वत्व मिलता है। यही माया बंधन तोड़कर , छोड़कर जब आत्मतत्व अपना स्वत्त्व खोकर , अहं भाव त्यागकर , अस्तित्वहीन हो जाता है तो पुनः माया से अलिप्त होकर , प्रकृतिस्थ , जड़ भाव , ईश्वरोन्लय हो जाता है। यह मुक्ति है। मुक्ति और अस्तित्व के बीच यह अनवरत चलने वाला द्वंद्व , जीव की जीवन यात्रा है, जीवन है, मुक्ति पथ है।


              यदि अस्तित्व ही न हो तो मुक्ति कैसे प्राप्त होगी ? अतः आपको अपना अस्तित्व तो स्थापित करना ही होता है। इसके लिए आवश्यक है जन जन से जुड़ना। यह जुड़ाव सामाजिक अवधारणा का बीज रूप है। समाज है तो व्यक्ति का अस्तित्व है। सिद्धि-प्रसिद्धि , सामाजिक उपलब्धियां , धर्म, अर्थ, काम सभी व्यक्ति के अस्तित्व के लिए हैं और यही मोक्ष के द्वार हैं। उपलब्धियां कर्म से ही प्राप्त होती हैं अतः कर्म ही मोक्ष का वास्तविक द्वार है। सत्कर्म, निष्काम कर्म , सिद्धियों के मोह अहं से पथ भ्रष्ट न होकर कर्तव्य पथ पर चलते जाना ही वास्तविक कर्म है। यही मुक्ति-पथ है। मुझे चलना ही है। आशीर्वाद दें।


पत्र -दो ----
नीरा, आशीर्वाद;
            बेटी , तुम बेटी जैसी ही हो। मैं जानता हूँ तुम चाहती हो उसे। मैं जानता हूँ तुम उस माहौल से बाहर आना चाहती हो। स्वच्छंद स्वतंत्र आकाश में उड़ना चाहती हो। हम तो हैं ही मुक्ति राह के, नारी स्वतन्त्रता के झंडावरदार। तुम में मैं अपने मन की इच्छा की प्रतिच्छाया , नारी मुक्ति की बात ही देखता हूँ। मैं अवश्य तुम्हारी मुक्ति-सेतु की नींव बनूंगा। वर्षों पहले जो नारी उत्थान के बहाने समाज कल्याण का दुष्कर मार्ग मैंने घर फूंक कलाप से अपनाया था उसे अवश्य ही आगे बढ़ाऊंगा। मेरा आशीर्वाद व शुभकामनाएं हैं तुम्हारे साथ। पर इस पथ पर कमर कस कर चलना होगा। संघर्ष को दृढ़ता से जीतना होगा। दुर्बलता के क्षणों में धैर्य बनाए रखना होगा , वही सफलता दिलाएगा। मैं हूँ न तुम्हारे साथ , मैं आऊँगा लौटकर अवश्य , तुम्हारी सफलता का साक्षी बनने। पूर्णाहुति के लिए।


पत्र -तीन -----
नीरज ,
          आशीर्वाद। बेटे तुम कुछ नया करना चाहते हो। नीति -रीति के नए अंदाज़ से मुझे चौंकाना चाहते हो। पुत्र का पिता से प्रतिद्वंद्विता का भाव होता है। तुम , हम भी कुछ हैं , यह जमाने को बताना चाहते हो। नीति-रीति की संकीर्णता तोड़कर समाज में विचार वैविध्य व उन्नन्ति के सोपानों की एक सीढ़ी अंतरजातीय विवाह भी है। प्रसन्न ही हूँ , चाहे चौंकाने के भाव से ही सही , मेरे भाव को ही तुम आगे बढाओगे। मैं तो कलम का सिपाही हूँ। चाहे कलम हो या कूंची-ब्रुश या चाकू -- सर्जना मेरा कर्म है, धर्म है। आशीर्वाद है।


              लगभग ३५ वर्ष पहले जब मैंने सामाजिक व्यवस्था के अनुसार विवाह किया था तो वह बहुत सी व्यक्तिगत, सामाजिक , आर्थिक लालसाओं व आकर्षणों को त्याग कर , समाज में नारी को उन्नंत दिशा प्रदान करके भावी पीढ़ी को आगे दिशा निर्देश का प्रयास भर था। अब लगता है उसका परिणामी रूप सम्मुख आ रहा है। मैं साथ हूँ। मैं आऊँगा तुम्हारी सफलता का एक पृष्ठ लिखने।


              बेटे ! तुम कहते हो कि आपको किसी बात से कोई फर्क ही नहीं पड़ता। आपके लिए तो "आउट आफ साईट आउट आफ माइंड"। कविता से दुनिया नहीं चलती आदि। इसका अर्थ है कि मैं तुम्हारे किये कार्यों व उपलब्धियों की , नए नए कलापों की तुम्हारी माँ की भांति अत्यधिक प्रशंसा नहीं करता। पुत्र की उपलब्धियों पर अत्यधिक उत्सुकता , एक्साईटमेंट प्रदर्शित नहीं करता। सच है। हाँ, मैं ऐसा ही हूँ। आज तुम्हारे कथन से मुझे लगता है कि शायद मैं अपने जीवन के लक्ष्य की ओर वास्तव में उन्मुख हूँ। भेदा-भेद, फलाफल से परे , ज्ञान अज्ञान से परे , गुणातीत अवस्था की ओर , मुक्ति की ओर। धन्यवाद , आनंदित हूँ। और बेटे ! कवि का अर्थ क्रान्तिदर्शी होता है, आत्मदर्शी। समदर्शी, कवि, मनीषी, स्वयंभू, परिभू -ईश्वर के गुण हैं। ईश्वर ने ही सारा संसार , माया जगत बनाया है , रचाया सजाया है। यह कैसे हो सकता है कि कवि, दुनिया-जगत को न जाने , न पहचाने। हाँ यह हो सकता है कि वह उसमें रमे नहीं। सिर्फ माया जगत उसका लक्ष्य न हो। सिद्धियाँ प्राप्ति के बाद त्यागकर , मुक्ति पथ उसका लक्ष्य हो।


                  तुम कहते हो कि आप स्वयं कोई निर्णय नहीं लेते,ताकि जवाब-देही न करनी पड़े। हो सकता है यह सत्य हो ; पर किसी भी प्रभावशाली, दूरगामी व अंतिम निर्णयों से पहले पक्की तौर पर जांच आवश्यक है। अतः मुखिया को सर्वदा अन्य व मातहतों को ही निर्णय लेने देना चाहिए। क्योंकि दूर से देखने पर कमियों व भूलों का ज्ञान सरलता से होता है। स्वयं कार्य करते समय , कार्य सदैव सही लगते हैं। हाँ तुरंत व हानिकारक होने वाले क्रिया-कलापों पर तो मैं तुरंत वीटो-पावर ( विशेषाधिकार ) से निर्णय लेता हूँ। यह सत्य ही लोकरंजक व एकतान्त्रिक के साथ लोकतांत्रिक व्यवस्था है।


पत्र चार ---
दक्षा ,
              बेटी तुम दहेज़ के नाम पर तीव्र प्रतिक्रिया करती हो। नारी-नर समानता व नारी की महानता पर गौरवान्वित हो। कभी कभी शादी-विवाह के विपरीत विचार भी व्यक्त करती हो। तुम कहती हो कि ( जब कभी नाराज होकर झगड़ा करती हो तो ) अब आप पिता की तरह सोच रहे हैं। अच्छा लगता है; तुम मेरी ही प्रतिकृति हो इस स्थान पर। यदि पुत्र , पिता की ज्ञान कृति है तो पुत्री भाव कृति। पर बेटी, पुरुष अर्थात प्रकृति के सामान्य अर्ध-भाव को ठुकराने या दबाकर पूर्ण-काम कैसे हुआ जा सकता है ? यह ठीक उसी तरह है जैसे प्रकृति की सुकुमार कृति नारी को ठुकराने या पुरुष अहं-भाव से दबाकर कोई भी पुरुष पूर्ण-काम नहीं हो सकता। सम्पूर्ण नहीं हो सकता। हिन्दू देवों -राधा-कृष्ण ,शिव-पार्वती, सीता-राम आदि के युगल रूप होने का यही अर्थ है। हमें साध्य से नहीं साधनों से होशियार रहना चाहिए। साधन ही उचित-अनुचित, सही-गलत होते हैं। साध्य तो लक्ष्य ही होता है ,गलत या सही नहीं। हाँ, यदि वह साध्य शास्त्रोचित , परमार्थ भाव युक्त है तो , और अहंकार भाव से ग्रसित नहीं है। अपनी इच्छा भाव से उचित चुनाव करो , मैं तो साथ हूँ ही। शेष स्वयं सब कुछ सोच विचार कर , न कि इच्छाभाव में बहकर व सांसारिक चकाचौंध से ग्रसित व मोहित होकर। आशीर्वाद है।


पत्र पांच ----
सुप्रिया,
                 तुम कहती हो कि तुम बहुत भोले हो। बात करना नहीं आता। बुद्धू हो। घर- गृहस्थी से मतलब नहीं रखते। कुछ नहीं समझते। छोटी-छोटी बात पर झल्लाते हो , छोटी छोटी गलतियों पर गुस्सा होते हो। रूठने पर कभी मनाते नहीं। वक्त पर जरूरी काम याद आते नहीं। प्रिया ! पूर्णकाम कौन हो पाया है ? मानव मन भूलों की गठरी है, अधभरी गगरी है , खामियों की नगरी है। पर सोचो, समझो ,बताओ कि जीवन की डगर पर जीवन-सुख में कहीं तुम्हें कमी आखरी ? या किसी भी त्रुटि पर , कमी पर या हानि-क्षति पर कभी मुझे क्रोध आया? अन्य लोग तो कहते हैं कि मुझे क्रोध आता ही नहीं। छोटी छोटी कमियों या त्रुटियों पर गुस्सा , सुधारने की कोशिस का फ़साना है। ये सुधर सकतीं हैं यह कहने का बहाना है। गुस्सा अपनों पर ही आता है , गैरों पर नहीं। मैं अवश्य आऊँगा। पर कब ......?


पत्र छः ---
सुमि,
            तुम कहती हो, तुम पूर्ण-काम हो, राधा के श्याम। राधा का श्याम होना , पूर्णकाम होना , व्यक्ति को जग से ऊपर उठा देता है। सारे जग से समभाव प्रेम करना सिखा देता है। वह राधा का श्याम तो हो जाता है, योगेश्वर ! तो बन जाता है पर गोकुल का कान्हा कहाँ रह पाता है ? राधारानी का कन्हैया कहाँ रह जाता है, उसे माया रूपी पटरानियों का स्वामी, पति या दास बन जाना पड़ता है। वह वृन्दावन बिहारी नहीं रहता, चक्र सुदर्शन धारी हो जाता है। कृष्ण मुरारी होना पड़ता है। वह राधा प्यारी के रूप रस भाव पर मुग्ध, मन ही मन मुस्काता है, गीत गाता है , हरषता -तरसता तो है , पर वो प्रीति कहाँ पाता है? राधा का कहाँ हो पाता है ? समझी न ......।


पत्र सात ---
श्री प्रकाश ,
            तुम कहते हो कि तुम तो कलियुग के कृष्ण हो , पर विज्ञान के छात्र व आधुनिक चिकित्सा शास्त्री होने पर भी ईश्वर भक्ति व ज्ञान-अज्ञान की बातें कैसे कर लेते हो ? हाँ भई ! सच है , मैं अति आधुनिक विचार वादी , अत्यंत उदार वादी, तार्किक, न्याय वादी , कभी पूजा न करने वाला, कठोर अनुशासन वादी, रूढ़ियाँ व लीक छोड़कर चलने वाला, होते हुए भी ईश्वर में आस्था रखता हूँ। हाँ , मैं समरसता में जीवन व्यतीत करना व अधिक झंझट में न पड़ने वाला व्यक्ति हूँ। परन्तु यदि बात मेरे देश, समाज, संस्कृति व मानवता की है तो मैं किसी भी हद तक जा सकता हूँ। कभी भी , किसी के भी साथ। हाँ , सच ही मैं श्री कृष्ण का प्रशंसक,उपासक, साधक हूँ , इस भाव में भक्त हूँ। तुम जानते हो कि भक्ति की चरम अवस्था में भक्त- भगवन्लय हो जाता है। जैसा कि वेदान्त कहता है कि आत्मा अपने चरम ज्ञान के उत्कर्ष में ज्ञान और ज्ञाता का भेद मिटा कर परमात्म लीन हो जाती है , तदाकार, तदनुरूप हो जाती है, द्वैत अद्वैत में लय हो जाता है। जीव स्वयं परमात्मा हो जाता है। मैं अभी उस राह पर चलने को प्रयत्न शील हूँ।
" जल में कुंभ कुम्भ में जल है , बाहर भीतर पानी।
टूटा कुम्भ जल जलहि समाना, यह तथ कथ्यो गियानी।।"

परिणाम तो वही जानता है।


               तो हे कलियुग के श्री दामा ! हे ऊधो ! श्री प्रकाश जी , कहीं तुम गोपियों को सबक पढ़ाने मत पहुँच जाना। कहीं मेरा राग भाव उन पर व्यक्त मत कर देना। अब इस स्तर पर कहीं वे सब मिलकर भ्रमर-गीत में ताने देने लगीं तो मुश्किल होगी। जो जहां है वहीं ठीक है। मैं तो वैसे भी तुम्हारे अनुसार कृष्ण भाव हूँ -राग-विराग से परे। पत्रोत्तर की आवश्यकता ही नहीं है। शेष मिलने पर।

4 पाठकों ने अपनी राय दी है, कृपया आप भी दें!

  1. सही फ़रमाया--सलीम जी...

  2. अति सुन्दर भावपूर्ण पोस्ट. समय न मिलने के कारण तीन दिन में पढ़ सका, एक साथ पढ़ा होता तो पहले कमेन्ट करता पर व्यस्तता के कारण समय नहीं निकाल पाया, संजो कर रखने लायक अनुपम कृति.

  3. धन्यवाद हरीश जी---पत्र-विधा कहानी अब कम ही दिखाई देती है...अतः हमने सोचा चलो प्रारम्भ किया जाय .....

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भईया-जन को ये सलाह है की वह LUCKNOW BLOGGERS' ASSOCIATION को Google Chrome ब्राउज़र पर ही खोले जिससे उन्हें ब्लॉग पढने में और अधिक आनंद आएगा !

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ANWER JAMAL मुक्तक मुक्तिका लेख शिव ब्लोगोत्सव-2010 contemporaray hindi poetry acharya sanjiv verma 'salil' geet navgeet नया साल Dabir News गीत jabalpur दोहा संस्‍कृतं- भारतस्‍य जीवनम् कविता समीक्षा india प्रबल प्रताप सिंह hindi gazal chhand muktika दोहा सलिला दुबे सरस्वती contemporary hindi poetry hindi chhand ईश्वर कुण्डलिया जीवन दिवाली विज्ञान विमर्श doha sharda कविताएँ कृष्ण नारी हिन्दी EJAZ AHMAD IDREESI LBA रूबरू hindi jangal madhya pradesh. muktak swatantrata divas अविनाश ब्योहार आलेख इतिहास कर्म कार्यशाला दोहा यमक नरक चौदस नव वर्ष बसंत भारत मन महफूज़ अली माया यमक दोहा राधा व्यंग्य सूरज सृष्टि 'Ayaz' 'कामसूत्र' 007 indian bond Dr.Aditya Kumar anugeet bharat chaupade. hindi chaupade. hindi chhnad de. kamal jauharee dogra devki nandan 'shant haiku gazal hindi sattire. nav varsh panee rang sarasvati shabd vandana अगीत अगीत महाकाव्य अभियांत्रिकी अरविन्द मिश्रा अष्ट मात्रिक छंद आतंक-परिवार एक्य ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ल़ा बोर्ड ओबामा कलह कथा कवि कविता दिया काकोरी कांड कान्हा खुदा खेल गज़ल गणतंत्र दिवस गणेश गन्ना ग्यारस ग़ज़ल छंद गाँधी गीत नया साल गुरु चित्रगुप्त चेतन जज्वात जनगीत : हाँ बेटा जहां ज्ञान डा सत्य तसलीस दक्षिण भारत दिल से दिवाली दोहा दीप देव उठनी एकादशी देश दोहा दिवाली दोहा शिव दोहे धन तेरस धर्म धर्म-संस्कृति नवगीत नया साल नेताजी पत्र परिकल्पना पीस पार्टी पुरातत्व पूर्णिमा बर्मन प्रेम प्लीज़ बसंत शर्मा बेटी ब्लागरमीट भक्ति भजन भवन दोहा भाई दूज मानव माहिया मिथिलेश दुबे मुक्तक सलिला यादें रात रूप चतुर्दशी लखनऊ ब्लॉगर असोसिएशन का अध्यक्ष पद लारैब: हर बात हक़ बात शिव दोहा शुभकामनाएं श्रद्धांजलि षट्पदी संस्कृति सत्य समय समीक्षा नवगीत सरस्वती वंदना सुमन लोकसंघर्ष सोरठा सड़क पर हाइकु हाइकु गीत हाइकु सलिला हाथी हिंदी आरती होली ग़ज़ल ' Association का नया अध्यक्ष ' 'Taj mahal' 'The blessings' 'The nature' 'The purification of human heart ' 'Valentine day' 'charchashalimanch के सदस्य बनें और समाज को बेहतर बनाएँ' 'ibadat puja' 'अनाथ बच्चे-बच्चियों की दिल से सहायता करना' 'इस्लाम एक प्राकृतिक व्यवस्था है' 'एलबीए 'एलबीए और हिन्दी की बेहतरी के लिए विदुषी महिला अध्यक्ष' 'औरत' 'कविता' 'कितने ही दर्शन तो ईश्वर का वजूद ही नहीं मानते' 'कीटनाशक' 'क्या ईश्वर भी कभी अनीश्वरवादी हो सकता है ?' 'गुस्सा एक टॉनिक' 'चर्चित ब्लॉगर' 'चौथी दुनिया' 'ज्ञान पाने कि रीत' 'ज्वलंत समस्याओं का निवारण' 'देवता और अवतार' 'देश की अखंडता की रक्षा करने वाले मुसलमान''देश की अखंडता की रक्षा करने वाले' 'देश के शिक्षण तंत्र' 'धरती पर स्वर्ग का साक्षात्कार' 'धर्म पर पाबंदी 'न्याय के गुण से युक्त राजा ' 'पंडित और शास्त्री' 'पसंदीदा ब्लॉगर-समूह' 'पाकिस्तान के ज्यादातर हिस्सों में पंजाबी भाषा बोली जाती है' 'भाई-बहनों' 'मनोरंजन' 'मुझे सवाल दीजिए मैं आपको जवाब दूंगा' 'मुन्नी बदनाम हुई' 'मुसलमानों का दमन' 'यादगार पोस्ट' 'रामायण की कहानी' 'वर्णवादी' 'विदेशी मुद्रा' 'वेश्यालयों के देश में' 'वफ़ादारी' 'शक है जिन्हें भी दोस्तो हक़ की ज़ात में माँ की नज़ीर ला न सके कायनात में' 'शांति के लिए वेद कुरआन' 'शिरडी' 'शीला की जवानी' 'समाज का सबसे बड़ा विनाशक कट्टरता' 'सय्यद मुहम्मद मासूम साहब को ब्लॉग जगत में एस. एम. मासूम के नाम से' 'सरवरे कायनात' 'हठयोगी शठ योगी महायोगी' 'हिंदी ब्लॉगिंग' 'हिजड़े और तवायफ़ें' 'हृदयरोगियों के लिए' -काफ़िया और व्याकरण 1098 2010 2011 3MUSLIMs 786 : दुबे Article in Print Media DUDHWA Distance Education Dr Zakir Naik ELEPHANT Frauds Ghanshyam Maurya Hazrat Ali (RA) Historical IIT Kanpur Iman Internet Kafir Kisan. bharat LBA की नई समस्यां LBA की नयी अध्यक्षा LBA के मार्ग-दर्शक नीति नियम LBA के हनुमान LBA परिवार Lucknow Lucknow Bloggers' Association Natural way Part Time Instructor Poetess Radio Rishi Sarva Siksha Abhiyan Shorthand Society Standup comedy Stenography TIGER. WILDLIFE. JUNGAL. Tips & Tricks WILDLIFE aag aankh aarati ajadee alankar alvida aman ka paigham amrit anchal anugeet chhand arab india relation arth asmyik hindi kavita atal biharee ayodhya balidan banee basant bhagat azad. bhajan bhasha bhav bimb bhojpuree bhojpuri doha bhoo bhopal book review bundelee chatushpadee chhatisgarhee chunautiyan chunav creation creatior daman dandkala chhand dard dard una ladakon ka desh dharm aur lekhan dhool dhuaan dil doha gazal dohe durmila chhand educational institute in india elegy emaan falak fasal galib ganesh datt sarasvat gantantra divas garal gas treagedy geeta chhand geetika ghalib gulf news haiku hamara dharm harish singh harsh hindee ke haiku hindi laghu katha hindi short story. kargil hindi shortstory hindi smriti geet hinsa aur ham http://sajiduser.blogspot.com/ http://www.sajiduser.blogspot.com/ imarat. india is great india. indian women and arabian shekh indipendence day jabalpur. jannah is man's destination jantantra jhulna chhand kabeer kaikeyee kamand chhand kamlinee kamroop chhand khalish khazana. kiran kriti charcha laghukatha lakhnaoo laloo laxmi lay lokneeti. loktantra lotus love manav mandir manhagaayee marhatha chhand maut meeran krishna megh mekal mirza ghalib narmada neta pakistan pita father's day prakriti prarthna pratibandh pratibha prem pyar quran and gayatri mantra rachna rachnakar radha rajneeti ram janm bhoomi ras sabab sada sakhee salgirah. sanjiv sansadji.com saraswati sat satyagrahee. sanjiv 'salil' shaheed shakeel badyoonee ship shiv shok geet shok samachar sincerity in intention sitasat siya soniya gandhi stuti sundar svasthya aur uchit ilaj svatantrata swaroopanand tadbeer talent. tam taqdeer the world is not enough tomorrow may be or not may be toofan tribhangi chhand ujala ummeed ved and quran ved mantra veenapanee vidyarthiji vivadit maamale aur ham vivek ranjan wildlife DUDHWA अ ध्यक्ष अंग्रेज़ी अंचरा अंतराग्नि अंतर्द्वंद्व अंतर्मंथन अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर्स सम्मेलन अंतस अंधविश्वास अंशकालिक अनुदेशक अखंडता अगीतायन अग्ने अग्रवाल अचेतन अठखेली अति सुखा अभिलाषा अतीत अतुकांत कविता अदा अदावत अनमन अनवर जमाल अनाहत नाद. अनाहिता अनुकूला छंद अनुप्रास अनैतिकता अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस अन्धविश्वास अन्न अन्नकूट अन्ना हज़ारे अन्य कविताएँ अप:तत्व अपरा-शंभु संयोग अपराधीकरण अपशब्द अभिभावक अभियंता अभियान २६-२-२०२१ अभेद बुद्धि अमरकंटक छंद अमरेंद्र अनारायण अमोघ अस्त्र अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर' अरमां अर्धनारीश्वर अल्पना अल्लाह अवतार अशांति अशोभनीय - धन अश्वती तिरुनाळ गौरी लक्ष्मीभायी असार असीम आस्था अहं आँख आँवला आंकिक उपमान आंसू आचार्य भगवत दुबे आचार्य संजीव वर्मा "सलिल" आज आजादी आणविक परिवार आतंक की समस्या आतंक हैरान नज़रें आदत आदि-वाणी आदिशक्ति आभा सक्सेना आभूषण आरक्षण आर्टेमिस आलिंगन आलेख- मत करें उपयोग इनका आल्हा गीत भारतवारे बड़े लड़ैया आवश्यक सूचना आशनां आस्था आज़ाद शहीद दिवस इंडियन जिओटेक्नीकल सोसायटी जबलपुर इंडियन ब्लॉगर्स असोसिएशन इच्छा इच्छाएं इन्डली इन्डियन धारावाहिक इन्डिया गेट इमली ईषत इच्छा उ. प्र. राजनीति के ये घोटाले उक्ति उचित मार्ग उत्तर प्रदेश असोसिएसन उत्तर प्रदेश का सच उत्तर प्रदेश ब्लॉगर्स एसोसियेशन उदारीकरण उदासीनता उधार उपन्यासकार और पटकथा उमन्ग उर्दु उल्लाला छंद उषा ऋचाएं ऋतु ऋषि ऋषि अनंग एक तत्व एक रचना आगे मत जा एकाक्षरी श्लोक एतबार एश्वर्य एसिड की शीशी एसे गीत ऐसी तान ओउम ओमप्रकाश तिवारी औरत क्या है कंगना कछारन कथा निराली | कथा-गीत बूढ़ा बरगद कन्घा कन्या भ्रूण-हत्या कब क्या : जनवरी कब्र कर्नाटक कलम कलियुग के मोहन कलुष कल्पना कल्पना रामानी कवि लखनऊ कविता दिया २ कविता दुबे कवित्त कांता रॉय जबलपुर में कागतन्त्र है कागज़-कलम कानून काफिया काम-सृष्टि कामनाएं कामरूप छंद कामिनि कायदे कायस्थ कारण कारण-ब्रह्म कारोबार कार्य कार्यशाला दोहा से कुण्डलिया कार्यशाला : मुक्तक कार्यशाला दोहा से कुण्डलिया कार्यशाला पद कार्यशाला- ​​​​छंद बहर का मूल है- २ कार्यशाला: दोहा - कुण्डलिया कालकांज काव्य और छंद काव्य गोष्ठेी काव्य छंद काव्य शाला काव्यानुवाद किसान किसान माहिया कीर्तिदा कुंभ कुञ्ज गली कुरआन कृष्ण कुमार "बेदिल" कृष्ण कुमार 'बेदिल' कृष्णमोहन छंद कोरोना कौन क्यूं न हुआ क्रमिक विकास क्षणिका खुरचहा पति खुशबू खुशियों की थिरकन खुशी खेल-व्यवसाय खेळ खौफ गंगटोक सवैया गंगा दोहा गंगोदक सवैया गणतंत्र गणतंत्र दोहे गणितीय मुक्तक गरिमा सक्सेना गरीबी ग़ज़ल अंदाज़े-बयाँ गाँव की गोरी गांव की समस्या; लेख;शिव गाय की रोटी गाली गीत चिरैया गीत - सियाहरण गीत : नया साल गीत अम्बर का छोर गीत काम तमाम तमाम का गीत कौन हैं हम? 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नवगीत गोल क्यों? नवगीत घोंसले में नवगीत छोडो हाहाकार मियाँ! नवगीत जगो सूर्य आता है नवगीत त्रिपदिक नवगीत दर्पण का दिल नवगीत दिवाली नवगीत नव वर्ष नवगीत नागफनी उग आयी नवगीत निर्माणों के गीत नवगीत पहले गुना नवगीत भटक न जाए नवगीत भीड़ में नवगीत मिली दिहाडी नवगीत में नए रुझान नवगीत राम बचाए नवगीत रार ठानते नवगीत लोकतंत्र का पंछी नवगीत वह खासों में खास है नवगीत शिव नवगीत संक्रांति काल है नवगीत संग्रह नवगीत सत्याग्रह के नाम पर नवगीत समय वृक्ष नवगीत समीक्षा नवगीत सड़क पर नवगीत सड़क पर... नवगीत: उगना नित नवगीत: उड़ चल हंसा नवगीत: दीन प्रदर्शन नवगीत: नाम बड़े हैं नवगीत: भाग्य कुंडली नवगीत: लोकतंत्र का पंछी बेबस नवगीत: कुण्डी खटकी नवगीत: छोडो हाहाकार मियाँ! नवगीत: बजा बाँसुरी नवगीत: भारत आ रै नवगीत: रब की मर्ज़ी नवभारत टाईम्स नशा नाक की सर्जरी नाग नाभिक ऊर्जा नारि नारी मुक्ति नारी-भाव नाश प्रकृति का निर्निमेष निर्विकार निष्काम कर्म निष्ठुरता नीति व्यवहार नीति-नियम नीति-व्यवहार नीलकंठ नेकियां नेह नर्मदा तीर पर नेह-नाता नैतिकता नैन-डोर नैना नौ कन्या न्यू-ईयर गिफ्ट नज़र नज़ारा पंचौदन अजः पद चिन्ह पद-चिन्ह पद्मिनी परब्रह्म परम-पिता परमाणु परमानंद परमार्थ परलोक परहित पराग पराया-धन पल- छिन पशु पहलू पाँच पर्व पायल पिचकारी पीयूषवर्ष छंद पीर पुरुषार्थ पुरोवाक : यह बगुला मन पुरोवाक ओस की बूँद पुरोवाक केरल एक झाँकी पुरोवाक बुधिया लेता टोह पुरोवाक् पुलिस पूजा पूर्ण-ब्रह्म पूर्णकाम पृथ्वी पैरोडी पोखर ठोके दावा प्यार प्रकृति प्रकृति दोहन प्रकृति बादल प्रजापति प्रणम्य शहीद प्रणय प्रणय -दीप प्रणय के पल प्रतिकण प्रतियोगिता प्रत्रकार प्रदूषण प्रभाव प्रभु प्रभु ज्ञान प्रश्न मन के प्राण शर्मा प्रातस्मरण स्तोत्र प्रिय प्रवास प्रीति के रंग प्रीति-चलन प्रेम के छःलक्षण प्रेम प्याला प्रेम ममता फरवरी कब क्या? फागुन बंगलोर . कर्णाटक बंगालूरू बंधन व मुक्ति नारी बगीचा बच्चे बजरंग बली बद्दुआ बन्गलूरू बबिता चौबे बयान बरसाना बरसानौ बलि बसंत पंचमी बसंत मुक्तक बसंतोत्सव/मदनोत्सव बहादुरी बहु बहुरंगी संस्कृति बांगला बाढ़ ने बिगाड़ा पशुपालन कारोबार बात बापू बाबा अम्बेडकर साहब बाबा संस्कृति बारह-सोलह वर्णिक छंद बाल कविता बाल कविता : तुहिना-दादी बाल कविता अंशू-मिंशू और भालू बाल कविता कौआ स्नान बाल गीत : ज़िंदगी के मानी बाल गीत पाई शाल बाल नवगीत सूरज बबुआ! बासंती दोहा ग़ज़ल बिग-बेंग बिगबेंग बिरसा मुंडा बुंदेली नवगीत बूढ़ा बरगद कथा-गीत बेटियाँ बेदिल बेनज़ाइटन ब्रह्म ब्रह्मजीत गौतम ब्रह्मा ब्रह्माण्ड ब्रिषभानु ब्लागिंग ब्लॉगरों का सम्मान ब्लोग नगरी ब्लोगोत्सव- २०१० भगवती प्रसाद देवपुरा भगवा रंग भवन निर्माण भविष्य भारत आरती भारत की रमणियाँ भारत जय हिन्द भारत भूमि भारत माता भारत रत्न भारतीय मुद्रा पर गाँधी भाव सप्रेषण भाषा भाषा सेतु भाषाविज्ञान भूख भेदाभेद परे भ्रष्टाचार मंजिल मंदिर मस्जिद मटुकी मतदाता मत्तगयंद सवैया मथानी मथुरा मदरसे मधु कल्पना मधुपुरी मधुर मधुर निनाद मन का निर्मलेी मन विहग मन-मीत मनाना मनुहार मनोरंजन मनोरजंन मन्त्र पल मर्दों में यौन कुंठा मर्यादा मलेशिया मस्ज़िद-मन्दिर महक महात्मा गाँधी पर मार्टिन लूथर किंग महादेवी महान देश महिला सेवा समिति महेश महफ़िल माखन माघ माता मात्रा गणना माधुरी गुप्ता मानव -कृत्य मानव के विस्तार मानव जातीय छंद मानो या न मानो माहिया किसान माहिया गीत माहिया दिवाली माहेश्वरी-प्रजा मिट गये मिथिलेश मिथिलेश दुबे मिथिलेश दुब मिथिलेश दुबे लेख महिंला मिलन मिस्र में विद्रोह मीरा मुकतक मुक्तक कार्यशाला मुक्तक छंद सलिला मुक्तक बसंत मुक्तक भूगोलीय मुक्तक में गणित मुक्तक हाइकु मुक्तिका मन से डरिए मुक्तिका हे माधव ! मुक्तिका किस्सा नहीं हूँ मुक्तिका बसंत मुक्तिका मन मुक्तिका यमक मुक्तिका राजस्थानी मुक्तिका रात मुक्तिका व्यंग्य मुक्तिका: न होता मुजाहिद मुन्ना भाई मुरारीलाल खरे मुलाक़ात मुस्कराहट मुहब्बत ए इलाही मुहब्बतनामा मूल मूलभूत सुविधाएं मूल्यांकन मेघ मेरा देश मेरे भैया मेरे मन मेले मैं -तू मैं करता तब मैथुनी-भाव मॉल संस्कृति मोक्ष मोमिन मोर मुकुट मोहन शशि मौसम मौसम अंगार है यकीं यक्ष प्रश्न यक्ष प्रश्न २ यक्ष प्रश्न ३ - जात और जाति यक्ष-प्रश्न यम-यमी यमकमयी मुक्तिका यश मालवीय यशवंत याद में तेरी जाग-जाग के युवा दिवस युवा प्रतिभा सम्मान युवावर्ग यूपीखबर 'DR. 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आप सभी को हर्ष और बधाई के साथ यह सूचना देना चाहता हूँ कि LBA अपनी सफलता के उस मुक़ाम तक आ चुका है कि इसकी सदस्यता संख्या अपने चरण तक पहुँच चुकी है और जो ब्लॉगर्स बन्धु इससे जुड़ने की इच्छा रख रहे हैं और जिनके मेल मुझे मिल रहे हैं उसको मद्देनज़र रखते हुए नयी सदस्यता के इच्छुक ब्लॉगर्स को एक और भी शक्तिशाली और नया मंच का गठन आज किया जा रहा है जिसका नाम है 'ऑल इंडिया ब्लॉगर्स असोसिएशन' अर्थात AIBA ! इस मंच का हिस्सा सभी भारतीय बन सकते है, फ़िर चाहे वे दुनिया के किसी भी कोने में रह रहें हों !!!
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