एल. बी. ए. से जुड़े समस्त स्नेही साथियों,
आज यह पोस्ट डालते हुए अपार पीड़ा का अनुभव हो रहा है कि विगत कई दिनों से लगातार एल बी ए में उठापठक की स्थिति बनी हुई है, पोस्ट के विरुद्ध पोस्ट और व्यक्तिगत आक्षेप को सर्वाधिक महत्व दिया जा रहा है ! चूँकि यह प्रबुद्ध वर्गों का मंच है, इसलिए सदाचार के अतिक्रमण से मन क्षुब्ध हो जाता है, ऐसे में मैं अपने को इसके नाकाबिल महसूस कर रहा हूँ !
अत: मैं आज एल. बी. ए. के अध्यक्ष पद से स्वयं को मुक्त करते हुए त्याग पत्र देता हूँ और आप सबसे वादा करता हूँ कि एक प्राथमिक सदस्य की हैसियत से आपके हर कार्यों में सहयोग करता रहूँगा !
एक अभिभावक की हैसियत से जब भी मुझे आप याद करेंगे, आप हमेशा मुझे अपने साथ पायेंगे !
आप सभी का आभार जो मुझे अध्यक्ष की हैसियत से इतना सम्मान दिया !
रवीन्द्र प्रभात
आज यह पोस्ट डालते हुए अपार पीड़ा का अनुभव हो रहा है कि विगत कई दिनों से लगातार एल बी ए में उठापठक की स्थिति बनी हुई है, पोस्ट के विरुद्ध पोस्ट और व्यक्तिगत आक्षेप को सर्वाधिक महत्व दिया जा रहा है ! चूँकि यह प्रबुद्ध वर्गों का मंच है, इसलिए सदाचार के अतिक्रमण से मन क्षुब्ध हो जाता है, ऐसे में मैं अपने को इसके नाकाबिल महसूस कर रहा हूँ !
अत: मैं आज एल. बी. ए. के अध्यक्ष पद से स्वयं को मुक्त करते हुए त्याग पत्र देता हूँ और आप सबसे वादा करता हूँ कि एक प्राथमिक सदस्य की हैसियत से आपके हर कार्यों में सहयोग करता रहूँगा !
एक अभिभावक की हैसियत से जब भी मुझे आप याद करेंगे, आप हमेशा मुझे अपने साथ पायेंगे !
आप सभी का आभार जो मुझे अध्यक्ष की हैसियत से इतना सम्मान दिया !
रवीन्द्र प्रभात
किसी ने कहा है कि जो भी होता है अच्छा होता है।
सामूहिक ब्लागों में यह समस्या कभी न कभी आ ही जाती है। वास्तव में जिस ब्लाग या पत्रिका में बहुत सारे लोगों का लेखन प्रकाशित होता है वहाँ कम से कम एक प्रकाशन नीति होनी चाहिए और एक प्रधान संपादक जो कि हर पोस्ट को अंतिम रूप से प्रकाशन के लिए जारी करे। इस के बिना कोई भी सामूहिक ब्लाग चल पाना संभव नहीं है।
मेरा मानना है सर, कि जहां जहां जाने से कद अपना छोटा लगे उस बुलंदी पे जाना नहीं चाहिए !
इस महत्वपूर्ण पद को ठुकराकर आप मेरी नज़रों में और ज्यादा सम्मानित बन गए हैं ....सर आपको कोटिश: नमन !
रविन्द्र भाई साहब, जब किसी संगठन के अध्यक्ष के लिए ऐसे हालत पैदा हो जाएँ कि उसको मजबूरी में आ कर त्याग पत्र देना पड़ जाए तो समझा जा सकता है मामला कितना संगीन है ... मैंने कुछ दिन पहले आपसे कहा था कि जो हो रहा है उसको रोकिये ... आपने आश्वासन दिया था सब ठीक हो जाएगा ... और आज यह दिन भी आ गया है ... ऐसे में मैं जिस निर्णय को आपके भरोसे रोके हुए था ... आज ले रहा हूँ ... मैं भी LBA से अपने को अलग कर रहा हूँ ... अगर मेरी इस टिप से ही काम चलता हो तो ठीक नहीं तो एक आखरी पोस्ट ... लगा विदा लूँगा !
dhukhad hai.
यह तो एक दिन होना ही था ...मुझे लगता है आपको प्राथमिक सदस्यता से भी त्यागपत्र दे देना चाहिए -कुछ लोग अपने निहित और प्रछन्न एजेंडे की पूर्ति हेतु नीले हरे बैनर और कुछ लोगों के चेहरे मुखौटों के रूप में इस्तेमाल करने लगते हैं और उसके पीछे अपना दुष्कर्म जारी रखते हैं ...आप और इस्तेमाल होने से बच गए -बस अपने निर्णय पर दृढ रहिएगा ..और अपनी ऊर्जा सामाज सेवा में अपनी ताई और अपने विवेकानुसार इस्तेमाल करें ...आपको यहाँ यूज किया जा रहा था ......
मैं तो रवींद्र जी के साथ हूं
आदरणीय रविन्द्र जी, लोग चाहे जो कहे आपका निर्णय बहुत ही गलत है. यदि किसी सेना का सेनापति हर मान जायेगा तो पूरी सेना का क्या होगा. मैं स्वीकार करता हू की विवाद की शुरू आत मुझसे हुयी थी, मेरे जिस विवादित लेख पर डॉ. अनवर भाई को आपत्ति हुयी थी उसके लिए मैं माफ़ी भी उनसे मांग लिया था. यहाँ तक वह लेख ही हमने डिलीट कर दिया था, किसी की धार्मिक भावना को ठेस पहुँचाना गलत है, सिर्फ यही मैं बताना चाहता था, शायद यह मामला निपट भी गया था, किन्तु अनवर भाई जैसे लोगो को समझाया ही नहीं जा सकता. आप अपना इस्तीफ़ा देकर अपनी कमजोरी को प्रदर्शित कर रहे है. सभी लोग आपका सम्मान करते है. किसी को भी आपसे आपत्ति नहीं है. सिर्फ एक आदमी के लिए आप सभी का साथ छोड़ दे यह कही से भी उचित नहीं है. मैं यह समझता हू की एक बार आपको सभी का विचार लेना चाहिए. यदि आप जैसे लोग इतने कमजोर हो जायेंगे तो कोई भी संगठन नहीं चल सकता. यही समस्या उसके सामने भी आएगी जो इस पद को संभालेगा. यह हार सभी की है सिर्फ अनवर को छोड़कर. यदि ऐसा होता रहा वह व्यक्ति जिसे ललकारे वही मैदान छोड़कर भाग जाय. आपका यह फैसला कही से भी जायज नहीं है. आपको एक बार पुनः विचार करना होगा.
पुनश्च.......... मुझे अफ़सोस हो रहा है अभी तक कमेन्ट करने वालो पर जिन्होंने आपके फैसले को गलत नहीं ठहराया बल्कि समर्थन दिया. सभी लोग इस पर विचार करें और इस्तीफे का विरोध करे.
जरा गौर करें....... यदि अनवर की बातो पर कोई गौर करता या तवज्जो देता तो उसकी पोस्ट पर कमेन्ट अवश्य करता किन्तु सभी ने उसका बहिस्कार कर दिया..
@ श्रीमान अध्यक्ष जी ! यह सही है कि किसी के पद या सदस्यता से हट जाने कि वजह से कभी कोई काम नहीं रुकता लेकिन किसी भी क़ाबिल आदमी को यूं ही जाने नहीं दिया जा सकता . आपके पद से हट जाने के बावजूद भी ब्लागिंग की प्रकृति नहीं बदलेगी . मैं आपके पद छोड़ने के फैसले से सहमत नहीं हूँ और आपसे दरख्वास्त करता हूँ कि किसी भी सूरत में अपना पद न छोड़ें . इस मुद्दे पर मैं भाई हरीश जी से सहमत हूँ . आशा है कि आप किसी के मशवरे के बजाय हालात का विश्लेषण खुद करेंगे .कोई भी जगह विवादमुक्त नहीं है, अपना घर भी नहीं . एलबीए भी एक परिवार ही है . चाहे आप सम्मान के इच्छुक न भी हों तब भी जो शख्स मिले हुए सम्मान पर लिए ठोकर मारता है तो उसके लिए भविष्य भी रूठ जाता है . ऐसा विधान है प्रकृति का और वह आपके लिए भी नहीं बदलेगा . समझाना हमेशा से मेरा काम है , मानना या न मानना आपका काम है , ग़लत मशविरा किसी को मैं देता नहीं. आपको चढ़ाने वाले कभी आपके खैरख्वाह नहीं हो सकते , वे आपका इस्तेमाल सिर्फ खुद को मज़बूत बनाने के लिए करते आये हैं और आगे भी वे ऐसा ही करेंगे भी .
आपसे यह निवेदन महज़ स्नेहवश है .
रवीन्द्र प्रभात @मैं इसका मेम्बर नहीं लेकिन आप का इस कारण चला जाना की उठा पटक हो रही है उचित नहीं लगता. जब रसोई मैं ४ बर्तन होंगे तो टकरेंगे भी.
यह और बात है की आप की मुश्किल आप अधिक जान सकते हैं...जाना बहरहाल अच्छा नहीं लगता. कोशिश करें मिल जुल के कोई हल निकल जाए और आप इस पद पे बने रहे..
मैं हरीश जी से सहमत हूं--यद्यपि मुझे आन्तरिक बातें व पद छोडने का कारण नहीं पता----पद छोडना किसी समस्या का हल नहीं होता --यदि अभी हाल की घटनाएं इसका कारण हैं तो यह बिल्कुल भी उचित नहीं है व विरोध होना चाहिये ही....
ye ek aisa pariwaar hai jis mein sabhi ko apni baat kahne hi aazaadi de gayii hai.mera maanna hai ki sabhi samajhdaar hai aur sabhi ko sonchna chahiye ki "aantrik kalah vikaas mein badhak hooti hai"
aur pariwaar ke mukhiya ka manowal tootta hai,
samsyaen aati hai jaati hai par
pad ka tyag us ka hal nahi hota.
samjhdaar aur nishpakch vaktiyon ki zaroorat hai L. B. A. ko shri ravindra prabhat ji ko punar vichar karna chahiye.
ye bahut dukhad hai, lekin isake liye ham sabhi jimmedar hai. mukhiya hamase aagrah kr sakta hai, saadhikar daant sakta hai lekin agar ham uddand hokar usaki barabar upeksha karte rahen to phir mukhiya ka apaman hi hoga. ham apane ko badal nahin paaye aur hamari vahi harkaten barabar jari rahin. ye jaroori nahin hai ki har mukhiya apane bat ki avamaanana ke baad bhi usa pad par bana rahana chahe.
ab isaki dor kaun sanbhalega isaki pahal kab aur kaise hogi ? intjaar hai.