रौनकें कल भी थीं, और कल भी रहेंगी या-रब
फर्क बस मेरा यहाँ होना नहोना होगा,
आज जितना मिले भरपूर उसे जीने दो
क्या पता कल मुझे किस दर्द पे रोना होगा,
फर्क बस मेरा यहाँ होना नहोना होगा,
आज जितना मिले भरपूर उसे जीने दो
क्या पता कल मुझे किस दर्द पे रोना होगा,
सिहर जाता हूँ किसी पल सभी खोना होगा,
आज जितना मिले ............................
मौत का डर नहीं वो बेजुबान आती है
जिंदगी रुख तेरा किस रोज़ सलोना होगा,
आज जितना मिले ............................
जिंदगी रुख तेरा किस रोज़ सलोना होगा,
आज जितना मिले ............................
क्यूँ सुकू देते हैं मखमल के गाव-औ-तकिये
एक ना एक दिन मेरा लकड़ी ही बिछौना होगा.
आज जितना मिले ............................
एक ना एक दिन मेरा लकड़ी ही बिछौना होगा.
आज जितना मिले ............................
आवाज़ देता हूँ, आता नहीं मुर्शद ज़ालिम
आखिरी पल तो उसे सामने होना होगा,
आखिरी पल तो उसे सामने होना होगा,
आज जितना मिले ............................
गोपालजी
'एक ना एक दिन मेरा लकडी ही बिछौना होगा' बहुत खूब। इसे पढकर एक मशहूर कव्वाली आ गई जिसका मुखडा है 'देख तमाश लकडी का'।
bhyt khub.
bhut khub