वही मनुज सच्ची प्रसन्नता का जग में अधिकारी है।
जिसने कोई पराधीनता कभी नहीं स्वीकारी है।
जिसके स्वच्छ विचार कवच बनकर उसकी रक्षा करते।
जिसके सच्चे बोल उच्चतम कौशल का परिचय देते।
विविध लालसाए भी जिसको कभी न दास बना पायीं।
राजभवन या नीच नगर की गलियां भ्रमित न कर पायीं।
कोरी बातों में न उलझ कर, निज विवेक से जो चलता।
चाटुकार या अत्याचारी बनना जिसे नहीं फलता।
बिन प्रयास जो सफल हो गये, उनसे कभी नहीं जलता।
पतितों की विलासता लखकर भी न सत्यपथ से टलता।
मुख में राम बगल में छूरा जिसके पास न रहता है।
लाग-लपेट बिना जो सच्ची बात हृदय से कहता है।
सम्राटों की दमन-नीति से जो न तनिक भी डरता है।
मानवता के मंगलकारी नियमों को ही वरता है।
भौतिक सुख हित नहीं, ईश को कृपा हेतु ही ध्याता है।
विद्वानों के ग्रन्थों को सद्मित्रों सा अपनाता है।
उन्नति-अवनति, ऊच-नीच का जो न तनिक अनुगामी है।
जग का स्वामी भले नहीं हो, किन्तु स्वयं का स्वामी है।
(सर हेनरी वाटन की कविता 'Characters of A Happy Life' का भावानुवाद)
- घनश्याम मौर्य
जिसने कोई पराधीनता कभी नहीं स्वीकारी है।
जिसके स्वच्छ विचार कवच बनकर उसकी रक्षा करते।
जिसके सच्चे बोल उच्चतम कौशल का परिचय देते।
विविध लालसाए भी जिसको कभी न दास बना पायीं।
राजभवन या नीच नगर की गलियां भ्रमित न कर पायीं।
कोरी बातों में न उलझ कर, निज विवेक से जो चलता।
चाटुकार या अत्याचारी बनना जिसे नहीं फलता।
बिन प्रयास जो सफल हो गये, उनसे कभी नहीं जलता।
पतितों की विलासता लखकर भी न सत्यपथ से टलता।
मुख में राम बगल में छूरा जिसके पास न रहता है।
लाग-लपेट बिना जो सच्ची बात हृदय से कहता है।
सम्राटों की दमन-नीति से जो न तनिक भी डरता है।
मानवता के मंगलकारी नियमों को ही वरता है।
भौतिक सुख हित नहीं, ईश को कृपा हेतु ही ध्याता है।
विद्वानों के ग्रन्थों को सद्मित्रों सा अपनाता है।
उन्नति-अवनति, ऊच-नीच का जो न तनिक अनुगामी है।
जग का स्वामी भले नहीं हो, किन्तु स्वयं का स्वामी है।
(सर हेनरी वाटन की कविता 'Characters of A Happy Life' का भावानुवाद)
- घनश्याम मौर्य
bahut achchhi v sachchi prastuti..
सुन्दर काव्यानुवाद.....सच्ची प्रसन्नन्ता मानव मात्र की थाती है...भाषा, देश,काल की सीमा से परे....
लाग-लपेट बिना जो सच्ची बात हृदय से कहता है।
सम्राटों की दमन-नीति से जो न तनिक भी डरता है।
कोरी बातों में न उलझ कर, निज विवेक से जो चलता।
चाटुकार या अत्याचारी बनना जिसे नहीं फलता।
अच्छी कविता।
धन्यवाद।
उन्नति-अवनति, ऊच-नीच का जो न तनिक अनुगामी है।
जग का स्वामी भले नहीं हो, किन्तु स्वयं का स्वामी है।
Wah! Behtareen rachanase ru-b-ru karaya aapne!