भरि पिचकारी प्रीति भरे रंग, पीलो नीलो लाल |
तकि-तकि अँग-अँग रंगरस डारो,अंग अंग भये निहाल |
बरबस बरजूं लोक लाज वश नहिं मान्यो गोपाल |
भीजी अंगिया, भीजी सारी , सकुचि हिये भई लाल |
अँग अँग रस टपकै झर-झर, लखि मुसुकावैं ग्वाल |
श्याम' श्याम ऐसी रंगि दीन्ही ,तन मन भयो गुलाल |
सखी री मोहे रंगि दीन्हो गोपाल ||
वाह्…………गोपाल के रंग मे भीगने के बाद तो लाल ही होना है और हर कोई यही तो चाहता है……………बेहद खूबसूरत होलीमय रचना।
वह आपने तो बिना रंग डाले सराबोर कर दिया.
holi hai !
धन्यवाद, सलीम भाई, हरीश जी एवं वन्दना जी ---होली की सभी को शुभकामनायें....
"भ्रकुटि तानि बरजै सुमुखि, मन ही मन ललचाय ।
पिचकारी ते श्याम की, तन मन सब रंगि जाय ॥"