प्रेम गली
प्रश्न यह मन में था कौन है प्रभु कहाँ?
मैं लगा खोजने,खोजा सारा जहां।
ज्ञान और तर्क के,भाव के कर्म के,
मार्ग खोजे सभी स्वर्ग और नर्क के।
मंदिर मस्जिद में ढूंढा मैंने उसे,
पूजा-अर्चन में खोजा मैंने उसे।
मैंने खोजा उसे तंत्र में मन्त्र में ,
बीजकों के कठिन ज्यामितीय यंत्र में।
गलियों -राहों में मैंने ढूंढा उसे,
चाह में नित नए सुख की ढूंढा उसे।
ढूंढा नव ज्ञान में,मान अभिमान में,
सागर आकाश में , सिद्धि सम्मान में।
हर जगह उसको ढूंढा यहाँ से वहां,
उसको पाया नहीं, ढूढा सारा जहां॥
काबा-काशी गए,और सिज़दे किये,
वेद की उन ऋचाओं में ढूढा किये।
शास्त्र गीता पुराणों में खोजा किये,
गीत संगीत छंदों में झूमा किये।
ढूंढा हमने उसे फूल में शूल में,
पत्र-गुल्मों में, और बृक्ष के मूल में।
खोजते हम रहे माया संसार में,
मन-मुकुर और मानव के व्यवहार में।
ढूंढा हमने उसे योग में, भोग में,
ब्रह्म में मोक्ष और हर खुशी शोक में।
उसको पाया नहीं ढूंढा सारा जहां,
प्रश्न यह मन में था,कौन है प्रभु कहाँ?
प्रेम की जब गली में हम जाने लगे,
प्रीति के स्वर जब मन में समाने लगे।
हमको एसा लगा , पास में ही कहीं,
ईश-वीणा के स्वर गुनगुनाने लगे।
प्रेम सुरसरि की रसधार में हो मगन,
उन शीतल सी लहरों में हम बह गए।
प्रभु के बन्दों की हम पूजा करने लगे,
उसकी हर सृष्टि से प्रेम करने लगे।
सारे संसार में प्रेम सरिता बही,
कण कण से प्रेम के पुष्प झरने लगे
प्रश्न सारे ही मन के सरल होगये,
प्रेम के उन क्षणों में ही प्रभु मिल गए।
प्रेम ही ईश है, प्रेम संसार है,
वह जीवन है, जीवन की रसधार है।
प्रभु बसे प्रेम में,प्रीति और प्यार में,
प्रेम के रूप में मुझको प्रभु मिल गए।
प्रश्न यह मन में था,कौन है प्रभु कहाँ,
मैं लगा खोजने, खोजा सारा जहां।
प्रेम के भाव में मुझको प्रभु मिल गए,
प्रश्न मन के सभी ही यूं हल होगये॥
बहुत ही सुन्दर कविता श्याम जी।
सलीम खान जी का धन्यवाद इस सुन्दर कविता के लिए।
प्रश्न सारे ही मन के सरल होगये,
प्रेम के उन क्षणों में ही प्रभु मिल गए।
ये लाइनें बहुत विशेष लगीं।
थैंक्स अगेन।
बहुत ही सुन्दर कविता श्याम जी।
ध्न्यवाद किलर जी----वैसे किलिन्ग में प्रेम की गली व प्रेम में किलिन्ग-इन्स्टिन्क्ट बहुत काम आती है....
सलीम जी का तो धन्यवाद है ही....