इतिहास में पिता की याद में पुत्र द्वारा मकबरा, पार्क या इमारत आदि बनवाने के क़िस्से और हक़ीक़त आपने ज़रूर सुने देखे होंगे. मगर आज आपको मैं एक ऐसे पिता की कहानी बताऊंगा जिसने अपने पुत्र की याद में घण्टा-घर बनवाया. जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ शहर लखनऊ की ! इस शहर में लगभग आधा दर्जन घण्टा-घर हैं. इससे पहले मैं उन पिता-पुत्रों के नाम बताऊँ, आप पहले लखनऊ शहर के घण्टा-घर के बारें में कुछ विश्लेषण और विशेषताएं जान लें.
घण्टा-घर (Clock Tower) बीते ज़माने के अवशेष में से सबसे आकर्षक संरचनाओं में से एक हैं. कुछ घण्टा-घर तो उस शहर के पर्यायवाची एवं सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक हैं. ज़्यादातर घण्टा-घर देश की आज़ादी के पूर्व ही बने हैं. लखनऊ में भी आधा दर्जन के लगभग घण्टा घर हैं.
हुसैनाबाद घण्टा-घर
लखनऊ का प्रसिद्ध हुसैनाबाद घण्टा-घर जिसे सामान्य रूप से 'घण्टा-घर' ही कहा जाता है, सन 1887 में बनवाया गया था. कहते हैं कि देश भर के घण्टा-घरों में इस तरह का सबसे बड़ा घण्टा-घर यही है. यह छोटा इमामबाड़ा और बड़ा इमामबाड़ा के रास्ते में बीच में पड़ता है और यह रूमी दरवाज़े के क़रीब भी है. यह घण्टा-घर 67 मीटर (220 फिट) ऊँचा है.
इरशाद घण्टा घर |
इरशाद घण्टा-घर
अरे भाई क्या कहा...! 'लखनऊ में पूरी ज़िन्दगी बिता दी और इस घण्टा घर का नाम ही नहीं सुना !' तो भैया इसमें मैं क्या करूँ ! वैसे मैं बता दूं इरशाद घण्टा-घर सिटी स्टेशन के नज़दीक स्थित है. एक तरफ इसे कम ही लोग जानते हैं तो दूसरी तरफ़ इसके पीछे एक बहुत गहरी भावनात्मक कहानी भी है:
ख़ान बहादुर नवाब सैयद हामिद हुसैन खाँ ने इस घण्टा-घर को अपने बेटे नवाब सैयद इरशाद हुसैन खाँ की याद में बनवाया था जिनकी मृत्यु बचपन में ही हो गयी थी. इस ख़ूबसूरत संरचना को देख कर और यह जान कर कि इसे एक बाप ने अपने बेटे की याद में बनवाया था, एक पिता द्वारा अपने पुत्र को किये गए बेपनाह प्यार का एहसास ज़ेहन और दिल में आ जाता है. उस बाप का प्यार 90 साल बाद भी ज़िन्दा है इस घण्टा घर के रूप में !
हालाँकि इस संरचना को बनाने के पीछे एक मकसद और भी था और वह मकसद था, इलाक़े के लोग आसानी से वक़्त का अंदाज़ा लगा सकें और नमाज़ी नमाज़ के वक़्त को जान सकें. पाठकगण फोटो में इरशाद क्लॉक टावर व हामिद पार्क आसानी से पढ़ सकते हैं जो घडी के ठीक नीचे लिखा है. हामिद पार्क के मध्य में यह घण्टा घर स्थित है जिसकी घड़ी को लन्दन से ख़रीद कर लाया गया था. हामिद हुसैन खाँ ब्रितानिया ज़माने में लखनऊ शहर के ताल्लुकेदार और लखनऊ म्युनिसिपल बोर्ड के चेयरमैन थे.
अभी भी इस परिवार के सदस्य सल्तनत मंज़िल में रहते हैं जिसमें प्रो. नवाब सैयद अली हामिद (खान बहादुर के पोते), बेगम नाजिम रज़ा (पड़पोती) और नवाबज़ादा सैयद मासूम रज़ा हैं. सन 1980 में जब इस घड़ी के ख़राब होने पर बरेली से मैकेनिक बुलवाया गया था तो उस ज़माने के लिहाज़ से भी अच्छा-ख़ासा ख़र्चा आया था.
बाराबंकी का घण्टा-घर
लखनऊ के पडोसी शहर बाराबंकी में भी एक घण्टा-घर भीड़ भरे बाज़ार के इलाक़े में स्थित है. इसका कोई नाम न होकर सामान्य रूप से घण्टा-घर ही कहलाता है.
आज के ज़माने में भी कई वर्षो से ये घण्टा-घर शान से खड़े हैं तो इसके पीछे इसके निर्माण के वक़्त बरती गयी समझदारी और तरीक़े की सराहना करना लाज़िमी है. घण्टा-घरों की घड़ियों के रिपेयर होने के बाद फ़िर से चलने की ख़ासियत भी क़ाबिले-तारीफ़ है.
वैसे लखनऊ ही नहीं पूरे अवध और उत्तर प्रदेश में और भी कई घण्टा-घर हैं. जिसके बारे में इंशा-अल्लाह आगे बातें होंगी.
-सलीम ख़ान
(सभी फोटो साभार indscribe)
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