सम्मानित ब्लॉगरों/ पाठक बन्धुवों !
LBA रूबरू का धरावाहिकी साक्षात्कार आज से शुरू होता है, और आज की ब्लॉग शख्सियत हैं::: रेखा श्रीवास्तव जी... आईये उनका स्वागत LBA रूबरू में करते हैं:::
LBA रूबरू में आज ममत्व की देवी ::: रेखा श्रीवास्तव जी |
अपने बारे में कुछ बताएं, मसलन बचपन, पढाई और किशोरावस्था के बारे में?
मेरा जन्म बुंदेलखंड के उरई नामक जगह पर ७ जुलाई १९५५ को हुआ था. पढ़ने का शौक बचपन से ही था क्योंकि मेरे घर में पढ़ाई के प्रति सबकी रूचि थी और मेरे पापा तो हिंदी , उर्दू, संस्कृत, अंग्रेजी और फारसी भाषाओं पर पूरा अधिकार रखते थे. पढ़ने में बचपन में साधारण रही. हाँ पढ़ाई जल्दी ही पूरी की. कभी कोई व्यवधान नहीं आया. उस छोटी जगह में किशोरावस्था आते आते लड़कियों का घर से निकलना सिर्फ स्कूल के लिए ही हुआ करता था. हाँ घर में बहुत सारी पत्रिकाएं आया करती थीं बल्कि उस समय कि सारी स्तरीय पत्रिकाएं हमारे घर आती थी तो हम सब उनको चाटने में पड़े रहते थे.
आपका व्यवसाय क्या है?
व्यवसाय तो भाषा तकनीकी को प्रयोग करके मशीन अनुवाद के कार्य में संलिप्तता. अब तक इंग्लिश से हिंदी, उर्दू, बंगला, मलयालम, तेलुगु भाषाओं में प्रयोग सफलतापूर्वक हो रहा है.
बचपन का कोई ऐसा क़िस्सा जो आज भी आपने ज़ेहन में कौंधता रहता है?
ऐसा कुछ भी याद नहीं.
आप कई वर्षों से लिख रही हैं, लेखन सम्बन्धी कोई ऐसा वाकिया जो भुलाये न भूलता हो, बताईये?
हाँ मैं जब ९ वर्ष की थी तब से लिख रही हूँ. एक वाकया याद है. मुझे पता चला कि मेरी बचपन की शिक्षिका जो अब सेवानिवृत हो चुकी हैं अपनी बहू के दुर्व्यवहार का शिकार हैं. जब कि वे बालविधवा किसी तरह से अपने इकलौते बेटे को पढ़ा लिखा कर कमाने लायक बना पायीं थी. मैंने उसको एक लेख का रूप देकर उस समय प्रकाशित होने वाली पत्रिका "मनोरमा" मैं भेज दिया. प्रकाशित होने के बाद उसमें मेरा फोटो साफ न छपा था. बात उन सज्जन तक पहुँच गयी. वे लोगों से पूछने लगे कि ये रेखा श्रीवास्तव कौन है? खैर बात तो मोहल्ले की थी और लोगों को पता था कि ये लिखती हैं. वे मेरे भाई साहब के कॉलेज में ही टीचर थे. फिर क्या था? दूसरे ही दिन वे स्टाफ रूम में भाई साहब से बोले - 'विनोद तुम्हारी सिस्टर ने ये अच्छा नहीं किया?'
"क्या किया है उसने?" भाई साहब ने भी पूछ ही डाला.
"जो उसने मनोरमा में लिखा है वो ठीक नहीं किया."
"देख भाई, वो लिखती है और इस काम के लिए वह पूरी तरह से स्वतन्त्र है, वह क्या लिखती थी ये हम लोग भी नहीं जानते. हाँ अगर तुम्हें लगता है तो उस के ऊपर मानहानि का दावा ठोक दो."
ये सुनकर और स्टाफ भी बोल उठा - 'अरे विनोद तुमने बताया नहीं कि रेखा लिखती भी है, जरा वो मनोरमा लेते आना हम भी तो पढ़े कि कैसा लिखती है."
भाई साहब ने घर में वाकया बताया और मनोरमा मांगी . मैंने कहा कि नहीं उनके लिए इतना ही काफी है अगर उनमें जरा सी भी गैरत होगी तो अपनी हरकतों को दुहराएंगे नहीं. .
अभी तक आप देश के किन-किन शहरों का भ्रमण कर चुकीं है और क्यूँ?
मैं बहुत अधिक नहीं घूमी हूँ क्योंकि संयुक्त परिवार के साथ बहुत सी जिम्मेदारियों को उठाती रही हूँ. फिर भी राजधानी दिल्ली क्योंकि वहाँ पर मेरी दोनों बेटियाँ रहती हैं और हमारे प्रोजेक्ट की मीटिंग जब मिनिस्ट्री में होती है तो जाना होता है. अपने काम के सिलसिले में ही नॉएडा तो अक्सर ही जाना होता है. इसके अतिरिक्त कोलकाता, त्रिवेंद्रम भी जाना पड़ता है. व्यक्तिगत तौर पर मैं बेंगलौर, नागपुर, नासिक, सिरडी, शिगुनापुर, ग्वालियर, झाँसी आदि का भ्रमण कर चुकी हूँ.
किन-किन पत्रिकाओं/ अख़बारों अथवा ब्लॉग में आपकी मौजूदगी दर्ज हो चुकी है?मैं पांचवीं में पढ़ती थी तभी मेरी पहली कहानी दैनिक जागरण के बाल जगत में प्रकाशित हुई थी. उसके बाद अगर राष्ट्रीय पत्रिका की बात कहूं तो मीना कुमारी के निधन पर मैंने एक संवेदना पत्र लिखा था १९७२ में राष्ट्रीय स्तर कि फिल्मी पत्रिका "माधुरी " में प्रकाशित हुआ और उसके बाद सिलसिला जारी रहा . १९७५ में कादम्बिनी में मेरी पहली कविता प्रकाशित हुई. फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा. साप्ताहिक हिंदुस्तान, धर्मयुग, नवनीत, मनोरमा, सरिता, गृहशोभा, मेरी सहेली इन सब में प्रकाशन हुआ. शादी के बाद लेखन में कुछ व्यवधान पड़ा किन्तु लिखा तब भी और यदा कदा प्रकाशित भी होता रहा. अखबारों में दैनिक जागरण, जनसत्ता, हिंदुस्तान आदी में मेरे ब्लॉग की चर्चा भी हुई और मेरे ब्लॉग लेखों का कहाँ कहाँ जगह मिली मैं विस्तार से नहीं बता सकती हूँ. ब्लॉग तो मेरे अपने ही ५ ब्लॉग हैं.
hindigen - जिसमें सिर्फ कविता लिखती हूँ.
कथा-सागर - सिर्फ कहानियां लिखती हूँ.
यथार्थ - इसमें कुछ यथार्थ प्रस्तुत करती हूँ, जिसमें कल्पना नहीं सिर्फ सत्याधारित हैं.
मेरा सरोकार - इसमें समसामयिक विषयों पर , समस्याओं पर लिखती हूँ.
मेरी सोच - मैं सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और व्यावसायिक विषयों पर लेखन होता है.
इसके अतिरिक्त नारी, नारी की कविता, नुक्कड़, LBA, ऑल इंडिया ब्लॉगर्स एसोसियेशन, प्रगतिशील ब्लॉग लेखक संघ , प्यारी माँ, पिताजी, राजभाषा हिंदी , कायस्थ परिवार पत्रिका
ब्लॉगर कैसे बनीं? आप ब्लॉग-लेखन कब से कर रही हैं और क्यूँ कर कर रहीं हैं?
ब्लॉग मैं ऑफिस में काम करते-करते ही बना डाला था और फिर मेरा ब्लॉग खो गया. खोजना ही नहीं आया. कई महीने तक काम नहीं किया. मेरी ये शुरू की आदत है कि मेरी एक डायरी मेरे ऑफिस में रखी रहती है. कब मन में क्या आया और उसको लिख डाला फिर डायरी बंद. वह घर में नहीं आती थी . मैंने ब्लॉग लेखन सितम्बर २००८ से शुरू किया. प्रकाशन के लिए लिखूं और फिर उसको भेजूं इतना समय नहीं मिलता है. इसलिए ब्लॉग पर तुरंत लिखा और पोस्ट कर दिया. कोई समस्या ही नहीं है. अधिक आसान लगा. अब डायरी के बजाय सीधे ब्लॉग पर डाल देती हूँ.
वर्तमान हिन्दी ब्लॉग-जगत में सामूहिक ब्लॉग की कितनी महत्ता है?
साझा ब्लॉग की महत्ता उतनी ही है जितनी कि अपने . इसमें हम अपने उद्देश्य को तय करके ही साझा ब्लॉग बनायें तो महत्व अधिक है अगर उसको साझी हांड़ी माँ कर कुछ भी पकाया और परोस दिया तब वह उद्देश्यहीन हो जाता है. अपने ब्लॉग पर आप कुछ भी लिख सकते हैं और डाल सकते हैं लेकिन साझा ब्लॉग पर अनर्गल प्रकाशन उसकी गरिमा को कम करता है. इस लिए सभी जुड़े लोगों को कुछ नियमों और कानून से बंधे होने चाहिए और उनका मान भी करना चाहिए.
ब्लॉग-इतिहास में सामूहिक ब्लॉग की पहली महिला अध्यक्षा होने पर आप कैसा महसूस कर रहीं हैं?
हाँ एक जिम्मेदारी महसूस होने लगी है. जिसके प्रति जब तक न्याय कर पाऊँगी इस पद पर रहूंगी अगर अपने को लगा कि मैं न्याय नहीं कर पा रही हूँ तो दूसरे को ये अधिकार सौप दूँगी.
आप LBA के अलावा 'ऑल इण्डिया ब्लॉगर्स एसोसियेशन' AIBA की सदस्य भी हैं, AIBA के बेहतर प्रदर्शन के लिए सुझाव दें ?
जो नियम और क़ानून मैं LBA के लिए चाहती हूँ वही आचार संहिता AIBA के लिए भी देखना चाहूंगी. हमें इस ब्लॉग के माध्यम से उन चीजों पर ध्यान देना चाहिए जो समाज के लिए नासूर बनी हुई हैं. ऐसे लेख होने चाहिए जो एक स्वस्थ मानसिकता के प्रतीक हों न कि हम आपस में ही एक दूसरे कि पोस्ट लेकर तानाकासी करते रह जाएँ ऐसे कार्यों के लिए आपके व्यक्तिगत ब्लॉग हैं आप जो चाहे करें.
>कोई तीन ब्लॉगर का नाम बताईये जिनसे आप प्रभावित हुए बिना नहीं रहीं?इस श्रेणी में समीर लाल जी, रश्मि प्रभा जी और रवींद्र प्रभात जी का नाम लेना चाहूंगी. इन नामों के लिए कुछ भी कहने कि जरूरत नहीं होती. इस विधा के लिए समर्पित व्यक्तित्व हैं आप सब लोग.
अपने व्यक्तिगत ब्लॉग में लेखन का मुख्य विषय / मुद्दा क्या है?मेरे व्यक्तिगत ब्लॉग का मुख्य प्रारूप मैंने ऊपर बता दिया है. मैंने राजनीति शास्त्र , समाज शास्त्र , शिक्षा शास्त्र, मनोविज्ञान का पूर्णरूप से अध्ययन किया है तो इनसे जुड़े विषय मेरे लेखन का विषय होते हैं.
धार्मिक-उपदेश और उनको अपने जीवन में उतारना, आज के युग में कहाँ तक सही है?धार्मिक उपदेश एक व्यक्तिगत मान्यता का विषय है, इसको हम समाज के सन्दर्भ में चर्चित करके औरों पर थोपने की वकालत करें तो व्यर्थ है. बल्कि ऐसे विषय आपस में तनाव पैदा करते हैं. इन्हें व्यक्तिगत स्तर तक ही सीमित रहने दिया जाय. हाँ नैतिक मूल्यों के विषय में चर्चा होनी चाहिए और वे सबके लिए अनुकरणीय हैं.
एक भारतीय महिला को कैसा होना चाहिए, कोई महिला ऐसी है जिसे आप आदर्श के रूप में प्रस्तुत कर सकें?भारतीय महिला को खोजने के लिए कहीं जाना नहीं पड़ता है. हम अपने ब्लॉग जगत में ही देख लें तो उसकी छवि स्पष्ट होती है. वह प्रबुद्ध है और परिपक्व विचारों वाली भी है. मैंने किसी को ऐसा माना नहीं है. वैसे किरण बेदी को मैं प्रस्तुत कर सकती हूँ.
LBA परिवार के लिए कोई सन्देश?परिवार में हमें एक दूसरे कि अभिरुचियों का ध्यान रखना पड़ता है और सभी कि ये कोशिश होनी चाहिए कि प्रस्तुत कृति में अश्लीलता , आक्षेप या फिर दोषारोपण जैसे भाव न हों और जैसा सम्मान हम औरों से चाहते हैं वैसे ही हमें सबकी भावनाओं का सम्मान करना चाहिए.
रेखा जी आप LBA रूबरू में आयीं इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद !
सलीम जी
रेखा जी से रु-ब-रु करवाने के लिये हार्दिक आभारी हूँ………………आज उनके बारे मे जानकार और उनकी विचारधारा के बारे मे जानकर बहुत अच्छा लगा………वैसे उनके ब्लोग के माध्यम से तो उन्हे काफ़ी हद तक जानने ही लगे थे …………उनके विचार बेहद सशक्त और अनुकरणीय हैं…………LBA पद के लिये वे एक उपयुक्त पात्र हैं…………हार्दिक बधाई और शुभकामनायें।
umda jankari, aisi parmpra ki shuruaat ek achchha kadam.
रेखा जी एक सुलझी हुई व्यक्तित्व हैं।
एक सराहनीय क़दम और बेहतरीन साक्षात्कार
ek sukhad abubhav, rekkha ji ke bare me janne ka,
itni badi hasti, bhi ha logo ke beech me hain, i mean blogger hain, achha laga!
रेखा जी के बारे में जान कर सुखद लगा....
उनसे रु-ब-रु करवाने के लिये आपको हार्दिक आभार.
रेखा जी के व्यक्तित्व के बारे में जानकर अच्छा लगा .
काफी जानकारी देता साक्षात्कार ....रेखा जी से यहाँ मिलना अच्छा लगा ..
उनकी रचनाओं जैसा ही सुलझा व्यक्तित्व ..
आभार !
बात यह है कि मेरी माँ और ख़ाला की शक्ल आपस में बहुत मिलती है और बहन रेखा जी की शक्ल उनसे बहुत मिलती है। इसीलिए जैसा सम्मान मैं अपनी प्यारी माँ और ख़ाला का करता हूँ .ऐसा ही सम्मान मैं रेखा जी का भी करता हूँ और उनसे सीधे बहस करने से हमेशा बचता हूँ । ऐसी हस्ती LBA की केयर कर रही हैं , यह हमारे लिए सुकून का बायस है और यह तो सारा हिंदी ब्लॉग जगत पहले से जानता है कि वे एक लायक़ फ़ायक़ औरत हैं। अच्छे लोगों के संघर्ष और विचारों को सामने लाए , इसके लिए हम भाई सलीम ख़ान के ममनून व मशकूर हैं ।
rekha di ke baare me jaankar achchha laga..:)
आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद जिसने मुझे मेरे यथार्थ स्वरूप में स्वीकार किया. मैं आप सबके जैसी ही सीखने वाली इंसान हूँ क्योंकि ये कार्य कभी ख़त्म नहीं होता और कौन किसको क्या सिखा जाएगा इसकी भी कोई निश्चित सीमा नहीं होती.
भारतीय महिला को खोजने के लिए कहीं जाना नहीं पड़ता है. ---सचमुच ...
---समन्वित वक्तव्य व व्यक्तित्व...
--सुन्दर साक्षात्कार के लिये बधाई....
महोदय,
मुझे श्रीमती रेखा श्रीवास्तव जी का यह इंटरव्यूह अच्छा लगा ख़ास तौर पे उनका सामूहिक ब्लॉग की महत्ता समझाने का तरीका मुझे पसंद आया.
मैं हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड के लिए सामूहिक ब्लॉग पे कुछ लेख लिख रहा हूँ, जिसमे श्रीमती रेखा जी के द्वारा सामूहिक ब्लॉग की जो महत्ता बताई गई है उन
पंक्तियों को मैं अपने लेख में जगह देना चाहता हूँ. अतएव मुझे अनुमति दें कि मैं इन पंक्तियों को उनके नाम से अपने लेख में लिक्ख सकूं.
धन्यवाद