जिस भू पर हमने जन्म लिया,
वह वीर-प्रसू है कहलाती ।
सदा धान्य-धन से पूरित यह ,
शश्य-श्यामला भूमि सुहाती ।|
वेद -उपनिषद और पुराणों,
की पावन वाणी से सिन्चित ।
वाल्मीकि और कालिदास की,
काव्य सुरभि इसको महकाए |
तुलसी मीरा सूरदास के,
भजनों की लहरी मन भाये ||
कटि-मेखला बना विन्ध्याचल,
वह सुन्दरवन औ थर मरुथल ||
हिमवान स्वयं है शुभ्र मुकुट,
है रज़त छटा सी छहराती |
वह स्वर्ण मुकुट बन जाता है,
जब दिनकर की आभा छाती ||
केसर की क्यारी काश्मीर,
चहुँ और महक बिखराती है |
चन्दन वन की मलयज समीर,
सब तन मन को महकाती है ||
इस पावन भू पर जन्म मिले,
देवी- देवता तरसते हैं |
है शत शत बार नमन बच्चो !
हम भारत माता कहते हैं ||
वह वीर-प्रसू है कहलाती ।
सदा धान्य-धन से पूरित यह ,
शश्य-श्यामला भूमि सुहाती ।|
वेद -उपनिषद और पुराणों,
की पावन वाणी से सिन्चित ।
राम-कृष्ण माँ सीता-राधा,
दुर्गा,शिव-लीला से मंडित ||
काव्य सुरभि इसको महकाए |
तुलसी मीरा सूरदास के,
भजनों की लहरी मन भाये ||
सागर पैर पखारे इसके,
गंगा-जमुना हैं दिव्यहार |कटि-मेखला बना विन्ध्याचल,
वह सुन्दरवन औ थर मरुथल ||
हिमवान स्वयं है शुभ्र मुकुट,
है रज़त छटा सी छहराती |
वह स्वर्ण मुकुट बन जाता है,
जब दिनकर की आभा छाती ||
केसर की क्यारी काश्मीर,
चहुँ और महक बिखराती है |
चन्दन वन की मलयज समीर,
सब तन मन को महकाती है ||
इस पावन भू पर जन्म मिले,
देवी- देवता तरसते हैं |
है शत शत बार नमन बच्चो !
हम भारत माता कहते हैं ||
सुन्दर कविता, मन को भा गयी।
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विज्ञान पहेली -११
great
इस पावन धरती पर जम लेने को देवी देवता भी तरसते हैं यह अक्षरशः सत्य है | कविता का सौन्दर्य आपके आतंरिक सौन्दर्य का दर्पण बन गया है | बधाई...
व्यस्तता के कारण देर से आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ.
आप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद् और आशा करता हु आप मुझे इसी तरह प्रोत्सन करते रहेगे
दिनेश पारीक