मुक्तिका:
बने सादगी ही श्रृंगार..
संजीव 'सलिल'
*
हम खुद चुनते हैं सरकार.
फिर हो जाते है बेज़ार..
सपने बुनते हैं बेकार.
कभी न होते जो साकार.
नियम-कायदे माने अन्य.
लेकिन हम तोड़ें सौ बार..
कूद-फांद हम बढ़ जायें.
बाकी रहें लगायें कतार..
जनगण के जो प्रतिनिधि हैं.
चाहें हर सुविधा अधिकार..
फ़र्ज़ न किंचित याद रहा.
हक के सब हैं दावेदार..
लोकपाल क्या कर लेगा?
सुधरे नेता अगर न यार..
सुख-सुविधा बिन प्रतिनिधि हों
बने सादगी ही श्रृंगार..
मतदाता से दूर रहें
तो न मौन रह, दो धिक्कार..
अन्ना बच्चा-बच्चा हो.
'सलिल' तभी हो नैया पार..
*********************
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
बने सादगी ही श्रृंगार..
संजीव 'सलिल'
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हम खुद चुनते हैं सरकार.
फिर हो जाते है बेज़ार..
सपने बुनते हैं बेकार.
कभी न होते जो साकार.
नियम-कायदे माने अन्य.
लेकिन हम तोड़ें सौ बार..
कूद-फांद हम बढ़ जायें.
बाकी रहें लगायें कतार..
जनगण के जो प्रतिनिधि हैं.
चाहें हर सुविधा अधिकार..
फ़र्ज़ न किंचित याद रहा.
हक के सब हैं दावेदार..
लोकपाल क्या कर लेगा?
सुधरे नेता अगर न यार..
सुख-सुविधा बिन प्रतिनिधि हों
बने सादगी ही श्रृंगार..
मतदाता से दूर रहें
तो न मौन रह, दो धिक्कार..
अन्ना बच्चा-बच्चा हो.
'सलिल' तभी हो नैया पार..
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Acharya Sanjiv Salil
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