विचारों की मजलिसें...!!
( जनलोकपाल के लिए समाजसेवी अन्ना हजारे ने ' आज़ादी की दूसरी लड़ाई ' के नाम से जनांदोलन छेड़ दिया. व्यवस्था के भ्रष्टाचार से त्रस्त आम आदमी को एक उम्मीद की किरण नज़र आई और पूरे देश से अपार समर्थन मिला. पर, कुछ लोगों की नज़र में यह आन्दोलन लोकतंत्र विरोधी और संसदीय मर्यादा को ठेस पहुँचाने वाला था. कुल मिलाकर इस आन्दोलन ने दो तस्वीर पेश की. पहली यह कि सियासत ने हमें इस कदर विभाजित कर दिया है कि हम सामूहिक रूप से किसी जनसमस्या पर एकजुट होकर आवाज़ भी बुलंद नहीं कर सकते हैं. दूसरी यह कि एक चींटी यदि यह ठान ले तो बड़े से बड़े हाथी को घुटने टेकने पर मजबूर कर देती है )
विचारों की मजलिसें लगी हैं
कुछ '' मुचकुंदियों '' की भीड़
रामलीला मैदान में
सड़ी व्यवस्था सुधारने को
राजा बन बैठे अपने सेवक को
उसका कर्तव्य याद दिलाने को
अनशन पर बैठी है .
कुछ '' मुचकुंदियों '' की भीड़
सड़कों पर वन्दे मातरम, इन्कलाब जिंदाबाद
के नारे लगा रही है.
विचारों की मजलिस में सब
माथापच्ची कर रहे हैं...
कालिया कमल पर
पंजीरी पंजे पर
सरौता साइकिल पर
लुटिया लालटेन पर
हरिया हाथी पर
हल्दिया हंसिया-हथौड़ा पर
घुँघरू घडी पर
पखिया पट्टी पर
बैठकर सब अपनी-अपनी
आजादी की लड़ाई लड़ रहे हैं.
उधर,
जनता के ठेकेदार
संसद में बैठकर
संविधान की दुहाई दे रहे हैं
संसद की गरिमा के खिलाफ
आन्दोलन को हवा दे रहे हैं.
सत्ता का सरदार मौन है!!!
सब दिख रहा है
स्क्रीन पर
जनता के हित में कौन है.
और
कुछ '' मुचकुंदियों '' की भीड़
इस आन्दोलन को
अमेरिका फंडेड बता रहे हैं.
उन्हें दर सता रहा है
कि सालों से सियासत की रोटी
जिस चूल्हे पक रही थी
उस चूल्हे से ये कैसी
चिंगारी भड़क उठी?
जो शोषित चूल्हों
की आवाज़ बुलंद कर रहा है.
सत्ता के सरदार ने
अपने सिपहसालारों को
उस आवाज़ को दबाने का
फरमान जारी कर दिया है.
दूसरी तरफ
एक चूहा छोड़ दिया है.
जिसे सन सैंतालिस के पहले
अंग्रेजों ने छोड़ा था
और
सन सैंतालिस के बाद
काले अंग्रेजों ने सियासत को
चमकाने के लिए छोड़ दिया है.
एक चिंगारी
धीरे-धीरे शोला में तब्दील हो चुकी है.
सियासत उसके खिलाफ गोलबंद हो चुकी है.
आज़ादी की दूसरी लड़ाई को
विफल करने के लिए
सियासत
सियासी चश्मे बाँट रही है.
आह!
हमारे दिल
कितने दलों में बंट गए हैं.
जिसे हमने अपनी
सुरक्षा और विकास के लिए
कुर्सी पर बिठाया
वही सेवक
हमें बांटकर
अपनी तिजोरियां भर रहा है.
अफ़सोस!
कि हम उससे पूछ भी नहीं सकते
कि बताओ, हमारे हिस्से की रोटी
तुमने किसको खिलाई??
चौसठ साल हो गए
भारत पहले मोड़ पर
ठिठका है
और
इंडिया दौड़ रहा है.
इसका जवाब तो
अब देना ही पडेगा.
दल चाहे जितने खड़े कर लो
अब तुम और दिल न बाँट पाओगे.
ये गाँठ बांध लो
कल भी सेवक थे
आज भी सेवक हो
कल भी सेवक कहलाओगे.
फ़र्ज़ से जब भी भटकोगे
कर्म से जब भी मुंह मोड़ोगे
एक चिंगारी भड़केगी
शोला बन रामलीला मैदान में दहकेगी
और
तुम्हारी सत्ता को जलाकर राख कर देगी.
क्योंकि जनक्रांति रोज-रोज नहीं हुआ करती है.
जब सत्ता के सरौते
जनता के हितों और अधिकारों पर
हद से ज्यादा चलने लगते हैं
तो जन-ज्वार उठता है
और
सत्ता के मद को मटियामेट कर देता है.
जय हिंद...!
प्रबल प्रताप सिंह
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