लखनऊ में आप अगर किसी पार्टी के बैनर को बहुतायत में देख पाएंगे तो वो है पीस पार्टी ! लखनऊ में भ्रमण करने पर आपको सैकणों बैनर्स व होल्डिंग्स मिल जायेंगे. मैंने स्वयं इस का जायज़ा लिया. यक़ीन मानिये जिस तरह से पीस पार्टी के प्रति जनता का नज़रिया सकारात्मक है वह आगामी चुनाव में ज़रूर कुछ न कुछ गुल कहलायेगा. मुझे याद आ रहा है सपा का वो शुरुवाती दौर ठीक उसी तरह से मगर सकारात्मकता के साथ पीस पार्टी का अस्तित्व कुछ कथित झंडा बारदारों की नींद ज़रूर हराम कर जायेगा. पिछले एक साल से पीस पार्टी के बढ़ते वजूद की तपिश को मुसलमानों की परंपरागत पार्टी अथवा पार्टियों की ही नींद हराम नहीं की है बल्कि बीजेपी जैसी प्रमुख ग़ैर-मुस्लिम पार्टी को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है.
यह एक बहुत बड़ा संदेह था कि एक मध्यम आयु वर्ग का चिकित्सक जो कि एक बहुत बड़ा अस्पताल चलाता है और डिस्पोज़िबिल सिरिन्ज कारोबार में देश में दुसरे स्थान पर है, राजनीति में प्रवेश कर रहा है. यक़ीनन यह एक बहुत बड़ा संदेह था परन्तु डॉ. अय्यूब ने ये कारनामा कर दिखाया और लोगों एवम विरोधियों का संदेह दूर कर सन्देश दिया कि सफलता तो बस एक अच्छी सोच को कार्यान्वित करने भर से ही निश्चित हो जाती है बस आपकी नीयत साफ़ होनी चाहिए.
पीस पार्टी की और मुसलमानों का ही झुकाव नहीं है, ब्रह्मण एवम पिछड़े वर्ग का एक बड़ा झुण्ड का समर्थन इसे प्राप्त हो रहा है. यह कम आश्चर्य की बात नहीं थी 2009 में हुए चुनाव में ख़लीलाबाद से उठे पीस पार्टी के उम्मीदवार को 1 लाख वोट मिले. वह एक दंग कर देने वाला कारनामा था जिसके पीछे डॉ अय्यूब की सकारात्मक सोच थी.
लखीमपुर में भी विगत उप-चुनाव में सपा का उम्मीदवार जीता था लेकिन पीस पार्टी आश्चर्य जनक रूप से दुसरे नम्बर पर आयी थी जबकि कांग्रेस , भाजपा व बसपा उसके पीछे थीं. यही हाल डुमरियागंज में भी हुआ था जहाँ पीस पार्टी तीसरे नम्बर पर आयी थी.
लोगों के बीच चर्चाएँ अब आम होती जा रही हैं कि "आखिर इसकी फंडिंग कहाँ से होती है?", "क्या है इसका एजेंडा?" कुछ क्षेत्रों में तो पीस पार्टी की लोकप्रियता चौंकाने वाली है तो वही लोगों का यह भी कहना है कि यह एक 'वन मैन शो' है लेकिन जो भी है सब सत्य है. जनाब किस पार्टी में वन मैन शो नहीं है ज़रा मुझे बताईये!?
विगत उप-चुनाव में कई जगहों पर पीस पार्टी दुसरे स्थान पर आई वहीँ कई बड़ी पार्टियों की ज़मानत ज़ब्द हो गयी थी. विगत उप-चुनाव के प्रदर्शन ने विरोधियों को बैठ कर सोचने पर मजबूर कर दिया. तथ्य यह निकल कर भी आ रहा है कि पीस पार्टी प्रमुख रूप से समाजवादी पार्टी को चोट पहुंचाएगी. कहा यह भी जा रहा है कि मुसलमानों में सपा के प्रति गहरी नाराज़गी है क्यूंकि मुलायम सिंह यादव बाबरी मस्जिद के क़ातिलों से जा मिले. मुसलमान छटपटा रहा था कि उसे अब किसका दामन थामना चाहिए, पीस पार्टी ने यह छटपटाहट दूर कर दी.
समाजवादी पार्टी एक यादव के नेतृत्व में मुस्लिम-प्रिय पार्टी थी (थी इसलिए क्यूंकि अब ज़्यादातर मुस्लिम वोट बैंक उससे खिसक चुका है अगर वह मुस्लिम बहुल इलाक़े से जीतती भी है तो वह वहां के लोकल उम्मीदवार की बदौलत होगा न कि सपा अथवा मुलायम सिंह यादव कि वजह से). वहीँ बसपा दलित नेतृत्व में दलित-प्रिय पार्टी है लेकिन पीस पार्टी का यह दावा है कि वह केवल मुस्लिम मुद्दों व हितों के लिए ही वचनबद्ध नहीं है बल्कि अन्य दलित-शोषित, पिछड़े, अति-पिछड़े वर्ग के मूद्दों व हितों के लिए भी उतनी ही वचनबद्ध है. हाँ, मुस्लिम हितों के मुद्दों को लेकर वह अग्रणी रूप से तत्पर अवश्य है.
Dr. Ayyub |
अगर हम पीस पार्टी के प्रयोग को आसाम के मौलाना बदरुद्दीन अजमल की पार्टी AUDF से तुलना करें तो ग़लत न होगा क्यूंकि आसाम में AUDF में मात्र 33% मुस्लिम मतदाता है और अजमल साहब की पार्टी हर चुनाव में और मज़बूत होती जा रही है. कुछ का यह भी कहना है कि पीस पार्टी हैदराबाद स्थित मजलिस-ए-इत्तेहादुल- मुस्लिमीन (MIM) का छोटा संस्करण है जो कि एक बारगेनिंग पार्टी के रूप में शक्ति-कृत है हालाँकि उत्तर प्रदेश के मुकाबले वहां कम मुस्लिम हैं. आन्ध्र में 8% मुस्लिम हैं लेकिन हैदराबाद में MIM की मौजूदगी बेहद सशक्त है. हैदराबाद में 40% मुस्लिम आबादी है. वहीँ अगर यूपी की बात करे तो यहाँ 19% मुस्लिम हैं.
सवाल यह भी है कि क्या सम्पूर्ण मुस्लिम वोट पीस पार्टियो द्वारा अधिग्रहित हो जायेंगे? यह बेहद मुश्किल होगा क्यूंकि अभी भी सपा का वजूद मुस्लिम मस्तिष्क पूरी तरह से खत्म नहीं हो पाया है जिसके कई कारण भी है और पीस पार्टी को इन्ही कारणों पर प्रयोग करना होगा तभी जाकर पीस पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव में अच्छी जीत दर्ज करा सकेगी. उसे अपने थिंक टैंको में शुद्ध पेट्रोल वाले इन्जन लगाने होंगे जो वफ़ादारी के साथ अपना कम करें. मीडिया का भरपूर इस्तेमाल करना होगा अथवा स्वयं मीडिया का कार्यभार संभालना होगा. डॉ अय्यूब जिन पर हाल ही में एक स्पोर्ट्स गाड़ी द्वारा अटैक हुआ था ने यह भी कहा है कि वह सद्भाव व सामाजिक न्याय के लिए सदैव तत्पर हैं और रहेंगे. यह एक अच्छा संकेत है.
Saleem KHAN |
आगामी विधान सभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में सपा आज़म ख़ान को मुख्यमंत्री के रूप में प्रस्तवित करने के मूड में है वही बसपा, रालोद आदि भी अपने अपने तरीके से मुस्लिम समुदाय को रिझाने कि कोशिश में लग गए है. दूसरी तरह प्रदेश में कई और भी मुस्लिम पार्टियाँ है जो कि विभिन्न मुद्दों के साथ मैदान में उतर पड़ी है, हालाँकि वो सिर्फ वोट-कटवा ही साबित हो पाएंगी. इत्तेहाद-ए-मिल्लत कौंसिल, उलेमा कौंसिल, वेलफेयर पार्टी, सूफी महापंचायत आदि कुछ पार्टियाँ हैं जिनको इस श्रेणी में रखा जा सकता है. परन्तु इस तरह से मुस्लिम पार्टी की अधिकता से सिर्फ और सिर्फ वोट का विभाजन ही होगा.
पीस पार्टी हालाँकि इन सबसे ज़्यादा मज़बूत और संगठित है और उसे कई जातीय समूहों का स्पष्ट समर्थन है और प्रदेश की अन्य पार्टियों के नेताओं को भी पीस पार्टी पसंद आ रही है और हाल ही में कई अन्य पार्टियों के नेता इस पार्टी में शामिल भी हो चुकी है.
"एकता का राज चलेगा, हिन्दू-मुस्लिम साथ चलेगा." भारत के सम्मान में, डॉ अय्यूब मैदान में " आदि स्लोगन प्रदेश भी में अलग अलग जगह पर बहुतायत में देखे जा सकते हैं. अब देखना है कि आगामी चुनाव में पीस पार्टी का प्रदर्शन क्या रहता है.
(लेखक पीस पार्टी में लखनऊ से नगर सचिव है.)
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