हमने स्वराज्य करूं के ब्लॉग पर एक दिल दुखाने वाली ख़बर देखी
कृष्ण कन्हैया की धरती पर यह कैसा कलंक ?
ह्रदय को झकझोरनेवाली खबर दी है आपने.सत्य को परखने की बात मत कीजिये बात सत्य ही होगी. इस निर्मूल्य होते मानवीय संबंधों के लिए कुछ करने के लिए अन्ना जैसे आन्दोलन की जरूरत है और उससे पहले अपने हृदयों को स्वक्छ करने की भी
आपकी खबर से तो मैं कांप गई हूँ ...क्या ऐसा भी कहीं हो सकता है ?
बहुत ही मार्मिक और हृदयविदारक प्रसंग
बहुत ही मार्मिक और हृदयविदारक प्रसंग
यह ख़बर दिल दुखाती है और हिंदी ब्लॉगर्स ने अपनी संवेदना भी प्रकट की है लेकिन यह समस्या इससे ज़्यादा तवज्जो चाहती है। यह समस्या एक स्थायी समाधान चाहती है।
क्या है इस समस्या का समाधान कि भविष्य में फिर किसी अनाथ और ग़रीब विधवा के साथ ऐसा अमानवीय बर्ताव न हो।
जब हमने इस पर विचार किया जो हमने पाया कि हिंदू रीति से अंतिम संस्कार बहुत महंगा पड़ता है। महंगा होने की वजह से ही ग़रीब विधवाएं अंतिम संस्कार से वंचित रह जाती हैं। महंगा होने की वजह से ही समाज के लोग उनके साथ ग़ैर इंसानी बर्ताव न चाहते भी करते हैं।
दफ़नाने की विधि अमीर ग़रीब सब अपना सकते हैं। इसमें अपेक्षाकृत बहुत कम ख़र्च आता है और अगर बिल्कुल ग़रीब को सादा तरीक़े से दफ़नाया जाए तो फिर वह ख़र्च भी नहीं होता। दफ़नाने की विधि हिंदुओं में भी प्रचलित है लेकिन इसे केवल मासूम बच्चों के लिए और सन्यासियों के लिए ही प्रयोग किया जाता है।
अगर सभी के लिए यही एक विधि लागू कर दी जाए तो यह समस्या ही समाप्त हो जाएगी कि ग़रीब के अंतिम संस्कार के लिए पैसे नहीं थे लिहाज़ा उसका अंतिम संस्कार नहीं हो पाया।
विधवा विवाह की व्यवस्था होनी चाहिए। समाज में इसे प्रोत्साहन देना चाहिए।
आजकल वैसे भी समाज में स्त्री लिंग का अनुपात पुरूषों के मुक़ाबले कम है।
ऐसे में अगर ढंग से कोशिश की जाए तो कामयाबी मिलने में कोई शक नहीं है।
इस तरह एक विधवा नारी को समाज में इज़्ज़त का मक़ाम भी हासिल हो जाएगा और वह एक इंसान की तरह शान से सिर उठाकर जी सकेगी और मरने के बाद इज़्ज़त के साथ ही उसका अंतिम संस्कार किया जाएगा।
आपकी क्या राय है ?
- आज के अख़बार में एक ख़बर भी नज़र आई है जिससे पता चलता है कि समाज में संवेनाएं अभी ज़िंदा हैं। ख़बर के मुताबिक़ बुलंदशहर (उ. प्र.) में एक संस्था काम कर रही है। जनाब एच. यू. क़ुरैशी साहब की अध्यक्षता में इस यह सोसायटी अब तक 134 लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार कर चुकी है।
- न्यूज़ कटिंग की इमेज सलग्न है।
ऐसा नहीं है कि इन आश्रमों को कहीं से भी सहायता नहीं मिल रही होगी लेकिन इसके संचालक भी सब कुछ अपनी मर्जी से कर रहे होंगे. वहाँ के स्वीपर भी कैसे ऐसा काम कर सकते हें? क्या उनके अन्दर इंसानियत नाम की चीज नहीं है. अगर आश्रम बिल्कुल ही सहायता रहित है तो इतनी सारी स्वयंसेवी संस्थाएं है इस कार्य के लिए सहायता जरूर करेंगी अभी इंसानियत इतनी ख़त्म नहीं हुई है कि मृतकों को ऐसे अपमानित ढंग से फेंका जाय. भारतीय अंतिम संस्कार की प्रणाली अगर खर्चीली है तो विद्युत् शव दाह गृह में जाकर यह काम किया जा सकता है. यहाँ कानपुर में तो एक सज्जन इस काम के लिए प्रतिबद्ध हें कि वे लावारिस लाशों को ले जाकर उनकी अंत्येष्टि करवाते हें और अब तक वे २०० लाशों का अंतिम संस्कार करवा चुके हें. फिर ये आश्रम ऐसे कैसे हो सकते हें? अगर हें तो उन पर लानत है अगर आपके पा धन नहीं है तो आश्रम बंद कर दीजिये लेकिन मानव शरीर के साथ ऐसा भद्दा और घृणित व्यवहार मत कीजिये.