ॐ
छंद सलिला:
कमंद छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति लाक्षणिक, प्रति चरण मात्रा ३२ मात्रा, यति १५-१७, पदांत गुरु गुरु
लक्षण छंद:
रखें यति पंद्रह-सत्रह पर, अमरकण्टकी लहर लहराती
छंद सलिला:
कमंद छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति लाक्षणिक, प्रति चरण मात्रा ३२ मात्रा, यति १५-१७, पदांत गुरु गुरु
लक्षण छंद:
रखें यति पंद्रह-सत्रह पर, अमरकण्टकी लहर लहराती
छंद कमंद पदांत गुरु-गुरु, रसगंगा ज्यों फहर फहराती
उदाहरण:
१. प्रभु को भजते संत सुजान, भुलाकर अहंकार-मद सारा
जिसने की दीन की सेवा, उसने जन्म का पाप उतारा
संग न गया कभी कहीं कुछ, कुछ संग बोलो किसके आया
किसे सगा कहें हम अपना, किसको बोलो बोलें पराया
१. प्रभु को भजते संत सुजान, भुलाकर अहंकार-मद सारा
जिसने की दीन की सेवा, उसने जन्म का पाप उतारा
संग न गया कभी कहीं कुछ, कुछ संग बोलो किसके आया
किसे सगा कहें हम अपना, किसको बोलो बोलें पराया
२. हम सब भारत माँ के लाल, चरण में सदा समर्पित होंगे
उच्च रखेंगे माँ का भाल, तन-मन के सुमन अर्पित होंगे
गर्व है हमको मैया पर, गर्व हम पर मैया को होगा
सर कटा होंगे शहीद जो, वे ही सुपूजित चर्चित होंगे
३. विदेशी भाषा में शिक्षा, मिले- उचित है भला यह कैसे?
विरासत की सतत उपेक्षा, करी- शुभ ध्येय भला यह कैसे?
स्वमूल्य का अवमूल्यन कर, परमूल्यों को बेहतर बोलें
'सलिल' अमिय में अपने हाथ, छिपकर हलाहल कैसे घोलें?
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कमंद, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदन,मदनावतारी, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
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