उत्तर भारत में भाद्रपद ( भादों )माह के अंतिम मंगलवार को 'बुढ़वा मंगल ' का पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव के अवतार माने जाने वाले हनुमान जी के दर्शन करना शुभ माना जाता है। आज 'बुढ़वा मंगल' का पर्व मनाया जा रहा है.
जन विश्वास है कि 'बुढ़वा मंगल' पर हनुमान जी की विधिवत पूजा करने से सारे कष्ट मिट जाते हैं। बिगड़े हुए काम बन जाते हैं। पवनपुत्र हनुमान जी के दर्शन मात्र से हर मनोकामना पूरी हो जाती है।
माना जाता है कि 'बुढ़वा मंगल' के दिन बजरंग बली जी को सिंदूर चढ़ाना और उनके सामने 'बुढ़वानल स्तोत्र' का पाठ करना कल्याणकारी होता है।
'बुढ़वा मंगल' से संबंधित जनश्रुतियाँ (कथायें)
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'बुढ़वा मंगल' से संबंधित पहली कथा त्रेता युग में 'रामायण काल' से संबंधितहै। मान्यता है कि आज ही के दिन अर्थात् भाद्रपद के आखिरी मंगलवार को लंका पहुँचने पर रावण के आदेश से हनुमान जी की पूंछ में आग लगाई गयी थी।
पूँछ में आग लगने के बाद हनुमान जी ने अपना विकराल रूप धारण किया और रावण की लंका जलाने के लिए अपनी पूंछ में 'बड़वानल' (अग्रि) पैदा की थी जिस कारण इस माह के आखिरी मंगलवार को
' बुढ़वा मंगल' नाम मिला। इस दिन केवल रावण की लंका ही नहीं जली थी रावण के घमंड के चूर होने का आरंभ हुआ था।
'बुढ़वा मंगल' से संबंधित दूसरी कथा 'द्वापर युग' में महाभारत के समय की है. कहते हैं कि पाँच पांडवों में द्वितीय कुंती पुत्र महाबलशाली 'भीम' को अपनी शक्ति पर बड़ा अभिमान हो गया था। उनको घमंड तोड़ने के लिए रूद्र अवतार 'भगवान हनुमान' ने एक बूढ़े बंदर का रूप रखा था।
महाबली 'भीम' एक बार कहीं जा रहे थे तो एक बूढ़े वानर का रूप रख 'हनुमान जी' उनके रास्ते के बीच में लेट गये l उस दिन भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष का अंतिम मंगलवार था। जैसे ही ' भीम' उस पथ से निकले उन्हें रास्ते में एक वृद्ध बंदर लेटा हुआ दिखा। उन्होंने अपने बल के अभिमान में आकर तिरस्कार की भावना से उस वृद्ध वानर से कहा ," रास्ते से अपनी पूँछ हटाओ वानर!" इस पर वानर के रूप में विराजमान हनुमान जी ने उत्तर दिया , "तुम 10000 हाथियों का बल रखते हो भीम! खुद ही इस पूँछ को हटा लो। " क्रोध के आवेश में भीम आगे बढ़े और उन्होंने वानर की पूँछ उठाने की पुरजोर चेष्टा की ,पर वे उसे हिला तक नहीं सके।
भीम ने विस्मित होते हुये तत्काल श्री कृष्ण को याद किया जिससे से उन्हें ज्ञान हुआ कि ये वानर साधारण वानर नहीं, महाशक्तिशाली हनुमान जी हैं। उन्होंने तत्काल हनुमान जी से क्षमा माँगी l हनुमान जी ने उन्हें विजय का आशीर्वाद दिया l
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