संजीव
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वंदन
पर्वत राज तुम्हारा
पहरेदार देश के हो तुम
देख उच्चता होश हुए गुम
शिखर घाटियाँ उच्च-भयावह
सरिताएँ कलकल जाती बह
अम्बर
ने यशगान उचारा
जगजननी-जगपिता बसे हैं
मेघ बर्फ में मिले धंसे हैं
ब्रम्हपुत्र-कैलाश साथ मिल
हँसते हैं गंगा के खिलखिल
चाँद-
चाँदनी ने उजियारा
दशमुख-सगर हुए जब नतशिर
समाधान थे दूर नहीं फिर
पांडव आ सुरपुर जा पाये
पवन देव जय गा मुस्काये
भास्कर
ने तम सकल बुहारा
शीश मुकुट भारत माँ के हो
रक्षक आक्रान्ताओं से हो
जनगण ने सर तुम्हें नवाया
अपने दिल में तुम्हें बसाया
सागर
ने हँस बिम्ब निहारा
९-११-२०१४
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