दोहा-दोहा दिवाली
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मृदा नीर श्रम कुशलता, स्वेद गढ़े आकार।
बाती डूबे स्नेह में, ज्योति हरे अँधियार।।
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तम से मत कर नेह तू, झटपट जाए लील।
पवन झँकोरों से न डर, जल बनकर कंदील।।
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संसद में बम फूटते, चलें सभा में बाण।
इंटरव्यू में फुलझड़ी, सत्ता में हैं प्राण।।
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पति तज गणपति सँग पुजें, लछमी से पढ़ पाठ।
बाँह-चाह में दो रखे, नारी के हैं ठाठ।।
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रिद्धि-सिद्धि, हरि की सुने, कोई न जग में पीर।
छोड़ गए साथी धरें, कैसे कहिए धीर।।
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संजीव, ३.११.२०१८
९४२५१८३२४४
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