लघुकथा
मुस्कुराहट
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साहित्यकारों की गोष्ठी में अखबारों तथा अंतर्जाल पर नकारात्मक समाचारों के बाहुल्य पर चिंता व्यक्त की गई। हर अखबार और चैनल की वैचारिक प्रतिबद्धता को स्वतंत्र चेतना हेतु घातक बताते हुए सभी विचारधाराओं और असहमत जनों के प्रति सहिष्णुता पर बल दिया गया।
नेताओं पर अपने विचारों के पिंजरे में कैद रहने की प्रवृत्ति की कटु आलोचना करते हुए, विविध विचारों के समन्वय पर बल दिया गया।
एक साहित्यकार ने पटल पर कुछ अन्य साहित्यकारों द्वारा भिन्न विधा संबंधी शंका-समाधान पर प्रश्न उठाते हुए निंदा प्रस्ताव प्रस्तुत कर दिया। प्रश्नकर्ता कहता ही रह गया कि एक विधा मुख्य होते हुए भी भिन्न विधाओं की चर्चा करना, जानकारी लेना-देना अपराध नहीं है। सब विधाएँ एक-दूसरे की पूरक हैं किंतु आपत्तिकर्ता शांत होने के स्थान पर अधिकाधिक उग्र होते गए। विवश संयोजक ने शांति स्थापित करने हेतु एक को छोड़कर अन्य विधाओं को प्रतिबंधित कर दिया।
कोने में रखी, मकड़जाल में कैद सरस्वती प्रतिमा के अधरों पर विचार और आचार के विरोधाभास को देख, झलक रही थी व्यंग्यपरक मुस्कुराहट।
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संजीव
५-११-२०१९
७९९९५५९६१८

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