हे माधव !
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प्रगटो फिर से भारत भू पर हे माधव।
दुराचार का कंस न दंडित हे माधव।।
प्रगटो फिर से भारत भू पर हे माधव।
दुराचार का कंस न दंडित हे माधव।।
दल मिल दलदल मजा रहे हैं है माधव।
लोकतंत्र को मिटा रहे हैं हे माधव।।
खुद निज घर में आग लगाते हे माधव।
रोजगार नित घटते जाते हे माधव।।
जनप्रतिनिधि अय्याश चीर हरते झूमें।
न्यायालय से राहत पाते हे माधव।।
श्री राधे हर कन्या भय से काँप रही।
खलनायक अधिकार जताते हे माधव।।
काले कोसों का सफेद दिल करो सखे!
चंद टकों हित बिक जाते हैं हे माधव।।
नहीं लोक की चिंता किंचित शेष बची।
नहीं देश से प्रेम बचा है हे माधव।।
सबको सत्ता स्वार्थ साध्य हो गया प्रभो!
बजा बाँसुरी इन्हें सुधारो हे माधव।।
वृक्ष काटते जो उनके अब शीश कटें।
मधुवन सारा हिंद बना दो हे माधव।।
निर्मल सलिल मलिन होने से रोको हरि!
जनमत को संजीव बना दो रे माधव।।
भोर उगे सूरज तम कर उजियाला दे।
कीचड़ में भी कमल खिला दो हे माधव।।
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संजीव
७९९९५५९६१८
२०-१२-२०१९
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