सरस्वती पूजन
*
आइए! माँ शारदे का हम करें पूजन।
सलिल सिंचन कर लगाएँ माथ पर चंदन।।
हरिद्रा-कुंकुम व अक्षत सहित अर्पित पुष्प-
शंख-घंटा ध्वनि सहित हो श्लोक का गायन।।
*
संजीव
.
कुण्डी खटकी
उठ खोल द्वार
है नया साल
कर द्वारचार
.
छोडो खटिया
कोशिश बिटिया
थोड़ा तो खुद को
लो सँवार
.
श्रम साला
करता अगवानी
मुस्का चहरे पर
ला निखार
.
पग द्वय बाबुल
मंज़िल मैया
देते आशिष
पल-पल हजार
कमी न कोशिश में रहे, तभी मिले उत्कर्ष।।
चन्दन वंदन कर मने, नया साल त्यौहार-
आइए! माँ शारदे का हम करें पूजन।
सलिल सिंचन कर लगाएँ माथ पर चंदन।।
हरिद्रा-कुंकुम व अक्षत सहित अर्पित पुष्प-
शंख-घंटा ध्वनि सहित हो श्लोक का गायन।।
*
दीप प्रज्वलन
दीपज्योति परब्रह्म है, सकल तिमिर कर दूर।
सुख-समृद्धि- मति विमल दे, सख बरसा भरपूर।।
*
आत्म दीप जल दुःख हरे, करे पाप का नाश।
अंतर्मन-सब जगत में, प्रसरित करे प्रकाश।।
*
धूप-अगरु की गंध हर, अहंकार दुर्गंध।
करे सुवासित प्राण-मन, फैला मदिर सुगंध।।
*
हे रविवंशज दीप जल; हरो तिमिर सब आज।
उजियारे का जगत में; दीपक कर दो राज।।
ज्ञान-उजाला दो हमें; करते विनत प्रणाम-
-आत्म-जगत उजियार दो; साध जाए शुभ काज।।
*
सरस्वती वंदना
*
हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी,
अम्ब विमल मति दे
जग सिरमौर बनाएँ भारत,
वह बल विक्रम दे ।।
हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
अम्ब विमल मति दे।।१।।
साहस शील हृदय में भर दे,
जीवन त्याग-तपोमय कर दे,
संयम सत्य स्नेह का वर दे,
स्वाभिमान भर दे ।।२।।
हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
अम्ब विमल मति दे।
अम्ब विमल मति दे ।।
लव, कुश, ध्रुव, प्रहलाद बनें हम
मानवता का त्रास हरें हम,
सीता, सावित्री, दुर्गा माँ,
फिर घर-घर भर दे ।।३।।
हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
अम्ब विमल मति दे।।
***
सरस्वती वंदना
बृज भाषा
*
सुरसती मैया की किरपा बिन, नैया पार करैगो कौन?
बीनाबादिनि के दरसन बिन, भव से कओ तरैगो कौन?
बेद-पुरान सास्त्र की मैया, महिमा तुमरी अपरंपार-
तुम बिन तुमरी संतानन की, बिपदा मातु हरैगो कौन?
*
धारा बरसैगी अमरित की, माँ सारद की जै कहियौ
नेह नरमदा बन जीवन भर, निर्मल हो कै नित बहियौ
किशन कन्हैया तन, मन राधा रास इन्द्रियन ग्वालन संग
भक्ति मुरलिया बजा रचइयौ, प्रेम गोपियन को गहियौ
***
*
हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी,
अम्ब विमल मति दे
जग सिरमौर बनाएँ भारत,
वह बल विक्रम दे ।।
हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
अम्ब विमल मति दे।।१।।
साहस शील हृदय में भर दे,
जीवन त्याग-तपोमय कर दे,
संयम सत्य स्नेह का वर दे,
स्वाभिमान भर दे ।।२।।
हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
अम्ब विमल मति दे।
अम्ब विमल मति दे ।।
लव, कुश, ध्रुव, प्रहलाद बनें हम
मानवता का त्रास हरें हम,
सीता, सावित्री, दुर्गा माँ,
फिर घर-घर भर दे ।।३।।
हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
अम्ब विमल मति दे।।
***
सरस्वती वंदना
बृज भाषा
*
सुरसती मैया की किरपा बिन, नैया पार करैगो कौन?
बीनाबादिनि के दरसन बिन, भव से कओ तरैगो कौन?
बेद-पुरान सास्त्र की मैया, महिमा तुमरी अपरंपार-
तुम बिन तुमरी संतानन की, बिपदा मातु हरैगो कौन?
*
धारा बरसैगी अमरित की, माँ सारद की जै कहियौ
नेह नरमदा बन जीवन भर, निर्मल हो कै नित बहियौ
किशन कन्हैया तन, मन राधा रास इन्द्रियन ग्वालन संग
भक्ति मुरलिया बजा रचइयौ, प्रेम गोपियन को गहियौ
***
भारत माता
भारत माता मुक्तिदायिनी; गोदी में भगवान खिलाती।
लोरी सुना राम-कान्हा को; सीता-राधा को दुलराती।।
सुंदर है यह अधिक स्वर्ग से; महिमा गाते वेद-पुराण।
धन्य हुए पा जन्म यहाँ; अर्पित रक्षा में कर दें प्राण।।
*
हिंदी दिवस पर नवगीत
अपना हर पल
है हिन्दीमय
एक दिवस
क्या खाक मनाएँ?
बोलें-लिखें
नित्य अंग्रेजी
जो वे
एक दिवस जय गाएँ...
*
निज भाषा को
कहते पिछडी.
पर भाषा
उन्नत बतलाते.
घरवाली से
आँख फेरकर
देख पडोसन को
ललचाते.
ऐसों की
जमात में बोलो,
हम कैसे
शामिल हो जाएँ?...
हिंदी है
दासों की बोली,
अंग्रेजी शासक
की भाषा.
जिसकी ऐसी
गलत सोच है,
उससे क्या
पालें हम आशा?
इन जयचंदों
की खातिर
हिंदीसुत
पृथ्वीराज बन जाएँ...
ध्वनिविज्ञान-
नियम हिंदी के
शब्द-शब्द में
माने जाते.
कुछ लिख,
कुछ का कुछ पढने की
रीत न हम
हिंदी में पाते.
वैज्ञानिक लिपि,
उच्चारण भी
शब्द-अर्थ में
साम्य बताएँ...
अलंकार,
रस, छंद बिम्ब,
शक्तियाँ शब्द की
बिम्ब अनूठे.
नहीं किसी
भाषा में मिलते,
दावे करलें
चाहे झूठे.
देश-विदेशों में
हिन्दीभाषी
दिन-प्रतिदिन
बढ़ते जाएँ...
अन्तरिक्ष में
संप्रेषण की
भाषा हिंदी
सबसे उत्तम.
सूक्ष्म और
विस्तृत वर्णन में
हिंदी है
सर्वाधिक
सक्षम.
हिंदी भावी
जग-वाणी है
निज आत्मा में
'सलिल' बसाएँ...
**************
हिंदी आरती
*
भारती भाषा प्यारी की।
आरती हिन्दी न्यारी की।।
*
वर्ण हिंदी के अति सोहें,
शब्द मानव मन को मोहें।
काव्य रचना सुडौल सुन्दर
वाक्य लेते सबका मन हर।
छंद-सुमनों की क्यारी की
आरती हिंदी न्यारी की।।
*
रखे ग्यारह-तेरह दोहा,
सुमात्रा-लय ने मन मोहा।
न भूलें गति-यति बंधन को-
न छोड़ें मुक्तक लेखन को।
छंद संख्या अति भारी की
आरती हिन्दी न्यारी की।।
*
विश्व की भाषा है हिंदी,
हिंद की आशा है हिंदी।
करोड़ों जिव्हाओं-आसीन
न कोई सकता इसको छीन।
ब्रम्ह की, विष्णु-पुरारी की
आरती हिन्दी न्यारी की।।
*****
भारत आरती
*
आरती भारत माता की
सनातन जग विख्याता की
*
सूर्य ऊषा वंदन करते
चाँदनी चाँद नमन करते
सितारे गगन कीर्ति गाते
पवन यश दस दिश गुंजाते
देवगण पुलक, कर रहे तिलक
ब्रह्म हरि शिव उद्गाता की
आरती भारत माता की
*
हिमालय मुकुट शीश सोहे
चरण सागर पल पल धोए
नर्मदा कावेरी गंगा
ब्रह्मनद सिंधु करें चंगा
संत-ऋषि विहँस, कहें यश सरस
असुर सुर मानव त्राता की
आरती भारत माता की
*
करें श्रृंगार सकल मौसम
कहें मैं-तू मिलकर हों हम
ऋचाएँ कहें सनातन सच
सत्य-शिव-सुंदर कह-सुन रच
मातृवत परस, दिव्य है दरस
अगिन जनगण सुखदाता की
आरती भारत माता की
*
द्वीप जंबू छवि मनहारी
छटा आर्यावर्ती न्यारी
गोंडवाना है हिंदुस्तान
इंडिया भारत देश महान
दीप्त ज्यों अगन, शुद्ध ज्यों पवन
जीव संजीव विधाता की
आरती भारत माता की
*
मिल अनल भू नभ पवन सलिल
रचें सब सृष्टि रहें अविचल
अगिन पंछी करते कलरव
कृषक श्रम कर वरते वैभव
अहर्निश मगन, परिश्रम लगन
ज्ञान-सुख-शांति प्रदाता की
आरती भारत माता की
*****
हिंदी दिवस पर नवगीत
अपना हर पल
है हिन्दीमय
एक दिवस
क्या खाक मनाएँ?
बोलें-लिखें
नित्य अंग्रेजी
जो वे
एक दिवस जय गाएँ...
*
निज भाषा को
कहते पिछडी.
पर भाषा
उन्नत बतलाते.
घरवाली से
आँख फेरकर
देख पडोसन को
ललचाते.
ऐसों की
जमात में बोलो,
हम कैसे
शामिल हो जाएँ?...
हिंदी है
दासों की बोली,
अंग्रेजी शासक
की भाषा.
जिसकी ऐसी
गलत सोच है,
उससे क्या
पालें हम आशा?
इन जयचंदों
की खातिर
हिंदीसुत
पृथ्वीराज बन जाएँ...
ध्वनिविज्ञान-
नियम हिंदी के
शब्द-शब्द में
माने जाते.
कुछ लिख,
कुछ का कुछ पढने की
रीत न हम
हिंदी में पाते.
वैज्ञानिक लिपि,
उच्चारण भी
शब्द-अर्थ में
साम्य बताएँ...
अलंकार,
रस, छंद बिम्ब,
शक्तियाँ शब्द की
बिम्ब अनूठे.
नहीं किसी
भाषा में मिलते,
दावे करलें
चाहे झूठे.
देश-विदेशों में
हिन्दीभाषी
दिन-प्रतिदिन
बढ़ते जाएँ...
अन्तरिक्ष में
संप्रेषण की
भाषा हिंदी
सबसे उत्तम.
सूक्ष्म और
विस्तृत वर्णन में
हिंदी है
सर्वाधिक
सक्षम.
हिंदी भावी
जग-वाणी है
निज आत्मा में
'सलिल' बसाएँ...
**************
हिंदी आरती
*
भारती भाषा प्यारी की।
आरती हिन्दी न्यारी की।।
*
वर्ण हिंदी के अति सोहें,
शब्द मानव मन को मोहें।
काव्य रचना सुडौल सुन्दर
वाक्य लेते सबका मन हर।
छंद-सुमनों की क्यारी की
आरती हिंदी न्यारी की।।
*
रखे ग्यारह-तेरह दोहा,
सुमात्रा-लय ने मन मोहा।
न भूलें गति-यति बंधन को-
न छोड़ें मुक्तक लेखन को।
छंद संख्या अति भारी की
आरती हिन्दी न्यारी की।।
*
विश्व की भाषा है हिंदी,
हिंद की आशा है हिंदी।
करोड़ों जिव्हाओं-आसीन
न कोई सकता इसको छीन।
ब्रम्ह की, विष्णु-पुरारी की
आरती हिन्दी न्यारी की।।
*****
भारत आरती
*
आरती भारत माता की
सनातन जग विख्याता की
*
सूर्य ऊषा वंदन करते
चाँदनी चाँद नमन करते
सितारे गगन कीर्ति गाते
पवन यश दस दिश गुंजाते
देवगण पुलक, कर रहे तिलक
ब्रह्म हरि शिव उद्गाता की
आरती भारत माता की
*
हिमालय मुकुट शीश सोहे
चरण सागर पल पल धोए
नर्मदा कावेरी गंगा
ब्रह्मनद सिंधु करें चंगा
संत-ऋषि विहँस, कहें यश सरस
असुर सुर मानव त्राता की
आरती भारत माता की
*
करें श्रृंगार सकल मौसम
कहें मैं-तू मिलकर हों हम
ऋचाएँ कहें सनातन सच
सत्य-शिव-सुंदर कह-सुन रच
मातृवत परस, दिव्य है दरस
अगिन जनगण सुखदाता की
आरती भारत माता की
*
द्वीप जंबू छवि मनहारी
छटा आर्यावर्ती न्यारी
गोंडवाना है हिंदुस्तान
इंडिया भारत देश महान
दीप्त ज्यों अगन, शुद्ध ज्यों पवन
जीव संजीव विधाता की
आरती भारत माता की
*
मिल अनल भू नभ पवन सलिल
रचें सब सृष्टि रहें अविचल
अगिन पंछी करते कलरव
कृषक श्रम कर वरते वैभव
अहर्निश मगन, परिश्रम लगन
ज्ञान-सुख-शांति प्रदाता की
आरती भारत माता की
*****
अतिथि आमंत्रण
आत्मीय प्रिय अतिथि पधारें।
शब्द सुमन माला स्वीकारें।।
स्नेह-सलिल स्वागत सहर्ष है-
आसंदी पर आ उपकारें।।
आत्मीय प्रिय अतिथि पधारें।
शब्द सुमन माला स्वीकारें।।
स्नेह-सलिल स्वागत सहर्ष है-
आसंदी पर आ उपकारें।।
*
स्वागत कर हम धन्य हो रहे, अतिथि पधारे परिसर में।
प्रेरक है व्यक्तित्व आपका, कीर्ति गूँजती घर-घर में।।
हुलसित पुलकित करतल ध्वनि कर; पलक पाँवड़े बिछा रहे-
करें सुशोभित आसंदी को; नम्र निवेदन हर स्वर में।।
*
अतिथि परिचय
हैं समान इंसान सभी पर कुछ होते विशेष गुणवान।
जिनके सत्कर्मों की होती चर्चा सब करते गुणगान।।
ऐसा ही व्यक्तित्व हमारे मध्य अतिथि हो आया है-
कर स्पर्श लौह को सोना करता यह व्यक्तित्व महान।।
*
सलिला में सीपी, सीपी में मोती पलता, सब जानें।
संघर्षों से जूझ बढ़े जो, उसका लोहा सब मानें।।
मेहनत लगन समर्पण से जो नित ऊपर उठते जाते-
ऐसे ही है अतिथि आज के, वह पा लेते ठानें।।
पुलकित-हुलसित-प्रमुदित-हर्षित हो हम वंदन करते हैं।
स्रोत प्रेरणा के अनुपम हे अतिथि! नमन हम करते है।.
*
सद्गुण के भंडार हे!; सदाचार आगार।
दस दिश गुंजित कीर्ति तव, धरती के श्रृंगार।।
धूप सुवास बिखर रही; जले प्रेरणा-दीप-
तम हर दिव्य प्रकाश दो; स्वीकारो आभार।।
अतिथि स्वागत
नियत तिथि पर अतिथि हे!; आप पधारे आज।
करतल ध्वनि वंदन करे; माथे तिलक विराज।।
रोली चंदन सुशोभित; अक्षत भाव अनंत।
शब्द-गलहार हैं; स्वीकारें श्रीमंत।।
*
माइक वंदना
ध्वनि विस्तारक यंत्र हे! स्वीकारो वंदन।
मम वाणी विस्तार दो, करते अभिनन्दन।।
दस दिश अनहद नाद सम गूँजे मेरा वाक्-
शब्द-शब्द में अर्थ भर; सब जग सुने अवाक्।।
*
नववर्ष
स्वागत है नव वर्ष!, नव उत्कर्ष दो।
हरो तम-गम; पुलककर नव हर्ष दो।
निरर्थक बहसें न हों; मत ऐक्य हो-
एक हों मन-प्राण, स्वस्थ्य विमर्श दो।।
*
नया ईस्वी सन लाया है; नव आशा उपहार।
स्नेह सौख्य सद्भाव अब स्वागत-बंदनवार।।
ईसा जैसी सहन ;क्षमा करें हम सबको-
ईर्ष्या-द्वेष मुक्त हो हर मन; भू हो स्नेहागार।।
*
हिजरी सन पैगंबर का संदेश सुनाने आया।
परमपिता है एक हमारा यह संदेशा लाया।।
बिसरा दो मतभेद सभी; मतभेद न होने देना-
हम सब औलादें हैं रब की; सब पर उसका साया।।
*
विक्रम संवत बल-विक्रम की दिखा रहा है राह।
सबसे सबका सदा भला हो; मन में हो यह चाह।।
सबल; निबल हितरक्षक हों; दूर करें तकलीफ-
जीव सभी संजीव हो सकें; पाएँ प्रभु से वाह।।
*
शक संवत शक सभी मिटाकर शंकर हमें बनाएँ।
हर मन में श्रद्धा-विश्वास सुदीपक सदा जलाएँ।।
कर-पग साथ रहें अपने; सुख-दुःख में हों हम साथ -
स्नेह सलिल में नहा; साधना करें सफलता पाएँ।।
*
नव वर्ष
नवगीत:संजीव
.
कुण्डी खटकी
उठ खोल द्वार
है नया साल
कर द्वारचार
.
छोडो खटिया
कोशिश बिटिया
थोड़ा तो खुद को
लो सँवार
.
श्रम साला
करता अगवानी
मुस्का चहरे पर
ला निखार
.
पग द्वय बाबुल
मंज़िल मैया
देते आशिष
पल-पल हजार
*
नया साल आ रहा है, खूब मनाओ हर्ष। कमी न कोशिश में रहे, तभी मिले उत्कर्ष।।
चन्दन वंदन कर मने, नया साल त्यौहार-
केक तजें, गुलगुले खा, पंचामृत पी यार।।
*
शुभकामना
आपको अर्पित हमारी हार्दिक शुभकामना।
दूर भव-बाधा सकल हो; पूर्ण हो मनकामना।।
पग रखो जब पंथ पर तो लक्ष्य खुद आए समीप-
जुटें संसाधन सभी; करना नहीं तुम याचना।।
*
दुआ
दुआ सभी के लिए है; सभी सुखी हों मीत।
सबका सबसे हित सधे; पले सभी में प्रीत।।
सफल साधना कर सभी; नई बनाएँ रीत -
सद्भावों से सुवासित; 'सलिल' सुनाएँ गीत।।
*
स्वर गीत
'अ' से अजगर; अचकन; अफसर,
'आ' से आम; आग, आराम।
'इ' से इमली; इस; इकतारा,
'ई' से ईख; ईश; ईनाम।
'उ' से उजियारा; उलूक, उठ,
'ऊ' से ऊखल; ऊसर; ऊन।
'ए' से एड़ी; एक; एकाकी
'ऐ' से ऐनक; ऐसा; ऐन।
'ओ' से ओष्ठ; ओखली; ओला,
'औ' से औरत और औजार।
'अं' से अंकुर; अंजन; अंजुलि,
'अ:' सीख स्वर हो होशियार।
***
'अ' से अजगर; अचकन; अफसर,
'आ' से आम; आग, आराम।
'इ' से इमली; इस; इकतारा,
'ई' से ईख; ईश; ईनाम।
'उ' से उजियारा; उलूक, उठ,
'ऊ' से ऊखल; ऊसर; ऊन।
'ए' से एड़ी; एक; एकाकी
'ऐ' से ऐनक; ऐसा; ऐन।
'ओ' से ओष्ठ; ओखली; ओला,
'औ' से औरत और औजार।
'अं' से अंकुर; अंजन; अंजुलि,
'अ:' सीख स्वर हो होशियार।
***
परिवार
जैसे बगिया में खिलें महकें पुष्प हजार।
वैसे हम जन्में-बढ़ें पाकर निज परिवार।।
मातु पिता भाई बहिन दादा दादी संग-
चाचा-चाची मिल बने सदा परिवार।।
*
एक दूसरे का करें हित; रखते हैं ध्यान।
एक साथ रह कर करें स्नेह और सम्मान।।
जो वे ही परिवार हैं; सुख-दुःख में रह साथ-
उन्नति करते निरंतर; जग करता गुणगान।।
*
पिता
बीज अंकुरित हो बने जैसे पौधा-वृक्ष।
नील गगन छाया तले; नभ ईश्वर समकक्ष।।
पिता मूल संतान का; देता प्यार-दुलार।
लाड-छाँह दे पालता; करता निसार।।
*
माता
पैदा करती-पालती दे ममता की छाँव।
जो वह माता पूज्य है; संतानों की ठाँव।।
माँ की सेवा कर तरे; उसकी हर संतान।
मैया की पाकर कृपा कृष्ण बने भगवान।।
*
पाँच माताएँ
माता; धरती; गौ; नदी; भाषा माता पाँच।
पैदा कर; पालें विहँस; झूठ नहीं है साँच।।
हैं पूज्या सेवा करे तरे तभी संतान।
नत मस्तक भगवान भी हो-करते गुणगान।।
*
पुत्री-पुत्र
दो नयनों की तरह हैं; पुत्री-पुत्र समान।
दो कर; दो पग मानिए; कहिए दो कान।।
दोनों आत्मा-अंश हैं; करिए लाड-दुलार।
भेद-भाव मत कीजिए; जीवन हो रस-खान।।
*
बेटी
सपना है; अरमान है, बेटी घर का गर्व।
बिखरा निर्झर सी हँसी, दुख हर लेती सर्व।।
*
बेटी है प्रभु की कृपा, प्रकृति का उपहार।
दिल की धड़कन सरीखी, करे वंश-उद्धार।।
*
लिए रुदन में छंद वह, मधुर हँसी में गीत।
मृदुल-मृदुल मुस्कान में, लुटा रही संगीत।।
*
नन्हें कर-पग हिलाकर, मुट्ठी रखती बंद।
टुकुर-टुकुर जग देखती, दे स्वर्गिक आनंद।।
*
छुई-मुई चंपा-कली, निर्मल श्वेत कपास।
हर उपमा फीकी पड़े, दे न सके आभास।।
*
पूजा की घंटी-ध्वनि, जैसे पहले बोल।
छेड़े तार सितार के, कानों में रस घोल।।
*
बैठ पिता के काँध पर, ताक रही आकाश।
ऐंठ न; बाँधूगी तुझे, निज बाँहों के पाश।।
*
अँगुली थामी चल पड़ी, बेटी ले विश्वास।
गिर-उठ फिर-फिर पग धरे, होगा सफल प्रयास।।
*
बेटी-बेटा से बढ़े, जनक-जननि का वंश।
एक वृक्ष के दो कुसुम, दोनों में तरु-अंश।।
*
बेटा-बेटी दो नयन, दोनों कर; दो पैर।
माना नहीं समान तो, रहे न जग की खैर।।
*
गाइड हो-कर हो सके, बेटी सबसे श्रेष्ठ।
कैडेट हो या कमांडर, करें प्रशंसा ज्येष्ठ।।
*
छुम-छुम-छन पायल बजी, स्वेद-बिंदु से सींच।
बेटी कत्थक कर हँसी, भरतनाट्यम् भींच।।
*
बेटी मुख-पोथी पढ़े, बिना कहे ले जान।
दादी-बब्बा असीसें, 'है सद्गुण की खान'।।
*
बिखरा निर्झर सी हँसी, दुख हर लेती सर्व।।
*
बेटी है प्रभु की कृपा, प्रकृति का उपहार।
दिल की धड़कन सरीखी, करे वंश-उद्धार।।
*
लिए रुदन में छंद वह, मधुर हँसी में गीत।
मृदुल-मृदुल मुस्कान में, लुटा रही संगीत।।
*
नन्हें कर-पग हिलाकर, मुट्ठी रखती बंद।
टुकुर-टुकुर जग देखती, दे स्वर्गिक आनंद।।
*
छुई-मुई चंपा-कली, निर्मल श्वेत कपास।
हर उपमा फीकी पड़े, दे न सके आभास।।
*
पूजा की घंटी-ध्वनि, जैसे पहले बोल।
छेड़े तार सितार के, कानों में रस घोल।।
*
बैठ पिता के काँध पर, ताक रही आकाश।
ऐंठ न; बाँधूगी तुझे, निज बाँहों के पाश।।
*
अँगुली थामी चल पड़ी, बेटी ले विश्वास।
गिर-उठ फिर-फिर पग धरे, होगा सफल प्रयास।।
*
बेटी-बेटा से बढ़े, जनक-जननि का वंश।
एक वृक्ष के दो कुसुम, दोनों में तरु-अंश।।
*
बेटा-बेटी दो नयन, दोनों कर; दो पैर।
माना नहीं समान तो, रहे न जग की खैर।।
*
गाइड हो-कर हो सके, बेटी सबसे श्रेष्ठ।
कैडेट हो या कमांडर, करें प्रशंसा ज्येष्ठ।।
*
छुम-छुम-छन पायल बजी, स्वेद-बिंदु से सींच।
बेटी कत्थक कर हँसी, भरतनाट्यम् भींच।।
*
बेटी मुख-पोथी पढ़े, बिना कहे ले जान।
दादी-बब्बा असीसें, 'है सद्गुण की खान'।।
*
दादी नानी माँ बुआ, मौसी चाची सँग।
मामी दीदी सखी हैं, बिटिया के ही रंग।।
*
बेटी से घर; घर बने, बेटी बिना मकान।
बेटी बिन बेजान घर, बेटी घर की जान।।
*
बेटी से किस्मत खुले, खुल जाती तकदीर।
बेटी पाने के लिए, बनते सभी फकीर।।
*
बेटी-बेटे में 'सलिल', कभी न करिए फर्क।
ऊँच-नीच जो कर रहे, वे जाएँगे नर्क।।
*
बेटी बिन निर्जीव जग, बेटी पा संजीव।
नेह-नर्मदा में खिले, बेटी बन राजीव।।
*
सुषमा; आशा-किरण है, बेटी पुष्पा बाग़।
शांति; कांति है; क्रांति भी, बेटी सर की पाग।।
*
ऊषा संध्या निशा ऋतु, धरती दिशा सुगंध।
बेटी पूनम चाँदनी, श्वास-आस संबंध।।
*
श्रृद्धा निष्ठा अपेक्षा, कृपा दया की नीति।
परंपरा उन्नति प्रगति, बेटी जीवन-रीति।।
*
ईश अर्चना वंदना, भजन प्रार्थना प्रीति।
शक्ति-भक्ति अनुरक्ति है, बेटी अभय अभीति।।
*
धरती पर पग जमाकर, छूती है आकाश।
शारद रमा उमा यही, करे अनय का नाश।।
*
दीपक बाती स्नेह यह, ज्योति उजास अनंत।
बेटी-बेटा संग मिल, जीतें दिशा-दिगंत।।
शारद रमा उमा यही, करे अनय का नाश।।
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दीपक बाती स्नेह यह, ज्योति उजास अनंत।
बेटी-बेटा संग मिल, जीतें दिशा-दिगंत।।
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बेटा
माता की आँखों का तारा और पिता का है अरमान।
बहिना की राखी का धागा; भाई की इसमें हैं जान।।
कुलदीपक बन सकल तिमिर हर; फैला देगा उजियारा -
संकट में संबल बन जाता; करता है सबका सम्मान।।
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स्वच्छता
स्वच्छ हवा ही प्राणवायु हो जीवन देती।
निर्मल सलिल-धार दे तृप्ति; प्यास हर लेती।।
स्वच्छ रहे तन-मन तो मिलता सुख जीवन में-
स्वच्छ रखें धरती खुशियाँ दामन भर देतीं।।
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साफ़-सफाई नित करें, रहिए सदा निरोग।
सबल बने तन-मन तभी, कर पाएँगे भोग।।
दूर करें हर गंदगी; हों प्रसन्न सब लोग।
नित्य करें व्यायाम हँस; खुशियाँ देता योग।।
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देश प्रेम
भारत केवल धरा नहीं है; माता है।
देश-प्रेम ही जीवन सफल बनाता है।.
माँ पर हो कुर्बान अमर हो जाते हम -
वंदन कर आकाश, कीर्ति-यश गाता है।.
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धन्यवाद
आप पधारे बढ़ाई शोभा कर सहयोग।
सफल कार्यक्रम कर दिया, मणि-कांचन संयोग।।
धन्यवाद शत बार है; हम उपकृत श्रीमान।
नमस्कार स्वीकारिए; बढ़ा हमारा मान।।
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समापन
अनुष्ठान की पूर्णता; करती भाव विभोर।
धन्य आपने कर दिया; थाम सफलता डोर।।
दें अनुमति हो समापन; बना रहे सहयोग-
नव आयोजन सकें; स्नेह-प्रकाश अँजोर।।
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आभार
श्रोता-दर्शक आपका वंदन बारंबार।
शांतिपूर्ण सहयोग पा; हम करते आभार।।
मिली प्रेरणा आपसे; मिला नया उत्साह।
नतमस्तक वंदन करें; दिल से निकले वाह।।
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