हाँ बेटा
संजीव
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चंबल में
डाकू होते थे
हाँ बेटा!
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लूट किसी को
मार किसी को
वे सोते थे?
हाँ बेटा!
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लुटा किसी पर
बाँट किसी को
यश पाते थे?
हाँ बेटा!
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अख़बारों के
कागज़ उनसे
रंग जाते थे?
हाँ बेटा!
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पुलिस और
अफसर भी उनसे
भय खाते थे?
हाँ बेटा!
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केस चले तो
विटनेस डरकर
भग जाते थे?
हाँ बेटा!
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बिके वकील
झूठ को ही सच
बतलाते थे?
हाँ बेटा!
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सब कानून
दस्युओं को ही
बचवाते थे?
हाँ बेटा!
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चमचे 'डाकू की
जय' के नारे
गाते थे?
हाँ बेटा!
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डाकू फिल्मों में
हीरो भी
बन जाते थे?
हाँ बेटा!
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भूले-भटके
सजा मिले तो
घट जाती थी?
हाँ बेटा!
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मरे-पिटे जो
कहीं नहीं
राहत पाते थे?
हाँ बेटा!
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अँधा न्याय
प्रशासन बहरा
मुस्काते थे?
हाँ बेटा!
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मानवता के
निबल पक्षधर
भय खाते थे?
हाँ बेटा!
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तब से अब तक
वहीं खड़े हम
बढ़े न आगे?
हाँ बेटा!
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२६-१२-२०१६
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