- संजीव
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काल चक्र का
महाकाल के भक्त
करो अगवानी
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तपूँ , जड़ाऊँ या बरसूँ
नाखुश होंगे बहुतेरे
शोर-शांति
चाहो ना चाहो
तुम्हें रहेंगे घेरे
तुम लड़कर जय वरना
चाहे सूखा हो या पानी
बहा पसीना
मेहनत कर
करना मेरी अगवानी
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चलो, गिरो उठ बढ़ो
शूल कितने ही आँख तरेरे
बाधा दें या
रहें सहायक
दिन-निशि, साँझ-सवेरे
कदम-हाथ गर रहे साथ
कर लेंगे धरती धानी
कलम उठाकर
करें शब्द के भक्त
मेरी अगवानी
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शिकवे गिले शिकायत
कर हल होती नहीं समस्या
सतत साधना
से ही होती
हरदम पूर्ण तपस्या
स्वार्थ तजो, सर्वार्थ साधने
बोलो मीठी बानी
फिर जेपी-अन्ना
बनकर तुम करो
मेरी अगवानी
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३१-१२-२०१४
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