नवगीत:
भाग्य कुंडली
संजीव
.
भाग्य कुंडली
बाँच रहे क्यों
कर्म-कुंडली को ठुकराकर?
*
पंडित जी शनि साढ़े साती
और अढ़ैया ही मत देखो
श्रम भाग्येश कहाँ बैठा है?
कोशिश-दृष्टि कहाँ है लेखो?
संयम का गुरु
बता रहा है
डरो न मंगल से अकुलाकर
*
बुध से बुद्धि मिली हर मनु को
सूर्य-चन्द्र सम चमको नभ में
शुक्र चमकता कभी न डूबे
ध्रुवतारा हों हम उत्तर के
राहु-केतु को
धता बतायें
चुप बैठे नाहक सँकुचाकर
*
है लग्नेश परिश्रम अपना
कोशिश भाग्येश नव नपना
ग्रह-उपग्रह तज; गृहलछमी का
पूरा करे 'सलिल' हर सपना
चित्र गुप्त जो
साकार करें मिल
हाथ हाथ से हाथ मिलाकर
*
२८-१-२०१५
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