हाइकु सलिला
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
प्रवासी मन
कल्पना में, सच में
निवासी मन।
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यह ज़िंदगी
है लम्हों का सफर
सदियों चला।
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कवि की दृष्टि
कर क्षितिज पार
है शब्द सृष्टि।
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कथ्य असीम
गागर में सागर
हाइकु लिए।
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हाइकु नदी
शब्द-शब्द लहर
भाव भँवर।
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नापे आकाश
नन्हा शिशु हाइकु
तोड़ता पाश।
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है शब नम
नयन पुरनम
पढ़ हाइकु।
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१८-१-२०२१
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