नवगीत:
लोकतंत्र का पंछी बेबस
संजीव
.
लोकतंत्र का
पंछी बेबस
.
नेता पहले डालें दाना
फिर लेते पर नोच
अफसर रिश्वत गोली मारें
करें न किंचित सोच
व्यापारी दे
नशा रहा डँस
.
आम आदमी खुद में उलझा
दे-लेता उत्कोच
न्यायपालिका अंधी-लूली
पैरों में है मोच
ठेकेदार-
दलालों को जस
.
राजनीति नफरत की मारी
लिए नींव में पोच
जनमत बहरा-गूँगा खो दी
निज निर्णय की लोच
एकलव्य का
कहीं न वारिस
…
१०-१-२०१५
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