नवगीत:
ग्रंथि
संजीव
.
ग्रंथि श्रेष्ठता की
पाले हैं
.
कुटें-पिटें पर बुद्धिमान हैं
लुटे सदा फिर भी महान हैं
खाली हाथ नहीं संसाधन
मतभेदों का सर वितान है
दो-दो हाथ करें आपस में
जाने क्या गड़बड़
झाले हैं?
.
बातें बड़ी-बड़ी करते हैं
मनमानी का पथ वरते हैं
बना तोड़ते संविधान खुद
दोष दूसरों पर धरते हैं
बंद विचारों की खिड़की
मजबूत दिशाओं पर
ताले हैं
.
सच कह असच नित्य सब लेखें
शीर्षासन कर उल्टा देखें
आँख मूँद 'तूफ़ान नहीं' कह
शतुरमुर्ग निज पर अवरेखें
परिवर्तित हो सके न तिल भर
कर्म सकल देखे
भाले हैं.
…
14.30, 29.12.2014
panchayati dharmshala jaipur
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