प्रथम नवगीत २०१५
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हे साल नये!
मेहनत के रच दे गान नये
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सूरज ऊगे
सब तम पीकर खुद ही डूबे
शाम हँसे, हो
गगन सुनहरा, शशि ऊगे
भूचाल नये
थक-हार विफल तूफ़ान नये
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सामर्थ्य परख
बाधा-मुश्किल वरदान बने
न्यूनता दूर कर
दृष्टि उठे या भृकुटि तने
वाचाल न हो
पुरुषार्थ गढ़े प्रतिमान नये
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कंकर शंकर
प्रलयंकर, बन नटराज नचे
अमृत दे सबको
पल में सारा ज़हर पचे
आँसू पोंछे
दस दिश गुंजित हों गान नये
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१-१-२०१५, ०१.१०
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