कार्यशाला
पद
पद शब्द का प्रयोग दो अर्थों में किया जाता है।
१. कुंडलिया षट्पदिक छंद है। यहाँ पद का अर्थ पंक्ति है।
२. मीरा ने कृष्ष भक्ति के पद रचे। यहाँ पद का अर्थ पूरी काव्य रचना से है।
शब्द कोशीय अर्थ में पद का अर्थ पैर होता है। बैल चतुष्पदीय जानवर है।
पैर के माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं। कृष्ण भक्ति का संदेश पदों के माध्यम से फैला। किसी काव्य रचना का कथ्य पंक्ति के माध्यम से दिया - लिया जाता है। पद के तीनों अर्थों के मूल में 'विचरण' है।
चरण
शब्द कोशीय अर्थ में पद और चरण दोनों का अर्थ पैर है किंतु काव्य शास्त्र में पद का अर्थ पंक्ति या पंक्ति समूह है जबकि चरण का अर्थ पंक्ति का भाग है।
दोहा के हर पद में दो चरण होते हैं जबकि चौपई के हर पद में तीन चरण होते हैं। यहाँ चरण का अर्थ दो विरामस्थलों के बीच का भाग है।
तुक
पंक्तियों में एक स्थान पर समान उच्चार वाले शब्दों का प्रयोग तुक कहलाता है। इसे संगत शब्द प्रयोग भी कह सकते हैं। असंगत बात को बेतुकी बात कहा जाता है।
लय
समान समय में समान उच्चारों का प्रयोग लय कहलाता है। समय में उच्चार का लीन होना ही लय है। लय से ही मलय, विलय, प्रलय जैसे शब्द बने हैं।
रस
फल का रस पीने से आनंद मिलता है। काव्य से मिलने वाला आनंद ही काव्य का रस है। जिसमें रस न हो वह नीरस काव्य कोई नहीं चाहता।
भाव
भाव अनेकार्थी शब्द है। भाव की अनुपस्थिति अभाव या कमी दर्शाती है। भाव का पूरक शब्द मोल है। मोल भाव वस्तु की उपलब्धता सुनिश्चित करती है। कविता के संदर्भ में भाव का आशय रचना में वह होना है जिसे सम्प्रेषित करने के लिए रचना की गई। स्वभाव, निभाव, प्रभाव जैसे शब्द भाव से ही बनते हैं।
बिंब
बिंब और प्रतिबिंब एक दूसरे के पूरक हैं।
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