रेलगाड़ी का इतिहास
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हम आपको रेलवे के पुराने इतिहास से रुबरु करा रहे हैं। दिलचस्प है कि पहली ट्रेन 16 अप्रैल 1853 को चली थी लेकिन इसके 10 साल बाद यानी 1863 में बड़ौदा की गायकवाड़ रियासत में चली मालगाड़ी को बैलों से खिंचवाया गया था। विख्यात इंजीनियर सर गंगाराम (जिनकी स्मृति में गंगाराम हॉस्पिटल दिल्ली है) ने अपने गांव तक घोड़े से खींची जानेवाली रेल गाड़ी चलवाकर अंग्रेजों से लोहा मनवा लिया था।
बैलगाड़ी से चलती थी ट्रेन
के वर्षों में ब्रिटिश कंपनियों ने रेल पटरियों के विस्तार के लिए भारी निवेश किया। ऐसा कहा जाता है कि उन दिनों भारत में रेल सुविधा ब्रिटेन से भी 'बेहतर' थीं। हालांकि 1930 के बाद जब आजादी के आंदोलन ने जोर पकड़ा तो इस क्षेत्र में निवेश काफी कम हो गया। 1947 में अंग्रेजों के भारत से जाने तक इस क्षेत्र में कुछ खास काम नहीं हो सका।
पहली वातानुकूलित रेलगाड़ी
भारत में पहली एसी ट्रेन (फ्रंटियर मेल) 1934 में चली जो बॉम्बे-बड़ौदा-दिल्ली-लाहौर और पेशावर से गुजरती थी। ट्रेन को ठंडा रखने के लिए बर्फ के टुकड़ों का इस्तेमाल किया जाता था, जिन्हें डिब्बाें की छतों पर बक्सों में (कभी-कभी डिब्बे के अंदर भी) रखा जाता था। ट्रेन के स्टेशन पर रुकने पर इन बक्सों को फिर से भरा जाता था। बैटरी से चलने वाले ब्लोअर से इन बक्सों में हवा छोड़ी जाती थी। फिर ठंडी हवा बक्सों में बने छेद से निकलकर डिब्बों में फैल जाती थी।
शाही डब्बा
ब्रिटिश इंडिया में चलने वाली अन्य प्रमुख ट्रेनों में ग्रैंड ट्रंक एक्सप्रेस, पंजाब मेल, इंडियन इम्पीरियल मेल, फ्लाइंग मेल, बोट मेल, डेक्कन क्वीन, ताज एक्सप्रेस और फ्लाइंग रानी थीं। उन दिनों ट्रेन में चार क्लास होते थे- फर्स्ट, सेकंड थर्ड और फोर्थ। फर्स्ट क्लास लग्जरी सुविधाओं जैसे कारपेट, इलेक्ट्रिक लाइट, फैन, शावर्स, रॉयल साइज बेड्स-बर्थस, सर्वेन्ट क्वार्टर से लैस होता था। हालांकि फर्स्ट क्लास में कॉरिडोर नहीं होते थे। हर केबिन एक अलग रूम या सुईट की तरह होता था, जिसमें दरवाजे होते थे। सेकंड क्लास में भी फर्स्ट की तरह ही लगभग सारी लग्जरी सुविधाएं होती थीं, लेकिन इसमें सिर्फ बैठने की ही व्यवस्था थी। सीट पर भारी गद्दे और तकिये होते थे।
थर्ड क्लास निम्न आय वर्ग के लिए था जिसमें बैठने के लिए लकड़ियों से बने बेंच होते थे। इनमें लाइट, फैन और टॉयलेट नहीं होते थे। भारतीय ज्यादातर इसी क्लास में यात्रा करते थे। फोर्थ क्लास समाज में अलग-थलग कर दिए गए लोगों के लिए था। ये खाली डिब्बे होते थे जिनमें बैठने के लिए कोई बेंच नहीं होती थी।
सबसे अधिक ऊँचा पुल
भारतीय रेलवे दुनिया के सबसे ऊंचे पुल के निर्माण में जुटी है, जिसकी ऊंचाई कुतुबमीनार की 5 गुना होगी। यह एफिल टावर से भी 35 मीटर लंबा होगा। माना जा रहा है कि 2016 तक यह बनकर तैयार हो जाएगा। कश्मीर घाटी को रेल नेटवर्क से जोड़ने के लिए इसे चेनाब नदी के ऊपर बनाया जा रहा है। पुल की ऊंचाई चेनाब नदी से 359 मीटर ऊपर यानी 1177 फीट तक होगी। पुल का निर्माण 2002 में शुरू हुआ था। वर्तमान में फ्रांस की टर्न नदी पर बने रेल पुल को दुनिया का सबसे लंबा रेल पुल माना जाता है।
सबसे अधिक लंबा प्लेटफॉर्म
गोरखपुर रेलवे स्टेशन का नया बना प्लेटफॉर्म दुनिया का सबसे लंबा प्लेटफॉर्म है। यूपी में मौजूद इस स्टेशन की की लंबाई 1366 मीटर है।
नई दिल्ली रेलवे स्टेशन को दुनिया के सबसे बड़े रिले इंटरलॉकिंग प्रणाली के लिए जाना जाता है, जिसके चलते इसका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज है।
भारतीय रेलवे के पास 14 लाख कर्मचारी हैं, इस मामले में यह दुनिया का 7वां सबसे बड़ा संगठन है।
नई दिल्ली-भोपाल शताब्दी वर्तमान में भारत की सबसे तेज गति से चलने वाली ट्रेन है।
(chitr वा लेख दैनिक भास्कर से साभार)
सौजन्य शीला मदान (गुड्डो दादी)
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