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लेख: २
भाषा, काव्य और छंद
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल
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[लेखमाला की पहली श्रृंखला में भाषा, व्याकरण, वर्ण, व्यंजन, शब्द, रस, भाव, अनुभूति, लय, छंद, शब्द योजना, तुक, अलंकार, मात्रा गणना नियमादि की प्राथमिक जानकारी के पश्चात् ख्यात छन्दशास्त्री साहित्यकार अभियंता आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' से प्राप्त करते हैं कुछ और जानकारियां - संपादक]
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दग्ध अक्षर
डॉ. सतीश चंद्र सक्सेना 'शून्य' ग्वालियर - दग्ध अक्षर पर चर्चा छूट गई है।
पिंगल शास्त्र के पुराने नियमों के अनुसार १९ अक्षरों (ट, ठ, ढ, ण, प, फ, ब, भ, म, ङ्, ञ, त, थ, झ, र, ल व्, ष, ह) को दग्धाक्षर मानते हुए इनसे काव्य पंक्तियों का प्रयोग निषिद्ध किया गया था। कालांतर में इन्हें घटाकर ५ अक्षरों (झ, ह, र, भ, ष) को दग्धाक्षर कहकर काव्य पंक्ति के आरम्भ रखा जाना वर्जित किया गया है।
दीजो भूल न छंद के, आदि झ ह र भ ष कोइ।
दग्धाक्षर के दोष तें, छंद दोष युत होइ।।
मंगल सूचक अथवा देवतावाचक शब्द में इनका प्रयोग हो तो दोष परिहार हो जाता है।
देश, काल, परिस्थिति के अनुसार भाषा बदलती है। पानी और बानी बदलने की लोकोक्ति सब जानते हैं। व्याकरण और पिंगल के नियम भी निरंतर बदल रहे हैं। आधुनिक समय में दग्धाक्षर की मान्यता के मूल में कोई तार्किक कारण नहीं है। १९ से घटकर ५ रह जाना ही संकेत करता है की भविष्य में इन्हें समाप्त होना है।
वर्ण
गिरेन्द्र सिंह भदौरिया 'प्राण' - आपके अनुसार हम वर्ण को अजर, अमर और अक्षर मानते हैं तो कहना चाहता हूँ कि वर्ण का आशय तो आकार, जाति, नस्ल, रू,प रंग, संकेत आदि से है। ये सब परिवर्तनशील व मरणधर्मा हैं। फिर ये अजर अक्षर अमर कैसे हो सकते हैं ? हाँ ध्वनि निश्चित ही अक्षर है। उसका संकेत कदापि अक्षर नहीं हो सकता । वह तो अरक्ष या वर्ण ही होगा।
वर्ण / अक्षर :वर्ण के दो प्रकार स्वर (वोवेल्स) तथा व्यंजन (कोंसोनेंट्स) हैं।अजर अमर अक्षर अजित, ध्वनि कहलाती वर्ण।स्वर-व्यंजन दो रूप बिन, हो अभिव्यक्ति विवर्ण।।
आदरणीय कृपया ध्यान दें -
अजर अमर अक्षर अजित, ध्वनि - कहलाती वर्ण।
चारों विशेषण ध्वनि को दिए गए हैं जिसे चिन्ह विशेष द्वारा अंकित किये जाने पर उसे वर्ण कहा जाता है। ध्वनि के मूल रूप को लिपिबद्ध करने पर उसे संस्कृत और हिंदी में अक्षर या वर्ण कहा गया है। लिपि का आरम्भ होते समय ज्ञान की अन्य शाखाएँ नहीं थीं। युगों बाद समाजशास्त्र में समाज की ईकाई व्यक्ति के मूल उसके गुण या योग्यता जिससे आजीविका मिलती है, को वर्ण कहा गया। सामान्यतः वर्ण अर्थात् व्यक्ति का गुण, ज्ञान, या योग्यता उससे छीनी नहीं जा सकती इसलिए व्यक्ति के जीवनकाल तक स्थाई या अमर है।
लिंग
अरुण शर्मा - गुरु जी नमन। इस क्रम को आगे बढाते हुए लिंग पर भी विस्तृत जानकारी प्रदान करें सादर।
संस्कृत शब्द 'लिंग' का अर्थ निशान या पहचान है। लिंग से जातक की जाति पहचानी जाती है की वह स्त्री है या पुरुष। हिन्दी भाषा में संज्ञा शब्दों के लिंग के अनुसार उनके विशेषणों तथा क्रियाओं का रूप निर्धारित होता है। इस दृष्टि से भाषा के शुद्ध प्रयोग के लिए संज्ञा शब्दों के लिंग-ज्ञान होना आवश्यक। हिंदी में दो लिंग पुल्लिंग तथा स्त्रीलिंग हैं।
संस्कृत में ३ लिंग पुल्लिंग, स्त्रीलिंग तथा नपुंसकलिंग हैं।
अंग्रेजी में ४ लिंग पुल्लिंग (मैस्क्युलाइन जेंडर), स्त्रीलिंग (फेमिनाइन जेंडर), नपुंसक लिंग (न्यूट्रल जेंडर) तथा उभय लिंग (कॉमन जेंडर) हैं।
पुल्लिंग वे संज्ञा या सर्वनाम शब्द जिनसे पुरुष होने का बोध होता है पुल्लिंग शब्द हैं। पुल्लिंग शब्दों का अंत बहुधा अ अथवा आ से होता है। सामान्यत: पेड़ (अनार, केला, चीकू, देवदार, पपीता, शीशम, सागौन आदि अपवाद नीम, बिही, इमली आदि), धातु (सोना, तांबा, सोना, लोहा अपवाद पीतल अपवाद चाँदी, पीतल, राँगा, गिलट आदि), द्रव (पानी, शर्बत, पनहा, तेल, दूध, दही, घी, शहद, पेट्रोल आदि अपवाद लस्सी, चाय, कॉफी आदि), गृह (सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि ), अनाज (गेहूं, चाँवल, चना, बाजरा, जौ, मक्का, अपवाद धान, कोदो, कुटकी), सागर (प्रशांत, हिन्द महासागर आदि अपवाद बंगाल की खाड़ी, खंभात की खाड़ी आदि), पर्वत (विंध्याचल, सतपुड़ा, हिमालय, कैलाश आदि), प्राणीवाचक शब्द (इंसान, मनुष्य, व्यक्ति, पशु, गो धन, सुर, असुर, वानर, साधु, शैतान अपवाद पक्षी, चिड़िया, कोयल, गौरैया आदि), देश (भारत, अमरीका, जापान, श्रीलंका आदि अपवाद इटली,जर्मनी आदि), माह (चैत्र, श्रावण, माघ, फागुन, मार्च, अप्रैल, जून, अगस्त आदि), दिन (सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार, शनिवार, रविवार), समय (युग, वर्ष, साल, दिन, घंटा, मिनिट, सेकेण्ड, निमिष, पल आदि अपवाद घड़ी, ), अक्षर (अ, आ, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अ: अपवाद इ, ई )।
स्त्रीलिंग वे संज्ञा या सर्वनाम शब्द जो स्त्री होने का बोध कराएँ, उन्हें स्त्रीलिंग शब्द कहते हैं। स्त्रीलिंग शब्दों का अंत बहुधा इ या ई से होता है। सामान्यत: आहार (रोटी, दाल, कढ़ी, सब्जी, साग, पूड़ी, खीर, पकौड़ी, कचौड़ी, बड़ी, गजक आदि अपवाद पान, पापड़ आदि), पुस्तक ( रामायण, भगवद्गीता, रामचरित मानस, बाइबिल, कुरान, गीतांजलि आदि अपवाद वेद, पुराण, उपनिषद, सत्यर्थप्रकाश, गुरुग्रंथ साहिब), तिथि (प्रथमा, द्वितीया, प्रदोष, त्रयोदशी, अमावस्या, पूर्णिमा आदि), राशि (कर्क, मीन, तुला, सिंह, कुम्भ, मेष आदि), समूहवाचक शब्द (भीड़,सेना, सभा, कक्षा, समिति अपवाद हुजूम,दल, जमघट आदि), बोलियाँ (संस्कृत, पाली, प्राकृत, अपभृंश, हिंदी, बांगला, तमिल, असमिया, अंग्रेजी, रुसी, बुंदेली आदि), नदी (नर्मदा, गंगा, कावेरी, ब्रह्मपुत्र, सिंधु, वोल्गा, टेम्स आदि), मसाले (हल्दी, मिर्ची, लौंग, सौंफ, आजवाइन, अपवाद धनिया, जीरा आदि), वस्त्र (धोती, साड़ी, सलवार, टाई, शमीज, जाँघिया, बनियाइन, चोली आदि अपवाद कोट, कुरता, पेंट, पायजामा, ब्लाउज आदि ), आभूषण (चूड़ी, पायल, बिछिया, बिंदिया, अंगूठी, नथ, करधनी अपवाद कंगन, बेंदा आदि)। अपवादों को छोड़ दें तो आकार में छोटी, स्त्रियों द्वारा प्रयोग की जानेवाली, कोमल, अथवा परावलंबी वस्तुएँ स्त्रीलिंग हैं जबकि अपेक्षाकृत बड़ी, पुरुषों द्वारा प्रयोग की जानेवाली, कठोर अथवा स्वावलंबी वस्तुतं पुल्लिंग हैं। सबसे बड़ा अपवाद 'मूँछ' है जो पौरुष का प्रतीक होते हुए भी स्त्रीलिंग है और घूँघट अथवा पर्दा स्त्रियों से सम्बद्ध होने के बाद भी पुल्लिंग है।
लिंग परिवर्तन
१. 'ई' प्रत्यय जोड़कर - देव - देवी, नर - नारी, जीजा - जीजी, दास - दासी, वानर - वानरी आदि। नाना - नानी, दादा - दादी, चाचा - चाची, मामा - मामी, मौसा - मौसी, लड़का - लड़की, मोड़ा - मोड़ी, लल्ला - लल्ली, पल्ला - पल्ली, निठल्ला - निठल्ली, काका - काकी, साला - साली, नाला - नाली, घोड़ा - घोड़ी, बकरा - बकरी, लकड़ा - लकड़ी, लट्ठा - लट्ठी आदि।
२. 'इया' प्रत्यय जोड़कर - बूढ़ा - बुढ़िया, खाट - खटिया, बंदर - बंदरिया, लोटा - लुटिया, बट्टा - बटिया आदि।
३. 'इका' प्रत्यय जोड़कर - बालक - बालिका, पालक - पालिका, चालक - चालिका, पाठक - पाठिका, संपादक - संपादिका, पत्र - पत्रिका।
४. 'आनी' प्रत्यय जोड़कर - ठाकुर - ठकुरानी, सेठ - सेठानी, देवर - देवरानी, इंद्र - इंद्राणी, नौकर - नौकरानी, मेहतर - मेहतरानी।
५. 'आइन' प्रत्यय जोड़कर - गुरु - गुरुआइन, पंडित - पंडिताइन, चौधरी - चौधराइन, बाबू - बबुआइन, बनिया - बनियाइन, साहू - सहुआइन, साहब - सहबाइन आदि।
६. 'इन' प्रत्यय जोड़कर - माली - मालिन, लुहार - लुहारिन, कुम्हार - कुम्हारिन, दर्जी - दर्जिन, सुनार सुनारिन, मजदूर - मजदूरिन, हलवाई - हलवाइन, चौकीदार - चौकीदारिन, चमार - चमारिन, धोबी - धोबिन, बाघ - बाघिन, सांप - साँपिन, नाग - नागिन।
७. 'नी' प्रत्यय जोड़ कर - डॉक्टर - डॉक्टरनी, मास्टर - मास्टरनी, अफसर - अफसरनी, कलेक्टर - कलेक्टरनी, आदि।
८. 'ता' के स्थान पर 'त्री' का प्रयोग कर - धाता - धात्री, वक्ता - वक्त्री, रचयिता - रचयित्री, नेता - नेत्री, अभिनेता - अभिनेत्री, विधाता - विधात्री, कवि - कवयित्री।
९. 'नई' प्रत्यय का प्रयोग कर - हाथी - हथिनी, शेर - शेरनी, चाँद - चाँदनी, सिंह - सिंहनी, मोर - मोरनी, चोर - चोरनी, हंस - हंसनी, भील - भीलनी, ऊँट - ऊँटनी।
१०. 'इनी' प्रत्यय का प्रयोग कर - मनस्वी - मनस्विनी, तपस्वी - तपस्विनी, सुहास - सुहासिनी, सुभाष - सुभाषिणी / सुभाषिनी, अभिमान अभिमानिनी, मान - मानिनी, नट - नटिनी, आदि।
११. 'ति' / 'ती' प्रत्यय का प्रयोग कर - भगवान - भगवती, श्रीमान - श्रीमती, पुत्रवान - पुत्रवती, आयुष्मान - आयुष्मति, बुद्धिमान - बुद्धिमति, चरित्रवान - चरित्रवती आदि।
१२. 'आ' प्रत्यय जोड़कर - प्रिय - प्रिय, सुत - सुता, तनुज - तनुजा, तनय - तनया, पुष्प - पुष्पा, श्याम - श्यामा, आत्मज - आत्मजा, भेड़ - भेड़ा, चंचल - चंचला, पूज्य - पूज्या, भैंस - भैंसा आदि।
१३. कोई नियम नहीं - भाई - बहिन, सम्राट - साम्राज्ञी, बेटा - बहू, पति - पत्नी, पिता - माता, पुरुष - स्त्री, बिल्ली - बिलौटा, वर - वधु, मर्द - औरत, राजा - रानी, बुआ - फूफा, बैल - गाय आदि।
१४. कोई परिवर्तन नहीं - किन्नर, हिजड़ा, श्रमिक, किसान, इंसान, व्यक्ति, विद्यार्थी, शिक्षार्थी, लाभार्थी, रसोइया आदि।
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