मिथिलेश ने उस लौ को और ज़्यादा प्रज्जवलित कर दिया है जिसे मैं पिछले एक साल से ब्लॉग जगत में रौशन करने की जद्दोजहद कर रहा हूँ, मिथिलेश और मुझे और ज़्यादा संबल मिला जो अरविन्द मिश्रा जी जैसे सम्मानित ब्लॉगर ने इसमें अपना अमूल्य समर्थन कर इस लौ को अग्रसर होने का रास्ता साफ़ कर दिया. अब तो यह वही बात हुई (जैसा कि मेरी प्रोफाइल में लिखा हुआ है) "मैं अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल मगर, लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया.
सबसे ज़्यादा हर्ष का विषय यह है कि मिथिलेश ने नारी के आधुनिकीकरण (नंगीकरण अथवा पश्चिमीकरण) जो सशक्त प्रहार किया है मुझे लगता है कि स्वयं नारीवादियों को भी सोचने की मुद्रा में ला खड़ा किया है. लेकिन इस लौ को जलाये हुए रखना भी अब मिश्रा जी, मिथिलेश और उन सभी के लिए चुनौती सामान ही है नहीं उक्त लिखित शेर को निम्न लिखित शेर में तब्दील होने में बिल्कुल भी समय नहीं लगेगा "कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे."
महिला विधेयक का सीधा सा मतलब वास्तविकता से अलग यह निकल कर आ रहा है कि "अब हम और छोटे छोटे कपड़े पहनेंगे, देखते हैं कौन क्या बिगाड़ लेगा." "पहले से ही ख़ाली बस की महिला सीट पर अगर को इपुरुष, लड़का मिल गया तो उसकी ख़ैर नहीं." वगैरह वगैरह....
ज़्यादा आगे बढ़ने से पहले इस लेख में अपना वह "ओल्ड मगर गोल्ड" लेख प्रस्तुत करना चाहता हूँ जो मिथिलेश के लिए भी बहुत महत्व रखता है.... मिथिलेश दूबे के लिए ऑल दी बेस्ट........
नारी का व्यापक अपमान
आधुनिक वैश्विय सभ्यता में प्राचीन काल में नारी की दशा एवम् स्तिथियों की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप नारी की गतिशीलता अतिवादी के हत्थे चढ़ गयी. नारी को आज़ादी दी गयी, तो बिलकुल ही आजाद कर दिया गया. पुरुष से समानता दी गयी तो उसे पुरुष ही बना दिया गया. पुरुषों के कर्तव्यों का बोझ भी उस पर डाल दिया गया. उसे अधिकार बहुत दिए गए मगर उसका नारीत्व छीन कर. इस सबके बीच उसे सौभ्ग्य्वाश कुछ अच्छे अवसर भी मिले. अब यह कहा जा सकता है की पिछले डेढ़ सदी में औरत ने बहुत कुछ पाया है, बहुत तरक्की की है, बहुत सशक्त हुई है. उसे बहुत सारे अधिकार प्राप्त हुए हैं. कौमों और राष्ट्रों के उत्थान में उसका बहुत बड़ा योगदान रहा है जो आज देख कर आसानी से पता चलता है.
लेकिन यह सिक्के का केवल एक पहलू है जो बेशक बहुत अच्छा, चमकीला और संतोषजनक है. लेकिन जिस तरह सिक्के के दुसरे पहलू को देखे बिना यह फ़ैसला नहीं किया जा सकता है कि वह खरा है या खोटा. हमें औरत के हैसियत के बारे में कोई फ़ैसला करना भी उसी वक़्त ठीक होगा जब हम उसका दूसरा रुख़ भी ठीक से, गंभीरता से, ईमानदारी से देखें. अगर ऐसा नहीं किया और दूसरा पहलू देखे बिना कोई फ़ैसला कर लिया जाये तो नुक्सान का दायरा ख़ुद औरत से शुरू होकर समाज, व्यवस्था और पूरे विश्व तक पहुँच जायेगा.
आईये देखें सिक्के का दूसरा पहलू...
उजाले और चकाचौंध के भीतर खौफ़नाक अँधेरेनारी जाति के वर्तमान उपलब्धियां- शिक्षा, उन्नति, आज़ादी, प्रगति और आर्थिक व राजनैतिक सशक्तिकरण आदि यक़ीनन संतोषजनक, गर्वपूर्ण, प्रशंसनीय और सराहनीय है. लेकिन नारी स्वयं देखे कि इन उपलब्धियों के एवज़ में नारी ने अपनी अस्मिता, मर्यादा, गौरव, गरिमा, सम्मान व नैतिकता के सुनहरे और मूल्यवान सिक्कों से कितनी बड़ी कीमत चुकाई है. जो कुछ कितना कुछ उसने पाया उसके बदले में उसने कितना गंवाया है. नई तहजीब की जिस राह पर वह बड़े जोश और ख़रोश से चल पड़ी- बल्कि दौड़ पड़ी है- उस पर कितने कांटे, कितने विषैले और हिंसक जीव-जंतु, कितने गड्ढे, कितने दलदल, कितने खतरे, कितने लूटेरे, कितने राहजन और कितने धूर्त मौजूद हैं.
आईये देखते हैं कि आधुनिक सभ्यता ने नारी को क्या क्या दिया
व्यापक अपमान
- समाचार पत्रों, पत्रिकाओं में रोज़ाना औरतों के नंगे, अध्-नंगे, बल्कि पूरे नंगे जिस्म का अपमानजनक प्रकाशन.
- सौन्दर्य-प्रतियोगिता... अब तो विशेष अंग प्रतियोगिता भी... तथा
- फैशन शो/ रैंप शो के कैट-वाक् में अश्लीलता का प्रदर्शन और टीवी चैनल द्वारा ग्लोबली प्रसारण
- कारपोरेट बिज़नेस और सामान्य व्यापारियों/उत्पादकों द्वारा संचालित विज्ञापन प्रणाली में औरत का बिकाऊ नारीत्व.
- सिनेमा टीवी के परदों पर करोडों-अरबों लोगों को औरत की अभद्र मुद्राओं में परोसे जाने वाले चल-चित्र, दिन-प्रतिदिन और रात-दिन.
- इन्टरनेट पर पॉर्नसाइट्स. लाखों वेब-पृष्ठों पे औरत के 'इस्तेमाल' के घिनावने और बेहूदा चित्र
- फ्रेंडशिप क्लब्स, फ़ोन सर्विस द्वारा दोस्ती.
यौन शोषण (Sexual Exploitation)
- देह व्यापार, गेस्ट हाउसों, सितारा होटलों में अपनी 'सेवाएँ' अर्पित करने वाली संपन्न व अल्ट्रामाडर्न कॉलगर्ल्स.
- रेड लाइट एरियाज़ में अपनी सामाजिक बेटीओं-बहनों की ख़रीद-फ़रोख्त. वेश्यालयों को समाज और क़ानून या प्रशासन की ओर से मंजूरी.
- सेक्स-वर्कर, सेक्स-ट्रेड, सेक्स-इंडस्ट्री जैसे आधुनिक नामों से नारी-शोषण तंत्र की इज्ज़त-अफ़ज़ाई व सम्मानिकरण.
- नाईट क्लब और डिस्कोथेक में औरतों और युवतियों के वस्त्रहीन अश्लील डांस, इसके छोटे रूप में सामाजिक संगठनों के रंगरंज कार्यक्रमों में लड़कियों के द्वारा रंगा-रंग कार्यक्रम को 'नृत्य-साधना' का नाम देकर हौसला-अफ़ज़ाई.
- हाई-सोसाईटी गर्ल्स, बार-गर्ल्स के रूप में नारी यौवन व सौंदय्र की शर्मनाक दुर्गति.
यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment)
- फब्तियों की बेशुमार घटनाएँ.
- छेड़खानी की असंख्य घटनाएँ, जिनकी रिपोर्ट नहीं होती. देश में सिर्फ दो वर्षों में (2005-06) 36,617 घटनाएँ.
- कार्य-स्थल पर यौन उत्पीड़न. (Women unsafe at work place)
- सड़कों, गलियों, बाज़ारों, दफ़्तरों, अस्पतालों, चलती कारों, दौड़ती बसों आदि में औरत असुरक्षित. (Women unsafe in the city)
- ऑफिस में नौकरी बहाल रहने के लिए या प्रमोशन के लिए बॉस द्वारा महिला कर्मचारी का यौन शोषण
- टीचर या ट्यूटर द्वारा छात्राओं का यौन उत्पीड़न.
- नर्सिंग होम/अस्पतालों में मरीज़ महिलाओं का यौन-उत्पीड़न.
यौन-अपराध
- बलात्कार- दो वर्ष की बच्ची से लेकर अस्सी साल की वृद्धा से- ऐसा नैतिक अपराध, जिसकी ख़बर अख़बारों में पढ़कर किसी के कानों में जूं तक नहीं रेंगती.मानों किसी गाड़ी से कुचल कर कोई चुहिया मर गयी हो.
- 'सामूहिक बलात्-दुष्कर्म' इतने आम हो गएँ हैं की समाज ने ऐसी दुर्घटनाओं की ख़बर पढ़-सुन कर बेहिसी और बेफ़िक्री का खुद को आदि बना लिया है.
- युवतियों, बालिकाओं, किशोरियों का अपहरण, उनके साथ हवास्नाक ज़्यादती, सामूहिक ज्यात्दी और हत्या भी...
- सिर्फ़ दो वर्षों (2005-06) आबुरेज़ी (बलात्कार) की 35,195 वाक़ियात. अनरिपोर्टेड घटनाएँ शायेद दस गुना ज़्यादा हों.
- सेक्स-माफिया द्वारा औरतों के बड़े-बड़े संगठित कारोबार. यहाँ तक कि विधवा आश्रम की विधवा भी सुरक्षित नहीं.
- विवाहित स्त्रियों का पराये मर्द से सम्बन्ध (Extra Marital Relations) इससे जुड़े अन्य अपराध हत्याएं और परिवार का टूटना-बिखरना आदि.
औरतों पर पारिवारिक यौन अत्याचार (कुटुम्बकीय व्यभिचार) व अन्य ज्यातादियाँ
- बाप-बेटी, बहन-भाई के पवित्र रिश्ते भी अपमानित.
- आंकडों के अनुसार बलात-दुष्कर्म में लगभग पचास प्रतिशत निकट सम्बन्धी मुल्व्वस (Incest).
- दहेज़-सम्बन्धी अत्याचार व उत्पीड़न. जलने, हत्या कर देने आत्म-हत्या पर मजबूर कर देने, सताने, बदसुलूकी करने, मानसिक यातना देने की बेशुम्मार घटनाएँ. कई बहनों का एक साथ सामूहिक आत्महत्या दहेज़ के दानव की देन है.
कन्या भ्रूण-हत्या (Female Foeticide) और कन्या वध (Female Infanticide)
- बच्ची का क़त्ल उसके पैदा होने से पहले माँ के पेट में ही. कारण: दहेज़ व विवाह का क्रूर और निर्दयी शोषण-तंत्र.
- पूर्वी भारत में एक इलाके में यह रिवाज़ है कि अगर लड़की पैदा हुई तो पहले से तयशुदा 'फीस' के एवज़ में दाई उसकी गर्दन मरोड़ देगी और घूरे में दबा आएगी. कारण: वही दहेज़ व विवाह का क्रूर और निर्दयी शोषण-तंत्र और शादी के नाकाबिले बर्दाश्त खर्चे.
- कन्या वध के इस रिवाज़ के प्रति नारी-सम्मान के ध्वजावाहकों की उदासीनता.
सहमती यौन-क्रिया (Fornication)
- अविवाहित रूप से नारी-पुरुष के बीच पति-पत्नी का सम्बन्ध (Live-in-Relation) पाश्चात्य सभ्यता का ताज़ा तोह्फ़ा. स्त्री का सम्मानपूर्ण 'अपमान'.
- स्त्री के नैतिक अस्तित्व के इस विघटन में न क़ानून को कुछ लेना देना, न ही नारी जाति के शुभ चिंतकों का कुछ लेना देना, न पूर्वी सभ्यता के गुण-गायकों का कुछ लेना देना, और न ही नारी स्वतंत्रता आन्दोलन के लोगों का कुछ लेना देना.
- सहमती यौन-क्रिया (Fornication) की अनैतिकता को मानव-अधिकार (Human Right) नामक 'नैतिकता का मक़ाम हासिल.
समाधान:
नारी के मूल अस्तित्व के बचाव में 'स्वच्छ सन्देश: हिन्दोस्तान की आवाज़' की इस पहल में आईये, हम सब साथ हो और समाधान की ओर अग्रसर हों.
नारी कि उपरोक्त दशा हमें सोचने पर मजबूर करती है और आत्म-ग्लानी होती है कि हम मूक-दर्शक बने बैठे हैं. यह ग्लानिपूर्ण दुखद चर्चा हमारे भारतीय समाज और आधुनिक तहज़ीब को अपनी अक्ल से तौलने के लिए तो है ही साथ ही नारी को स्वयं यह चुनना होगा कि गरीमा पूर्ण जीवन जीना है या जिल्लत से.
नारी जाति की उपरोक्त दयनीय, शोचनीय, दर्दनाक व भयावह स्थिति के किसी सफल समाधान तथा मौजूदा संस्कृति सभ्यता की मूलभूत कमजोरियों के निवारण पर गंभीरता, सूझबूझ और इमानदारी के साथ सोच-विचार और अमल करने के आव्हान के भूमिका-स्वरुप है.
लेकिन इस आव्हान से पहले संक्षेप में यह देखते चले कि नारी दुर्गति, नारी-अपमान, नारी-शोषण के समाधान अब तक किये जा रहे हैं वे क्या हैं? मौजूदा भौतिकवादी, विलास्वादी, सेकुलर (धर्म-उदासीन व ईश्वर विमुख) जीवन-व्यवस्था ने उन्हें सफल होने दिया है या असफल. क्या वास्तव में इस तहज़ीब के मूल-तत्वों में इतना दम, सामर्थ्य व सक्षमता है कि चमकते उजालों और रंग-बिरंगी तेज़ रोशनियों की बारीक परतों में लिपटे गहरे, भयावह, व्यापक और जालिम अंधेरों से नारी जाति को मुक्त करा सकें???
आईये आज हम नारी को उसका वास्तविक सम्मान दिलाने की क़सम खाएं!
हम उस लोकतांत्रिक देश के वासी हैं जहां किसी भी को अपनी बात कहने में किसी बैसाखी की जरूरत नहीं होनी चाहिए -आपने नारी की दुर्दशा के जो चित्र खींचे हैं और जो दुखद है की वास्तविक भी है के पीछे निहित निहित स्वार्थी पुरुष और नारी दोनों की ही भूमिका rahee है -बहुओं को जलाने में सासे भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेती आयी हैं .दहेज़ न मिलने की ज्यादा प्रताड़ना औरते ही देती रही हैं -
नारी लिबास में जैवीय उद्दीपन कम से हो इसका ध्यान खुद नारियों को ही रखना ही चहिये -भारत में जहां यौन सम्बन्धों को लेकर वर्जनाएं तो कूट कूट कर भरी हुयी हैं मगर कपड़ो के भार से मुक्त होने की चाह भी है -ये दोनों विपरीत बाते हैं -यौनोन्मुक्त परिवेश के लिए वह परिधान तो चल जाएगा क्योकि वहां यौन सम्बन्ध सहज ही बन जाते हैं मगर हम कई विपरीत और विरोधी बातों को भी एक साथ कंधे पर लादे चलते रहने के लिए अभिशप्त हैं -भ्रमित थकित से हम यह सोच नहीं पाते की हमारे लिए कौन सा जीवन दर्शन श्रेयस्कर है -पश्चिम की चकाचौध और माल कल्चर हमें उकसाती और आकर्षित करती है मगर हमारा वर्जनाओं से घिरा मन एक जगह ठहर जाने को कह देता है वहां जहाँ ठहराव की संभावना ही नहीं रह जाती -
और फिर नैतिकता की दुहाईयाँ शुरू होती हैं ! नारी के वस्त्र ,पहनावे देश काल परिस्थति के अनुकूल होने ही चाहिए -यह उनके हित में ही हैं .मगर बार बार हम यह बात क्यूं सिखाते जा रहे हैं ?
nice post
इसके लिए नारी को अपनी किम्मेवारी स्वयम ही लेनी पड़ेगी,
ये उसे ही सुनिश्चित करना है के वो वासना की देवी बनना चाहती है जो कि कुछ विक्षिप्त मानसिकता
वाले लोग चाहते है या फिर वो भावनाओ कि देवी बनना चाहती है जो कि उसे होना ही चाहिए!असल में
वो देवी तो है,बस खुद को थोडा गलत नजरिये से देखना उसने शुरू कर दिया है!
इसमें कुछ हद तक पुरुष वर्ग का हाथ हो सकता है लेकिन निर्णय तो नारी का ही है कि
वो क्या हो कर रहना चाह रही है!
कुंवर जी,