पैसे की पहचान यहाँ इंसान की क़ीमत कोई नहीं
बच के निकल जा इस बस्ती में करता मोहब्बत कोई नहीं
बीवी बहन माँ बेटी न कोई पैसे का सब रिश्ता है -२
आँख का आँसू ख़ून जिगर का मिट्टी से भी सस्ता है
मिट्टी से भी सस्ता है
सबका तेरी जेब से नाता तेरी ज़ुरूरत कोई नहीं
बच के निकल जा इस बस्ती में करता मोहब्बत कोई नहीं
शोख़ गुनाहों की ये मण्डी मीठा ज़हर जवानी है -२
कहते हैं ईमान जिसे वो कुछ नोटों की कहानी है
कुछ नोटों की कहानी है
भूख है मज़हब इस दुनिया का और हक़ीक़त कोई नहीं
बच के निकल जा इस बस्ती में करता मोहब्बत कोई नहीं
ज़िंदगी क्या है चीज़ यहाँ मत पूछ आँख भर आती है -२
रात में करती ब्याह कली वो बेवा सुबह हो जाती है
बेवा सुबह हो जाती है
औरत बन कर इस कूचे में रहती औरत कोई नहीं
बच के निकल जा इस बस्ती में करता मोहब्बत कोई नहीं
करता मोहब्बत कोई नहीं
Wah Salim Khan, you have written a good Poem
भूख है मज़हब इस दुनिया का और हक़ीक़त कोई नहीं
...विल्कुल सही......
..धर्म के जानकार लोगों से माफी सहित ....
धर्म के बारे में लिखने ..एवं ..टिप्पणी करने बाले.. तोता-रटंत.. के बारे में यह पोस्ट ....मेरा कॉमन कमेन्ट है....
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_27.html
SALEEM KHAN NE NAHIN LIKHA HAI YAH EK GANA HAI JISE MOHD RAFI NE GAYA HAI