आज आपको अपने बचपन में सुनी हुई एक कहानी सुनाता हूं । इस कहानी को सुनकर आप को हँसने से खुद आप भी नहीं रोक पाएंगे ।।
एक बार एक चोर किसी घर में चोरी करने गया ।
अंधियारी रात का घुप अन्धेरा था । चोर ने दीवाल में सेंध लगाई और घर में घुस गया ।
घर में केवल तीन लोग थे, दो बहुऍं जो अपने-अपने कमरों में सो रही थीं और उनकी सास जो भोजनालय में मिट्टी के चूल्हे के पास सो रही थी ।
चोर ने आहिस्ता-आहिस्ता पूरा घर छान मारा और थोडे-बहुत सामान इकट्ठा कर लिये ।
अब वो बाहर निकलने की तैयारी में था
तभी उसने रसोईघर में सूजी रखी देखी ।
सूजी देख उसे भूख लग आई और उसने सोंचा , भला इस रात के अंधेरे में मुझे कौन देखने आ रहा है ।
घर के लोग तो गहरी नींद में हैं ।
बस फिर क्या था ।
वह रसोई में घुस गया ।
रसोई में घुसते ही उसका सामना सोती हुई बुढिया से हुआ ।
अपनी चोरी का अनुभव लगाते हुए उसने बडे ही धीरे से बुढिया के नाक के पास हांथ फेरा और गहरी नींद में जानकर लग गया अपने काम में ।
हलुवा बनाने के सारे सामान उसे थोडे से अन्वेषण पर ही मिल गये ।
उसने चूल्हा जलाया और यथोक्त विधि से हलुवा बनाया ।
अब वो हलुवा ठंडा होने के इंतजार में था तभी बुढिया ने करवट बदला जिससे बुढिया का एक हांथ चूल्हे के पास बैठे चोर के पास पहुच गया ।
फैली हुर्इ हथेलिया देख चोर ने कहा- माता जी जरा ठहरिये, अभी तो बनाया है। अभी जल रहा होगा, दो मिनट बाद दूंगा ।
इतना कहकर चोर ने बुढिया का हांथ हटा दिया ।
पर गहरी नींद में सो रही बुढिया का अपने हांथ पर नियन्त्रण न होने के कारण हांथ फिर से चोर के आगे आ गिरा ।
चोर ने फिर से हलुवा गरम है, थोडी देर बाद दूंगा, कहकर हाथ हटा दिया ।
पर हाथ को भला क्या पता कि उसे अभी नहीं गिरना चाहिये । अत: फिर से दो तीन बार यही प्रक्रिया होती रही ।
हाथ चोर के आगे गिरता और चोर उसे बडी ही विनम्रता से हटा देता ।
पर अब चोर का धैर्य जबाब दे चुका था ।
उसने गुस्से में आकर एक चम्मच गरम हलुवा बुढिया के फैले हुए हांथ पर रखते हुए कहा - कितनी देर से कह रहा हूं गरम है, गरम है पर मानती ही नहीं ।
अब ले मर ।।।।।।।
जलते हुए हलवे के हांथ पर एकाएक पड जाने से बुढिया चिल्ला उठी ।
इस अप्रत्याशित कार्य की उसे तनिक भी आशा न थी ।
बुढिया देख न ले जाए इसलिये चोर तुरन्त ही रसोई के छज्जे पर चढ गया ।
बुढिया की चीख सुनकर उसकी दोनो बहुएं भाग कर रसोई में पहुंच गईं ।
बुढिया के हांथ में हलुवा देख एक ने कहा- ये देखो बुढिया को, रात में चुपके से हलुवा बनाकर खा रही थी । अब जब गलती से जल गई तो चिल्ला रही है ।
सहमते हुए बुढिया ने सफाई पेश की - न बेटा, मैं न जाने हूं ये कैसे हुआ । मैं तो सो रही थी ।
दूसरी बहू ने घुडकाते हुए कहा- तू न जाने है तो कौन जाने है ।
बुढिया ने दीनता से दोनों हांथ उठाकर कहा- वो उपर वाला ही जाने है ।
इतना सब सुनता हुआ चोर गुस्से में आकर उपर से कूदा और कहा ।
मैं क्या जाने हूं भला । कब से मना कर रहा था, जल जायेगी-जल जायेगी । पर नहीं मानी ।
अब जल गई तो सब मैं जाने हूँ ।।।
अब इसके आगे क्या हुआ होगा इसपर मैं कभी विचार नहीं करता हूं क्यूकि बचपन में तो इतना ही सुनते-सुनते हँस-हॅंस कर पेट फूल जाता था ।
आज इस कहानी के माध्यम से एक बार फिर मैं अपने बचपन से मिल आया हूँ ।
आप को भी अपने बचपन की तो याद आ ही गई होगी न ।।।।
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मजेदार कहानी !
हा हा हा! बचपन याद आते ही एक अलग एहसास होने लगता है।