जब भी दुनियाँ में भारत की बात चलती है तो चन्द चीज़ें ज़ेहन में ज़रूर आती हैं; जैसे कश्मीर, बाबरी मस्जिद, गाँधी-नेहरु परिवार और अतिवादी संगठन आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ). वैसे ऐसा नहीं है कि सामान्य तौर पर आरएसएस का चेहरा केवल अतिवादी ही है, उस संगठन में भी कुछ लोग ऐसे है जो भारत की मूलभूत संरचना और धर्मनिरपेक्ष छवि के हिमायती हैं और कई बार देश में होने वाली आपदाओं और मुसीबतों में उनका सहयोग उल्लेखनीय रहा है.
बाबरी मस्जिद को शहीद करने के बाद पिछले कई वर्षों से आरएसएस एक अतिवादी और कट्टरपंथी संगठन के रूप में प्रचारित हो चुका है. देश में उसके कई परोक्ष अंग हैं जो देश में होने वाली असंवैधानिक और आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त पाए जाते रहे हैं, जैसे बजरंग दल, श्रीराम सेना आदि ! दशक पहले बजरंग दल के एक कार्यकर्ता ने आस्ट्रेलिया के एक पादरी को बच्चो सहित उनकी ही कार में अन्दर जला के मार डाला, अतिश्योक्ति न होगी कि आस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों पर होने वाले हमले उसी के प्रतिशोध स्वरुप न हो!! हालाँकि छात्रों पर हो रहे हमले नस्लभेद के कारण भी हो रहे हैं.
उधर प्रोमोद मुथ्लिक जोकि श्रीराम सेना का मुखिया था को तहलका और आजतक ने स्टिंग ऑपरेशन के तहत सुनियोजित और पहले से ही तय तरीकों से दंगों को अंजाम देने का खुलासा किया गया था. शिवसेना जो कि उसी मानसिकता से ग्रस्त है, का नाम तो वैसे ही उसके काले कारनामों और कट्टरपंथी करतूतों की वजह से बदनाम है.
ताज़ी बानगी तो आरएसएस के एक नेता के कट्टरपंथी हिंदुत्ववादी चेहरे को इंडिया टूडे के अंग्रेज़ी चैनल हेडलाइंस टूडे में दिखाया गया था जिसके फ़लस्वरूप आरएसएस के आतंकी विचारधारा के समर्थक कार्यकर्ताओं ने चैनल के दफ्तर में जमकर तोड़फोड़ की और लोगों को ज़ख़्मी किया, चैनल की संपत्ति को ख़ासा नुकसान पहुँचाया. चैनल पर जो खुलासा हुआ उसमें सबसे ज़्यादा चौकाने वाला वाक़िया ये रहा कि बीजेपी के एक भूतपूर्व सांसद द्वारा भारत देश के उप-राष्ट्रपति जनाब हामिद अंसारी को जामिया मिल्लिया में होने वाले प्रोग्राम में जान से मारने की साजिश का खुलासा किया गया था. सबसे गंभीर समस्या तो ये है कि भाजपा मौजूदा में मुख्य विपक्षी पार्टी है और यह जगजाहिर है भाजपा संघ के इशारों की कठपुतली है.
क्या हम ये भूल सकते है ये वोही भाजपा है जिसने गुजरात में दंगों के दौरान हजारों मासूम लोगों को मार डाला, गर्भवती महिलाओं के पेट को चीर कर मार डाला. मक्का मस्जिद, मालेगाँव विस्फ़ोट और अजमेर दरगाह पर आतंकी हमले में पहले ही आरएसएस को लिप्त पाया गया है. क्या हम इसी संगठन के नाथूराम गोडसे को भूल सकते हैं जिसने अहिंसा के पुजारी महात्मा गाँधी को गोलियों से मार डाला था. उड़ीसा के कंधमाल, कर्नाटक और कई मुस्लिम-विरोधी नरसंहार और ईसाई-विरोधी नरसंहार में भगवा संगठनों की भूमिका को अच्छी तरह से जाना जा सकता है.
क्या हम ये भूल सकते है ये वोही भाजपा है जिसने गुजरात में दंगों के दौरान हजारों मासूम लोगों को मार डाला, गर्भवती महिलाओं के पेट को चीर कर मार डाला. मक्का मस्जिद, मालेगाँव विस्फ़ोट और अजमेर दरगाह पर आतंकी हमले में पहले ही आरएसएस को लिप्त पाया गया है. क्या हम इसी संगठन के नाथूराम गोडसे को भूल सकते हैं जिसने अहिंसा के पुजारी महात्मा गाँधी को गोलियों से मार डाला था. उड़ीसा के कंधमाल, कर्नाटक और कई मुस्लिम-विरोधी नरसंहार और ईसाई-विरोधी नरसंहार में भगवा संगठनों की भूमिका को अच्छी तरह से जाना जा सकता है.
इस तरह से अब यह साबित हो चला है कि आरएसएस देश में एक आतंकी और देश विरोधी संगठन चेहरे पर राष्ट्रवादिता का मास्क लगा कर खुद को भारत देश का सबसे बड़ा हितैषी जतलाने पर तुला हुआ है, जिसका एक मात्र उद्देश्य है भारत को एक हिंदुत्ववादी (फलित रूप में अतिवादी) देश बनाना! क्या इतना सब होने के उपरान्त भी आरएसएस को प्रतिबंधित नहीं करना चाहिए तो मुझे लगता है सिमी को भी बैन करना ग़लत है. हम लगातार देख रहे हैं जब -जब शिवसेना, बजरंग दल, श्रीराम सेना और आरएसएस लाख आतंकवादी गतिविधियों, दंगो, विस्फ़ोटों में लिप्त हो लेकिन उसके खिलाफ़ न तो जांच ही बैठी जाती है न ही कार्यवाही ही की जाती है वही अगर कहीं भूले से भी किसी मुस्लिम का नाम आ जाए तो मीडिया से लेकर सरकारी तंत्र डिस्कोडांसर की तरह तत्परता दिखता नज़र आता है.
बाबू बजरंगी नामक आतंकवादी मानसिकता वाले दरिन्दे को अब कौन नहीं जानता है? वह हिंदुत्व के अतिवादी चेहरे की एक मिसाल बन चुका है, उसने महिलाओं के साथ बलात्कार करने और जान से मारने की बात क़ुबूल भी कर ली लेकिन उसे आज तक कोई छू भी न सका ! उधर महाराष्ट्र में बिहारियों और उत्तर भारतीयों को मारने का काम भी कुछ इसी मानसिकता के लोग अंजाम दे रहे हैं.बीते शुक्रवार को शिवसेना के कुछ लोगों ने बेलगाम मुद्दे पर कर्नाटक के एक मुस्लिम नेता जनाब सैयद मंसूर सहित कई लोगों को बड़ी क्रूरता से मारा, जिसे शिवसेना के संजय राउत जैसे नेताओं ने सही कार्यवाही करार दिया.
देश में हो रहे अधिकाँश आतंकी गतिविधियों, नकारात्मक कार्यवाहियों में लगातार नाम आने के बावजूद न तो इनके ख़िलाफ़ कोई कार्यवाही हो रही है, न ही कहीं छापा मारा जा रहा है. वो दिनों-दिन इतने निर्भीक होते चले जा रहे हैं की राज्यों को उखाड़ फेंकने और देश के उप-राष्ट्रपति को मारने की साजिश को अंजाम देनें में भी नहीं कतरा रहे हैं.
अगर सिमी के कार्यकर्ताओं को आतंकी गतिविधियों में लिप्त पाए जाने पर उस पर प्रतिबंध लगा दिया है तो फ़िर आरएसएस और बजरंग दल, श्रीराम सेना के ख़िलाफ़ क्यूँ नहीं कार्यवाही की जा रही है!? जबकि सबको पता है इन संगठनों ख़ास कर बजरंग दल और सनातन संस्था के कार्यक्रम में खुले आम हथियारों का प्रदर्शन और फायरिंग जैसी हरक़तें होती रहती है. क्या हम हेमंत करकरे की हत्या में उन लोगों के नाम शामिल होने से इन्कार कर अपनी आखें मूंद सकते हैं जो कि उन लोगों ख़िलाफ़ जांच कर रहे थे और उन्हें मार डाला गया.
दर-असल कोई भी सरकार उक्त संगठनों के ख़िलाफ़ कार्यवाही इस लिए नहीं पा रही है क्यूंकि वो तथाकथित वोट बैंक हैं और सीधे-सीधे उनके ख़िलाफ़ कार्यवाही से वोट बैंक दरक सकता है वहीँ दुसरी सबसे बड़ी वजह धर्म-निरपेक्ष मध्यम वर्ग और शिक्षित वर्ग के बीच सक्रियता का अभाव है.
पिछले कई दशकों से कट्टरपंथी हिंदुत्ववादी समर्थकों ने सरकारी तंत्र में अच्छी खासी घुसपैठ कर ली है और कई एजेंसी ऐसी है जो इस काम को लगातार बखूबी अंजाम दे रही हैं. अगर एक भी इस क़िस्म का व्यक्ति जांच कर रही संस्था में उच्च पद पर मौजूद होता है तो वह जाँच का रुख मोड़ देता है और पूरी जांच में तोड़-फोड़ कर देता है.
अब वक़्त है कि भारत की सरकार वास्तविकता को पहचाने और जिस तरह से सिमी को तुरत-फ़ुरत प्रतिबंधित कर दिया था उसी तरह से मौजूदा हिंद्त्ववादी आतंकी संगठनों को प्रतिबंधित कर देना चाहिए और उन तत्वों को खुसूसन पहचाने जो आरएसएस और उक्त संगठनों को आतंक की राह पर चलने के लिए प्रेरित कर रहें.
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लेखांश व चित्र साभार: ऐनइंडियनमुस्लिम.कॉम से अदनान भाई
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