बेंगलूरू में हिन्दी---एक अवलोकन----
२६ जुलाई २००१० को मैं लखनऊ से बंगलौर पहुंचा | अगीत विधा के संस्थापक , अ भा अगीत प , लखनऊ के संस्थापक अध्यक्ष डा रंग नाथ मिश्र 'सत्य' जी के सन्दर्भ से मैंने डा ललितम्बा , अव प्राप्त प्रोफ़ व हेड, हिन्दी विभाग मैसूर वि वि से फोन पर सम्पर्क किया। सुखद आश्चर्य हुआ कर्नाटक में हिन्दी प्रदेश के व हिन्दी के व्यक्तियों से लोग बडे आदर व प्रेम से मिलते हैं; जब ललितम्बा जी ने दूसरे दिन ही मुझे स्वयं फ़ोन करके - कर्नाटक में हिन्दी के पुरोधा व संस्थापक स्व नागराज नागप्पा, जिन्हें कर्नाटक में " हिन्दी नागप्पा" के नाम से जाना जाता है- की प्रथम बरसी पर आयोजित समारोह में आने का आमंत्रण बडे आग्रह के साथ दिया, रास्ते का विवरण दिया एवं कई बार फ़ोन करके कहां हैं,पूछा भी जब तक मैं वहां पहुंच नहीं गया। आयोजन के पश्चात वहां अन्य हिन्दी के विद्वानों से मुलाकात वडे सौहार्दपूर्ण माहोल में हुई, कुछ अन्य विद्वान व साहित्यकार अन्य प्रदेशों से भी आये थे।
कर्नाटक में हिन्दी की स्थिति जानने की इच्छा से और अधिक जानकारी प्राप्त करने पर मुझे यह समझ में आया कि कर्नाटक में हिन्दी के प्रचार व प्रसार का कार्य मूलतः हमारे हिन्दी भाषी प्रान्तों की अपेक्षा अधिक होरहा है, हों सकता है यह स्वाभाविक आवश्यकता के कारण हो, परन्तु श्लाघ्य है ।कुछ असंतोष की भावनायें भी प्रतीत हुईं कि हिन्दी प्रदेश व केन्द्र हिन्दी की ओर अधिक ध्यान नहीं दे रहे एवम हिन्दी राष्ट्र भाषा क्यों नहीं बन पारही, तथा हिन्दी साहित्य में गिरावट व पढ़ने वालों की कमी के प्रति चिंता भी हैं |
मुख्यत: बन्गलोर में तीन संस्थाए हिन्दी के प्रचार प्रसार में संलग्न हैं---
१.मैसूर हिन्दी प्रचार परिषद एवं अखिल कर्नाटक हिन्दी साहित्य एकेडेमी, राजाजी नगर--जिसके कर्ता धर्ता श्री राम संजीवैया जी बडे मिलन सार सह्रिदयी व्यक्ति हैं। वे मासिक हिन्दी पत्रिकाभी निकालते हैं जो हिन्दी भाषा व साहित्य के उत्थान से ओत प्रोत उच्चकोटि के साहित्यिक आलेखों व साहित्य से परिपूर्ण होती है। इसके साथ ही हिन्दी की विभिन्न परीक्षाएं, एवं शोध कार्य भी किये जाते हैं।
२.कर्नाटक हिन्दी प्रचार समिति , जय नगर--के कर्ता धर्ता श्री वी रा देवगिरि जी भी बडे प्रेम-भाव से मिले एवं अपना संस्थान दिखाया। यह संस्थान भी 'भाषा-पीयूष' नाम से एक हिन्दी त्रैमासिक प्रकाशित करता हैं |हिन्दी प्रचार -प्रसार के लिए परीक्षाएं वे शोध कार्य भी ।
३।कर्नाटक महिला हिन्दी सेवा समिति, चामराज पेट--- पूर्णतया महिलाओं द्वारा संचालित यह संस्था शायद भारत में एकमात्र ऐसी संस्था हैं जो महिलाओं में हिन्दी के प्रचार/ प्रसार के लिए कटिबद्ध हैं। संस्था की संस्थापिका सदस्य व प्रधान सुश्री शांता बाई एक कर्मठ व योग्य महिला हैं जिन्होंने बड़े प्रेम से सारा संस्थान दिखाया| संस्थान का अपना स्वयं का प्रिंटिंग प्रेस भी हैं जो महिला कर्मियों द्वारा ही संचालित हैं | यह संस्थान हिन्दी की परीक्षाएं , शोध, एम् फिल, पी एच डी भी कराती हैं एवं स्वायत्तशासी संस्था हैं |संस्थान 'हिन्दी प्रचार वाणी ' नामक हिन्दी मासिक पत्रिका का प्रकाशन भी करता हैं।
हम उत्तर भारतीय समझते हैं कि दक्षिण में हिन्दी बोली व भाषा की स्थिति अधिक अच्छी नहीं हैं, परन्तु मुझे एसा महसूस हुआ कि यहाँ हिन्दी अधिक शुद्ध व परिष्कृत बोली जाती हैं एवं सभी पत्रिकाओं में विशुद्ध हिन्दी में व उच्च कोटि के साहित्यिक व हिन्दी के समर्थन में विद्वतापूर्ण आलेख प्रस्तुत होते हैं। शायद अभी हिन्दी वेल्ट उत्तर भारत की भांति बाज़ार वाद का अधिक प्रभाव नहीं हैं।
कर्नाटक में हिन्दी की स्थिति जानने की इच्छा से और अधिक जानकारी प्राप्त करने पर मुझे यह समझ में आया कि कर्नाटक में हिन्दी के प्रचार व प्रसार का कार्य मूलतः हमारे हिन्दी भाषी प्रान्तों की अपेक्षा अधिक होरहा है, हों सकता है यह स्वाभाविक आवश्यकता के कारण हो, परन्तु श्लाघ्य है ।कुछ असंतोष की भावनायें भी प्रतीत हुईं कि हिन्दी प्रदेश व केन्द्र हिन्दी की ओर अधिक ध्यान नहीं दे रहे एवम हिन्दी राष्ट्र भाषा क्यों नहीं बन पारही, तथा हिन्दी साहित्य में गिरावट व पढ़ने वालों की कमी के प्रति चिंता भी हैं |
मुख्यत: बन्गलोर में तीन संस्थाए हिन्दी के प्रचार प्रसार में संलग्न हैं---
१.मैसूर हिन्दी प्रचार परिषद एवं अखिल कर्नाटक हिन्दी साहित्य एकेडेमी, राजाजी नगर--जिसके कर्ता धर्ता श्री राम संजीवैया जी बडे मिलन सार सह्रिदयी व्यक्ति हैं। वे मासिक हिन्दी पत्रिकाभी निकालते हैं जो हिन्दी भाषा व साहित्य के उत्थान से ओत प्रोत उच्चकोटि के साहित्यिक आलेखों व साहित्य से परिपूर्ण होती है। इसके साथ ही हिन्दी की विभिन्न परीक्षाएं, एवं शोध कार्य भी किये जाते हैं।
२.कर्नाटक हिन्दी प्रचार समिति , जय नगर--के कर्ता धर्ता श्री वी रा देवगिरि जी भी बडे प्रेम-भाव से मिले एवं अपना संस्थान दिखाया। यह संस्थान भी 'भाषा-पीयूष' नाम से एक हिन्दी त्रैमासिक प्रकाशित करता हैं |हिन्दी प्रचार -प्रसार के लिए परीक्षाएं वे शोध कार्य भी ।
३।कर्नाटक महिला हिन्दी सेवा समिति, चामराज पेट--- पूर्णतया महिलाओं द्वारा संचालित यह संस्था शायद भारत में एकमात्र ऐसी संस्था हैं जो महिलाओं में हिन्दी के प्रचार/ प्रसार के लिए कटिबद्ध हैं। संस्था की संस्थापिका सदस्य व प्रधान सुश्री शांता बाई एक कर्मठ व योग्य महिला हैं जिन्होंने बड़े प्रेम से सारा संस्थान दिखाया| संस्थान का अपना स्वयं का प्रिंटिंग प्रेस भी हैं जो महिला कर्मियों द्वारा ही संचालित हैं | यह संस्थान हिन्दी की परीक्षाएं , शोध, एम् फिल, पी एच डी भी कराती हैं एवं स्वायत्तशासी संस्था हैं |संस्थान 'हिन्दी प्रचार वाणी ' नामक हिन्दी मासिक पत्रिका का प्रकाशन भी करता हैं।
हम उत्तर भारतीय समझते हैं कि दक्षिण में हिन्दी बोली व भाषा की स्थिति अधिक अच्छी नहीं हैं, परन्तु मुझे एसा महसूस हुआ कि यहाँ हिन्दी अधिक शुद्ध व परिष्कृत बोली जाती हैं एवं सभी पत्रिकाओं में विशुद्ध हिन्दी में व उच्च कोटि के साहित्यिक व हिन्दी के समर्थन में विद्वतापूर्ण आलेख प्रस्तुत होते हैं। शायद अभी हिन्दी वेल्ट उत्तर भारत की भांति बाज़ार वाद का अधिक प्रभाव नहीं हैं।
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जानकारी अच्छी लगी .. रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!
बहुत बहुत धन्यवाद्
अच्छा लगा की आप लोगों को कविता पसंद आई,, इसी तरह हमारा मनोबल बढ़ाते रहें