मूल मन्त्र यहाँ देखें
विदित हो कि आज का विज्ञानं चिल्ला चिल्ला कर घी को और सूर्य कि किरणों को उर्जा का स्रोत कहता है !
और आज सभी लोग इस बात को स्वीकार करते भी हैं ! किन्तु लाखों वर्षों पहले यही तथ्य हमारे मनीषियों ने संपादित किया था क्या हम इस तथ्य को भी जानते हैं या जानने का प्रयास करते हैं क्या ?
ऋग्वेद का यह सूक्त आपको इस तथ्य से अवगत कराता है !
संकेत . -- मित्रं हुवे ............................................................ साधन्ता ! (ऋग्वेद १/२/७)
भावार्थ . - घृत के समान पुष्ट, प्राणप्रद प्रकाशक हितैषी पवित्र सूर्य देवता और समर्थ वरुण देवता का आवाहन करता हूँ ! वे हमारी बुद्धि को उर्वरा बनाएं !!
टिप्पणी- उक्त मन्त्र में सूर्य को घृत के समान पुष्ट प्राणदायक पवित्र कहा गया है ! अब जरा दादी नानी के नुस्खे याद कीजिये ! जब आप की सेहत को देखते हुए आप के खाने में ढेर सारा घी डालते हुए वो कहा करती थी , बेटा खा ले, मोटा हो जाएगा !
आज का विज्ञान क्या कहता है ये तो आप सब को पता होगा ! घी की शक्ति का प्रमाण मिल जाने के बाद मन्त्र के आगे के भाग पर गौर करें तो देखते हैं कि घी के समान गुण वाला सूर्य को कहा गया है ! तात्पर्य यह है कि सूर्य कि ऊर्जा हमारे लिए उतनी ही लाभ दायक है जितनी कि घी ! अब विज्ञान की बातें याद करें तो वह भी यही कहता है कि सूर्य कि किरणों में फला- फला विटामिन होते हैं जो स्वास्थ्य के लिए अति लाभदायक होते हैं ! वरुण के लिए समर्थ शब्द का प्रयोग किया गया है ! क्यूंकि वरुण के मूर्त रूप जल के गुणों की आगे के मन्त्रों में चर्चा है ! किन्तु यदि वरुण के साथ भी उक्त विशेषण लगा दिए जाएँ तो भी कोई गलत नहीं होगा, क्यूंकि जल में भी कई गुण होते हैं जिनका वर्णन आगे के मंत्रो में प्राप्त भी होता है ! ये स्पष्टीकरण इसलिए दे रहा हूँ कि हमारे कुछ भाई हैं जो तथ्यों से ज्यादा गलतियों पर ध्यान देते हैं ! अब वेद भगवान कि महिमा का ज्ञान अधिकाधिक जनों को हो इसके लिए इस लेख को जितना अधिक लोगों को भेज सकें उत्तम है !
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विदित हो कि आज का विज्ञानं चिल्ला चिल्ला कर घी को और सूर्य कि किरणों को उर्जा का स्रोत कहता है !
और आज सभी लोग इस बात को स्वीकार करते भी हैं ! किन्तु लाखों वर्षों पहले यही तथ्य हमारे मनीषियों ने संपादित किया था क्या हम इस तथ्य को भी जानते हैं या जानने का प्रयास करते हैं क्या ?
ऋग्वेद का यह सूक्त आपको इस तथ्य से अवगत कराता है !
संकेत . -- मित्रं हुवे ............................................................ साधन्ता ! (ऋग्वेद १/२/७)
भावार्थ . - घृत के समान पुष्ट, प्राणप्रद प्रकाशक हितैषी पवित्र सूर्य देवता और समर्थ वरुण देवता का आवाहन करता हूँ ! वे हमारी बुद्धि को उर्वरा बनाएं !!
टिप्पणी- उक्त मन्त्र में सूर्य को घृत के समान पुष्ट प्राणदायक पवित्र कहा गया है ! अब जरा दादी नानी के नुस्खे याद कीजिये ! जब आप की सेहत को देखते हुए आप के खाने में ढेर सारा घी डालते हुए वो कहा करती थी , बेटा खा ले, मोटा हो जाएगा !
आज का विज्ञान क्या कहता है ये तो आप सब को पता होगा ! घी की शक्ति का प्रमाण मिल जाने के बाद मन्त्र के आगे के भाग पर गौर करें तो देखते हैं कि घी के समान गुण वाला सूर्य को कहा गया है ! तात्पर्य यह है कि सूर्य कि ऊर्जा हमारे लिए उतनी ही लाभ दायक है जितनी कि घी ! अब विज्ञान की बातें याद करें तो वह भी यही कहता है कि सूर्य कि किरणों में फला- फला विटामिन होते हैं जो स्वास्थ्य के लिए अति लाभदायक होते हैं ! वरुण के लिए समर्थ शब्द का प्रयोग किया गया है ! क्यूंकि वरुण के मूर्त रूप जल के गुणों की आगे के मन्त्रों में चर्चा है ! किन्तु यदि वरुण के साथ भी उक्त विशेषण लगा दिए जाएँ तो भी कोई गलत नहीं होगा, क्यूंकि जल में भी कई गुण होते हैं जिनका वर्णन आगे के मंत्रो में प्राप्त भी होता है ! ये स्पष्टीकरण इसलिए दे रहा हूँ कि हमारे कुछ भाई हैं जो तथ्यों से ज्यादा गलतियों पर ध्यान देते हैं ! अब वेद भगवान कि महिमा का ज्ञान अधिकाधिक जनों को हो इसके लिए इस लेख को जितना अधिक लोगों को भेज सकें उत्तम है !
क्रमशः ..................
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भवदीय: - आनन्द:
Bahut Acchaa , lekin ek hi post ko char bar post ka matlab samajh main nahi aaya.
गिरी जी आप सही कह रहे हैं .
ऐसे भी धार्मिक लेखों को अपने ब्लॉग पर प्रकाशित करना चाहिए न की सामाजिक ब्लॉग पर
रस्सी आवत जात ते सिल पर होत निसान---अर्थ समझें जी.