गणतन्त्र- दिवस पर कुछ अगीत----
१-टोपी --
वे राष्ट्रगान गाकर,
भीड़ को, देश पर मर मिटने की -
कसम दिलाकर;
बैठ गए लक्ज़री कार में जाकर |
टोपी पकडाई पी ऐ को,
अगले वर्ष के लिए , रखे -
धुलाकर ||
२-कहाँ है मेरा देश.....
यह अ जा का ,
यह अ ज जा का,
यह अन्य पिछड़ों का ,
यह सवर्णों का -
कहाँ है मेरा देश ||
३-किस देश के लिए .....
कितने शहीद,
कब्र से उठाकर पूछते हैं;
हम मरे किस देश के लिए ?
अल्लाह के-
या ईश्वर के ||
४-कहाँ खोगया....
कल जिनके ओठों पर -
देश था |
आज , अल्लाह -
या ईश्वर है ;
देश कहाँ खोगया ||
५-विकास ---
विकास की कुलांचें भरता देश
व्यक्ति को धकिया कर,
चढ़ गया ऊंचा ,
होकर-
निर्धनों का धनी देश ||
६- मित्र पुलिस --
मुस्तैद ,
मित्र पुलिस ;
हर दम तैयार ;
फिर भी नहीं मिली ,
उत्तम प्रदेश में -
चोरी गयी कार ||
१-टोपी --
वे राष्ट्रगान गाकर,
भीड़ को, देश पर मर मिटने की -
कसम दिलाकर;
बैठ गए लक्ज़री कार में जाकर |
टोपी पकडाई पी ऐ को,
अगले वर्ष के लिए , रखे -
धुलाकर ||
२-कहाँ है मेरा देश.....
यह अ जा का ,
यह अ ज जा का,
यह अन्य पिछड़ों का ,
यह सवर्णों का -
कहाँ है मेरा देश ||
३-किस देश के लिए .....
कितने शहीद,
कब्र से उठाकर पूछते हैं;
हम मरे किस देश के लिए ?
अल्लाह के-
या ईश्वर के ||
४-कहाँ खोगया....
कल जिनके ओठों पर -
देश था |
आज , अल्लाह -
या ईश्वर है ;
देश कहाँ खोगया ||
५-विकास ---
विकास की कुलांचें भरता देश
व्यक्ति को धकिया कर,
चढ़ गया ऊंचा ,
होकर-
निर्धनों का धनी देश ||
६- मित्र पुलिस --
मुस्तैद ,
मित्र पुलिस ;
हर दम तैयार ;
फिर भी नहीं मिली ,
उत्तम प्रदेश में -
चोरी गयी कार ||
गणतंत्र दिवस पर जारी, ''स्वतंत्रता दिवस पर'' पठनीय क्षणिकाएं.
जीवन है तो संघर्ष भी है। संघर्ष है तो तनाव का होना स्वाभाविक है। जो लोग छोटी-छोटी खुशियों को महत्व नहीं देते वे बड़ी खुशियों के लिए तरस जाते हैं और अवसादग्रस्त हो जाते है। हास्य तनाव-मुक्ति हेतु सेफ्टीवाल्व का काम करता है।
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आम आदमी के प्रति सहानुभूति और हिंदी साहित्य के विकास में आपका योगदान महत्वपूर्ण है। इस भावपूर्ण कविताओं के लिए बधाई और गणतंत्र- दिवस के अवसर पर मंगल कामनाएं । २३ दिसम्बर को नेताजी सुभाषचंद बोस की जयन्ती थी उन्हें याद कर युवा-शक्ति को प्रणाम करता हूँ। आज हम चरित्र-संकट के दौर से गुजर रहे हैं। हमारे आस-पास ऐसा कोई जीवन्त नायक नहीं जिसके चरित्र का युवा-पीढ़ी अनुकरण कर सकें?
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मुन्नियाँ देश की लक्ष्मीबाई बने,
डांस करके नशीला न बदनाम हों।
मुन्ना भाई करें ’बोस’ का अनुगमन-
देश-हित में प्रभावी ये पैगाम हों॥
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सद्भावी - डॉ० डंडा लखनवी
'ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम' सदा गाया है वतन के रखवालों ने
हम पूछते हैं कि इस साझा मंच पे क्यों झूठ और कुफ़्र बका जा रहा है ?
कुफ़्र अर्थात नास्तिकता ।
क्या देश के लिए केवल वही नास्तिक बलिदान कर सकता है जिसकी ज़बान पर ईश्वर-अल्लाह का नाम न हो ?
टीपू सुल्तान से लेकर कर्नल शाहनवाज़ और मौलाना अबुल कलाम आज़ाद तक सभी मुसलमानों की ज़बान पर अल्लाह का नाम था और ऐसे ही मंगल पांडे से लेकर गांधी और रामप्रसाद बिस्मिल तक सभी हिंदू सरफ़रोशों की ज़बान पर ईश्वर का नाम था।
@ डा. श्याम गुप्ता जी ! ईशनिंदा से बाज़ आ जाईये।
देशभक्तों के बारे में भ्रम फैलाने से बाज़ आ जाईये।
आस्था का मख़ौल उड़ाने से बाज़ आ जाईये।
नास्तिकता के प्रचार से तौबा कीजिए और लौट आईये ईमान की ओर जो कि आपको मेरे ज़रिये से मिल सकता है ।
आपकी सेवा हेतु सदा तत्पर
आपका छोटा भाई अनवर
---धन्यवाद--राहुल जी,
---बहुत बहुत धन्यवाद--डंडाजी---सुन्दर व विस्त्रत..व्यख्यात्मक व कव्यात्मक पैगाम के लिये
---भाई अनवर जी --इसमें ईश-निन्दा की बात कहां से आगयी....एक ओर तो आप छोटा भाई कहते हैं अपने आप को ...दूसरी ओर बडे भाई को सीख देने की बात करते हैं....ये क्या है....
@ ...तो क्या बड़े भाई गलती नहीं करते ?
क्यों नहीं-- पर गलतियों को इन्गित करना और स्प्ष्टीकरण चाहना ...(हो सकता है जिसे आप गलती समझ रहे हों वह आपका अग्यान हो) तथा बडों को सीख देने में अन्तर है....
मुझे नेट पर २६ जन. को बैठने का मौका नहीं मिला व्यस्तता के कारण किन्तु थोड़ी देर के लिए आया था और देखा कि आपने गणतंत्र की जगह स्वतंत्रता दिवस लिखा था. भूल वश हो जाता है. आज आया तो आपने संशोधन कर दिया है. आज की राजनीती पर अच्छा कटाक्ष . जब तक आम जानता जागरूक नहीं होगी तब तक हालात सुधरने वाले नहीं है. अभी तो हम जाति पाति व धर्म की लडाई में उलझे हुए हैं. व्यक्ति हिन्दू हो या मुसलमान, जब तक वह अपने आपको भारतीय नहीं समझता तब तक क्या सुधर हो सकता है. अभी तो हम हिन्दू हैं, मुस्लिम है, सिक्ख हैं ईसाई है, उ.प्र. के हैं, बिहार के है, बंगाली हैं, गुजरती हैं, पंजाबी हैं आदि-आदि है, जब भारतीय ही नहीं हुए तो हालात क्या होंगे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है. अच्छी कविता. धन्यवाद.
धन्यवाद हरीश जी--वास्तव में आज के अति-भौतिकता जनित मारा-मारी के युग में दो ही यक्ष-प्रश्न हैं---कहां गयी मानवता व कहां गया मेरा देश ....