दिव्या कथन विश्लेषण 2011
गतांक से आगे ...
आदरणीया बहन दिव्या जी (डा. दिव्या जी) ,
आपको ऐतराज़ है कि मैंने आपकी तुलना देशभक्तों से क्यों नहीं की ?
आपकी तुलना देशभक्तों से करने का क्या तुक है ?
देश के लिए जान देने आप कहां गईं हैं बताइये ?
आपने देश के शिक्षण तंत्र का लाभ उठाकर पहले तो योग्यता अर्जित की और जब सेवाएं देने का नंबर आया तो आप विदेश जा बैठीं। ख़र्च किया देश ने और सेवाएं दे रही हैं आप विदेश में ?
क्या इसी का नाम है देशभक्ति ?
जो नारी अपनी सेवाएं तक देश के लोगों को न दे सके और विदेश जा पहुंचे तो उसे तो कृतघ्न न माना जाए इतना ही पर्याप्त है। आपको देशभक्तों की श्रेणी में रखेंगे वे लोग जो कि खुद देशभक्त नहीं हैं और आपके चापलूस हैं।
मैं न आपका चापलूस हूं और न ही आपका विरोधी। जो गुण आपमें है ही नहीं, उसे मैं आपके लिए नहीं स्वीकारता और जो गुण आपमें है, उसे मैं ऐलानिया मानता हूं।
आपने कहा है कि ‘जिसकी आंख में कीचड़ नहीं होता उसे हरेक औरत मेनका की तरह रूपवान और गार्गी की तरह विदुषी ही दिखाई देती है।‘
आपने सच कहा है। मैं आपसे सहमत हूं। मुझे हरेक औरत मेनका की तरह रूपवान और गार्गी की तरह विदुषी ही दिखाई देती है इसीलिए मैंने आपको ऐसा समझा और कहा भी। मेरा कहना साबित करता है कि मेरी आंख में कीचड़ नहीं है लेकिन आपके दिमाग़ में जरूर कुछ है कि जिस बात से आप मेरी पाक दिली का अहसास करतीं, उसे आप बचकानापन बता रहीं हैं।
अगर आपको ‘मेनका की तरह रूपवान और गार्गी की तरह विदुषी‘ बताना ग़लत है तो फिर आप खुद क्यों ब्लाग जगत से पूछती हैं कि क्या उनके पास श्री कृष्ण जैसा मित्र है ?
जहां आपने यह सवाल पूछा था वहीं मैंने आपको ‘गार्गी की तरह विदुषी बताते हुए कहा था कि हां मेरे पास श्री कृष्ण जैसा सारथि और सखा है।
तब तो आपने ख़ुद को ‘गार्गी‘ बताए जाने पर कोई आपत्ति नहीं की थी तो फिर आज क्यों ?
आप खुद कह रही हैं कि आपको मेनका कहे जाने पर कोई आपत्ति नहीं है लेकिन
आपका मानना है कि आप मेनका जितनी सुंदर नहीं है।
मैं मान लेता हूं लेकिन क्या आप सुंदर नहीं हैं ?
अगर आप सुंदर हैं तो उपमा हमेशा उस चीज़ से दी जाती है जो कि उससे बड़ी हुआ करती है।
मां-बाप और गुरू की उपमा तो ईश्वर से दी जाती है हिंदू साहित्य में। क्या मां-बाप और गुरू वास्तव में ही ईश्वर होते हैं ?
अलंकारों को उसी रूप में न समझा जाए जो कि वक्ता का अभिप्राय है , तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है। लिहाज़ा आप अपनी सोच को दुरूस्त करें। मेरा कहा हुआ ठीक है।
मैं वही कहता हूं जो कि मैं मानता हूं। आप कहती हैं कि आप ‘गार्गी की तरह विदुषी‘ नहीं हैं। आप झूठ बोलती हैं।
गार्गी में ऐसा क्या ख़ास था जो कि आपमें नहीं है ?
आदि शंकराचार्य एक सन्यासी थे। उन्होंने गार्गी के पति को शास्त्रार्थ में हरा दिया, तब गार्गी ने शंकराचार्य से शास्त्रार्थ किया और उसने शंकराचार्य को घेर कर उस क्षेत्र में ले गई जिसका कोई अनुभव शंकराचार्य जी को न था। ‘काम अर्थात सैक्स‘ के बारे में एक ब्रह्मचारी को कोई अनुभव नहीं होता लिहाज़ा शंकराचार्य को उसके सामने चुप होना पड़ा। बस यही ख़ास था गार्गी में, बाक़ी विद्वान पति के संग रहने से दर्शन साहित्य की समझ उसमें थी और यह आज भी ऐसे पतियों की पत्नियों आ जाती है।
गार्गी एक गृहस्थ महिला थी, इसलिए काम विद्या में निपुण थी। आप भी एक विवाहित महिला हैं। ऐसी कौन सी बात है जो कि सैक्स के संबंध में गार्गी को तो पता थी लेकिन आप उससे अन्जान हैं ?
मैंने आपको गार्गी की तरह विदुषी कहा है तो ठीक ही कहा है।
अब मैं कहता हूं कि गार्गी का ज्ञान आपके सामने कम था।
सैक्स के बारे में गार्गी का ज्ञान केवल उसके व्यवहारिक पक्ष तक सीमित था जबकि आप उसके बायोलोजिकल पक्ष को भी जानती हैं और इतना अच्छा जानती हैं कि गार्गी के समय में कोई वैद्य भी इतना न जानता था जितना कि एक डाक्टर होने के कारण आप जानती हैं। तब भला बेचारी गार्गी तो क्या जानती ?
http://ahsaskiparten.blogspot.com/2010/12/patriot.html?showComment=1294240880477
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