जब तक यह मूर्खता नष्ट न होगी, तब तक देश का कल्याण-पथ प्रशस्त ना होगा । समझौता कर लेनें, नौकरियों का बँटवारा कर लेने और अस्थायी सुलह नामों को लिखकर, हाथो में कालीख पोत लेने से ,तोड़फोड़ कर लेने से कभी राष्ट्रीयता व मानवीयता का उपवन नहीं महकेगा । हालत आज इतनी गई-गुजरी हो गई है कि व्यापक महांसंग्राम छेडे बिना काम चलता नहीं दिखता । धर्म , क्षेत्र एवं जाति का नाम लेकर घृणित व कुत्सित कुचक्र रचनें वालों की संख्या रक्तबीज तरह बढ रही है । ऐसे धूर्तो की कमी नहीं रही, पर मानवता कभी भी संपूर्णतया नहीं हुई और न आगे ही होगी, लेकिन बीच-बीच में ऐसा अंधयूग आ ही जाता है , जिसमें धर्म , जाति एवं क्षेत्र के नाम पर झूठे ढकोसले खड़े हो जाते हैं । कतिप्रय उलूक ऐसे में लोगो में भ्रातियाँ पैदा करने की चेष्टा करने लगते है । भारत का जीवन एवं संस्कृति वेमेल एवं विच्छन्न भेदभावों की पिटारी नहीं है । जो बात पहले कभी व्यक्तिगत जीवन में घटित होती थी, वही अब समाज की छाती चिरने लगें । भारत देश के इतिहास में इसकी कई गवाहिँया मेजुद हैं । हिंसा की भावना पहले कभी व्यक्तिगत पूजा-उपक्रमो तक सिमटी थी, बाद में वह समाज व्यापिनी बन गयी । गंगा, यमुना सरस्वती एवं देवनंद का विशाल भू-खण्ड एक हत्याग्रह में बदल गया । जिसे कुछ लोग कल तक अपनी व्यक्तिगत हैसियत से करते थे, अब उसे पूरा समाज करने लगा । उस समय एक व्यापक विचार क्रान्ति की जरुरत महसूस हुई । समाज की आत्मा में भारी विक्षोभ हुआ ।
इस क्रम में सबसे बडा हास्यापद सच तो यह है कि जो लोग अपने हितो के लिए धर्म , क्षेत्र की की दुहाई देते है उन्हे सांप्रदायिक कहा जाता है, परन्तु जो लोग जाति-धर्म क्षेत्र के नाम पर अपने स्वार्थ साधते हैं , वे स्वयं को बडा पुण्यकर्मि समझते हैं । जबकि वास्तविकता तो यह है कि ये दोंनो ही मूढ हैं , दोनो ही राष्ट्रविनाशक है । इनमें से किसी को कभी अच्छा नहीं कहा जा सकता । ध्यान रहे कि इस तरह की मुढतायें हमारे लिए हानिकारक ही साबित होंगी , अंग्रजो ने तो हमारे कम ही टुकडे किय, परन्तु अब हम अगर नहीं चेते तो खूद ही कई टूकडों में बँट जायेंगे, क्या भरोसा है कि जो चन्द स्वार्थि लोग आज अलग राज्य की माँग कर रहे हैं वे कल को अलग देश की माँग ना करे, इस लिए अब हमें राष्ट्रचेतना की जरुरत है, हो सकता है शुरु में हमें लोगो का कोपाभजन बनना पड़े , पर इससे डरने की जरुरत नही है । तो आईये मिलकर राष्ट्र नवसंरचना करने का प्रण लें ।
मिथिलेश जी बहुत ही लाजवाब पोस्ट लिखा है आपने , काश की आपका ये लेख हर कोई पढ़ पाता जो देश और धर्म के नाम पर राजनीति करता है । एस ब्लोग पर आपका ये लेख समसामायिक है , लखनऊ ब्लोगर एसोसिएशन जो की अपनी अखंडता में एकता के लिए जाना जाता है उस पर कुछ दिनों से कट्टरता साफ दिख रही है , जो की गलत है और जिसे आपका लेख भी गलत बता रहा है , आप जैसे युवा लेखकों की देश को सच में बहुत आवश्यकता है । आज आपका ये लेख पढ़कर मैं बहुत खुश इसलिए भी हूँ कि मैं उस ब्लोग से जुड़ा हूँ जहाँ आप जैसे विचारधारा के लोग भी लिखते है । उनलोगों को नाम तो नहीं लूंगा लेकिन सतर्क हो जाने की जरुरत है जो कट्टरता के अनुयायी है । इस लाजवाब लेख के लिए साधुवाद ।
लाजबाब पोस्ट, वास्तव में कट्टरता किसी भी रूप में हो, वह सभी के लिए घातक है. पर समझने वाला कौन है जनाब, यहाँ तो मेल मिलाप की बात करे तो लोग लड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं. फिलहाल जो लोग देश में एकता व शांति चाहते है उनके लिए एक सार्थक लेख. आभार.
लाजवाब पोस्ट !!!
सुन्दर भाव व विचार, साधुवाद...